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फेसबुक और आस्ट्रेलिया सरकार के टकराव का पूरी दुनिया पर होगा असर
दिनकर कुमार का विश्लेषण
सप्ताह भर से चल रहे ब्लैकआउट को विराम देते हुए फेसबुक ने बीते मंगलवार को ऑस्ट्रेलियाई न्यूज़ पेजों को फिर से रिस्टोर कर दिया था। इससे पहले फेसबुक ने न्यूज़ कंटेंट देने वाले संस्थानों के फेसबुक पेजों को ब्लॉक किया था। गौरतलब हो कि, पिछले साल गूगल ने भी न्यूज इंडस्ट्री में 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया था।
फेसबुक की ओर से अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज बैन करने को लेकर हुए विवाद और प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के कड़े बयानों के बाद, सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी ने मंगलवार को कहा कि वो ऑस्ट्रेलियाई न्यूज से विवाविद बैन हटा लेगी और स्थानीय मीडिया कंपनियों को कंटेंट के लिए भुगतान करेगी। यह सब लंबित पड़े ऐतिहासिक कानून पर आखिरी समझौते के बाद हुआ है। सरकार के मुताबिक, कानून उन न्यूज कंपनियों को बेहतर बार्गेनिंग पावर देगा, जिन्होंने विज्ञापन राजस्व के लिए संघर्ष किया है, जबकि गूगल और फेसबुक अपनी जेबें भरते रहे हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और न्यूज ऑर्गनाइजेशंस के बीच रेवेन्यू शेयरिंग को लेकर क्या भारत में भी कानून होना चाहिए? ऐसे कानून की वकालत इस वजह से हो रही है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट की दिग्गज कंपनियां मनमानी पर उतर आई हैं। गूगल ने धमकाया था कि वह अपने सर्च इंजन से ऑस्ट्रेलिया को गायब कर देगा तो फेसबुक ने कहा था कि अगर कानून लागू हुआ तो वह ऑस्ट्रेलिया के लिए न्यूज का एक्सेस ही खत्म कर देगा।
फेसबुक ने पिछले दिनों ऐसा कर भी दिया। क्या भारत ऐसा कानून बनाएगा तो उसके साथ भी ये कंपनियां यही करेंगी? गूगल और फेसबुक या इंटरनेट के कारोबार से जुड़ी कोई भी कंपनी क्या भारत से पंगा लेना अफोर्ड कर सकती है?
इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने गूगल इंडिया को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि देश के समाचार प्रकाशकों को उनकी सामग्री के लिए विज्ञापन राजस्व का 85% भुगतान किया जाना चाहिए, क्योंकि गूगल इस समाचार सामग्री का उपयोग अपनी विज्ञापन आपूर्ति मूल्य श्रृंखला को ईंधन देने के लिए करता है।
आईएनएस के अध्यक्ष एल अदिमूलम ने गूगल इंडिया के कंट्री मैनेजर संजय गुप्ता को लिखे पत्र में मांग की कि बड़ी टेक दिग्गजों को उत्पन्न समाचारों के लिए भुगतान करना चाहिए, क्योंकि समाचार पत्र जानकारी इकट्ठा करने और सत्यापन के लिए हजारों पत्रकारों को काफी खर्च पर नियुक्त करते हैं।
यह विज्ञापन राजस्व के अनुपात से स्पष्ट नहीं है कि गूगल वर्तमान में समाचार प्रकाशकों को भुगतान करता है। पिछले साल जून में एक ब्लॉग में गूगल ने दावा किया था कि समाचार प्रकाशक डिजिटल विज्ञापन राजस्व का 95% हिस्सा अपने पास रखते हैं, जब वे अपनी वेबसाइटों पर विज्ञापन दिखाने के लिए गूगल के विज्ञापन प्रबंधक का उपयोग करते हैं।
