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जनज्वार विशेष

Ground Report : अरावली के हजारों गरीबों-मजदूरों के सपनों के आशियाने पर भाजपा सरकार ने चलाया बुल्डोजर

Janjwar Desk
16 Sep 2020 4:58 PM GMT
Ground Report : अरावली के हजारों गरीबों-मजदूरों के सपनों के आशियाने पर भाजपा सरकार ने चलाया बुल्डोजर
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देखिये कैसे रो-रोकर लोगों का है बुरा हाल, पीड़ित बोले हमने मोदी को जिताया और उन्होंने बदले में तोड़ दिया हमारा आशियाना

फरीदाबाद से विवेक राय की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार। बीते 14 सितम्बर की सुबह फरीदाबाद के अरावली पहाड़ों में स्थित खोरी गाँव के जंगलात में अवैध प्लाट काटकर उन पर बनाये घरों को ढहाने के लिए निगम महकमा पुलिस दस्ता लेकर पहुंचा। 150 एकड़ में बसे लगभग 15000 की आबादी वाले इस इलाके के लगभग 400 मकानों को ज़मींदोज़ कर दिया गया। बाकी बचे मकानों को जल्दी ही तोड़ने की कवायद अभी चल रही है।

26 वर्षीय दीपक कहते हैं, यूँ तो यहाँ पुलिस नहीं आती थी, पर पिछले कई दिनों से पुलिस की कुछ मोटरसाइकिलें यहाँ चक्कर काटने लगीं थी। एक दिन इलाके के लोगों ने कारण पूछा तो पुलिस वालों ने कहा कि सामने वाले प्लाट में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी आने वाले हैं, इसलिए हम देख रहे हैं कि कहीं कोई उग्रवादी न हों। पुलिस की बात को मान कर लोग बेखबर अपने काम धंधे में लगे रहे और अचानक 14 सितम्बर को दिन में भारी मात्रा में पुलिस और प्रशासन जेसीबी लेकर आ गया और हमारे घरों को ज़मींदोज़ कर गया।

महेंद्र सिंह अलीगढ उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं और अपनी आठ बेटियों के साथ अरावली में अवैध बनी इस बस्ती में 15 वर्षों से रह रहे थे। उनकी दो बकरियां और मुर्गियों के पास तक रहने को एक छप्पर नहीं बचा, तो उनकी तो बात ही क्या की जाए। सारा सामान उठाकर पहाड़ में बने एक गड्ढे में डाल दिया।

घर तोड़ दिया तो इस तरह अपना सामान सहेज रहे हैं पीड़ित परिवार

बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच चुके महेंद्र ने ज़िन्दगी की सारी कमाई अपने मकान में लगा दी थी। बबूल के पेड़ की छांव में अपने सामान को इकठ्ठा कर घुटनों को पेट में देकर बैठी महेन्द्र की पत्नी बस रो रही है, उनके पास घर के नाम पर अब सिर्फ बिखरी ईंटें और मलबा ही पड़ा है। पुलिस वालों ने उन्हें अपना मकान बचाने के एवज में पीटा और उनकी छाती पर मुक्के भी मारे।

अरविन्द सिंह बिहार के रहने वाले हैं और फरीदाबाद के ढाबे में खाना बनाने का काम करते थे। अपने 2 लाख रुपये की गाढ़ी कमाई राजदीप नामक आदमी को देकर अपने ही हाथो से घर बनाया था। अरविन्द ने बताया कि राजदीप से ये ज़मीन 10 साल पहले ली थी, उस वक़्त राजदीप ने एक पर्ची पर लिखकर दे दिया और पक्के कागज़ देने की बात मकान बना लेने के बाद कही। जब तक राजदीप जिंदा था तब तक टूटने का ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया, तो हमें भी विश्वास था कि नहीं टूटेगा। अब जब मकान टूट गया है तो किसे जाकर पकड़ें, क्योंकि राजदीप अब इस दुनिया में नहीं।

जितने भी लोगों के घर तोड़े गये, उनमें सभी ने एक बात समान रूप से बताई कि अनंगपुर गाँव के स्थानीय निवासियों ने इस पहाड़ी की ज़मीन उन्हें ये कहकर बेची कि ये उनकी ज़मीन है और इसपर प्रशासन का कोई रोल नहीं है। किसी को पक्के कागज़ नहीं दिए गए और ज़मीन के पैसे लेने के बदले में एक कोरे कागज़ पर ज़मीन की पैमाइश भर लिख कर दे दी गई।

सपनों का आशियाना ऐसे उजाड़ा भाजपा सरकार ने

काले, दीपक, जीतू ऐसे कुछ लोगों के नाम सामने आये हैं जिन्होंने ज़मीनें बेची हैं और अब जब मामला तूल पकड़ने लगा है तो पीड़ित लोगों को धमका भी रहे हैं कि किसी भी सूरत में उनका नाम न लें। चूंकि ये लोग राजनीतिक और पैसे से प्रभावशाली लोग हैं इसलिए अपना सब कुछ उजड़ने के बावजूद पीड़ित उनका नाम खुल कर नहीं ले रहे हैं।

भूख से बिलबिलाते 400 घरों के पास अब न खाने को खाना है न पीने को पानी। जिन लोगों के घर बच गए हैं उन्होंने सामूहिक रूप से पूड़ी—सब्जी बना कर अपने बेघर साथियों को दोपहर का खाना तो खिला दिया, पर ऐसा कब तक चलेगा नहीं पता।

एक ग्रामीण ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अनंगपुर गाँव से बहुत सारे लोग यहाँ आकर ज़मीन के नाम से पैसा भी वसूलते हैं। ज़मीन बेचने के बाद अनंगपुर के गुर्जरों ने बिजली के मीटर भी लगाये और 13 रुपये यूनिट के हिसाब से बिजली बिल लिया। ये बिजली दिल्ली और फरीदाबाद के ही इलाकों से चोरी के माध्यम से लायी जाती है। पीने के पानी की व्यवस्था भी टैंकरों के माध्यम से यही स्थानीय लोग कर रहे थे, जिसके बदले में मोटी रकम भी वसूलते हैं।


ज़मीन खरीद कर जब मजदूर वर्ग का आदमी जब मकान बनाने लगता है तब वन विभाग के कर्मचारी अपने हिस्से के रुपये लेने आते रहे हैं। उनका कोई रेट तय नहीं था, जो जितने में पट जाए। इसी तरह लोगों ने बताया कि पुलिस पहले पांच हज़ार के रेट से पैसा लेती थी, पर पिछले कई महीनों से यदि मकान की दीवार की एक ईंट भी लगानी है तो पुलिस को 10 हज़ार रुपये देने पड़ते हैं। ये पुलिस का बंधा हुआ रेट है। पैसा लेने के मामले में कथित रूप से संदीप नामक एक पुलिसकर्मी का नाम लगभग सभी ने लिया।

प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इस इलाके को खाली करा लिया। देखा जाए तो पूरी बस्ती ही अवैध बनी हुई है और देर सबेर बचे हुए घर भी टूटेंगे ही, पर कमाल की बात है कि एक इलाके में 30 साल से अवैध प्लोटिंग हो रही है और महकमा कहे कि उसे इसकी कोई खोज खबर ही नहीं, क्या ऐसा संभव है?

दरअसल, झुग्गी बस्ती और ऐसे अवैध प्लाटिंग के कई पैटर्न होते हैं जिनके तार किसी न किसी राजनीतिक दल या आका से जुड़े होते हैं, पर खोरी के इस कालोनी का पैटर्न अन्