फेसबुक ने जब ऑस्ट्रेलियाई न्यूज़ पेजों को ब्लॉक किया उसके बाद से न्यूज़ इंडस्ट्री को करारा झटका लगा था। जिसके बाद फेसबुक और आस्ट्रेलियाई सरकार के बीच विवाद ने नया रूप ले लिया। इस मामले में फेसबुक ने एक ब्लॉग में कहा कि, न्यूज़ पेजों को ब्लॉक किया जाना कंपनी और न्यूज़ पब्लिशर्स के बीच संबंधों की "मूलभूत गलतफहमी" का नतीजा था।
कंपनी ने यह भी स्वीकार किया कि जब न्यूज़ कंटेंट पर प्रतिबंध लगाया गया उस दौरान कुछ गैर-समाचार सामग्री भी अनजाने में ब्लॉक हो गई थीं। फेसबुक ने कहा कि कंपनी ने 2018 से समाचार उद्योग में पहले ही 600 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। सोशल मीडिया कंपनी ने कहा कि वह अपने समाचार सामग्री का भुगतान करने के लिए जर्मनी और फ्रांस में समाचार प्रकाशकों के साथ बातचीत कर रही है।
बीते गुरुवार को फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज़ कंटेंट (समाचार सामाग्री) को साझा करने पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद फेसबुक और न्यूज़ पब्लिशर्स के बीच विवाद बढ़ गया था। वहीं आस्ट्रेलियाई सरकार ने भी फेसबुक के इस कदम की कड़ी निंदा की थी, यहां तक कि सरकार ने इस फैसले को एक संप्रभु देश पर हमला तक करार दिया।
यह विवाद तब और बढ़ गया जब फेसबुक ने हैरान करने वाला कदम उठाते हुए ऑस्ट्रेलिया सरकार के एक कानून के विरोध में वहां के न्यूज, हेल्थ और इमरजेंसी सेवाओं के पोस्ट पर रोक लगा दी। यही नहीं, फेसबुक ने वहां की कई इमरजेंसी सेवाओं की पोस्ट को भी हटा दिया। ऑस्ट्रेलिया की ऑनलाइन एडवर्टाइजिंग में गूगल का हिस्सा 53 प्रतिशत जबकि फेसबुक का 23 प्रतिशत है। ऐसे में गूगल ने धमकी दे डाली थी कि कानून बना तो वह ऑस्ट्रेलिया में अपना सर्च इंजन बंद कर देगा। ठीक इसी तरह हाल ही में फेसबुक ने यूजर्स को ऑस्ट्रेलिया से जुड़ी खबरें एक्सेस करने और शेयर करने से ब्लॉक कर दिया।
ऑस्ट्रेलिया की संसद के निचले सदन में मीडिया बारगेनिंग कोड (एमबीसी) नाम से एक बिल पास किया गया है। इस बिल के मुताबिक न्यूज़ कंटेंट के लिए फेसबुक और अल्फाबेट जैसी दिग्गज कंपनियों को भुगतान करना होगा। इसी को लेकर फेसबुक और गूगल ने विरोध किया। यदि ये कानून लागू हो जाता है तो फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज़ कंटेट साझा करने के लिए पब्लिशर्स को तगड़ी रकम देनी होगी। वहीं फेसबुक को ये भी डर है कि यदि वो ऑस्ट्रेलिया में अपने घुटने टेक देता है तो अन्य देश भी इसी तरह की मांग कर सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया का जो प्रस्तावित कानून है, वह अपनी तरह का पहला है लेकिन दुनियाभर के कई देशों में ऐसे ही कदम उठाए जा रहे हैं। इसी तरह के दबाव के चलते यूरोप में गूगल को पिछले साल फ्रेंच पब्लिशर्स के साथ मोलभाव करना पड़ा। एक अदालत ने आदेश को बरकरार रखते हुए कहा था कि 2019 यूरोपियन यूनियन कॉपीराइट निर्देशों के हिसाब से ऐसे समझौते जरूरी हैं।
वहीं, फ्रांस दुनिया का पहला देश बना जिसने ये नियम लागू किए। अदालत के फैसले के बाद 27 देशों वाले यूरोपियन यूनियन के अन्य सदस्य भी गूगल, फेसबुक व अन्य कंपनियों को ऐसा करने को कहेंगे। हालांकि भारत में अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं है जो गूगल, फेसबुक या अन्य इंटरनेट कंपनियों को बाध्य करता हो कि वे पब्लिशर्स को भुगतान करें। हालांकि इसकी मांग लंबे समय से होती रही है।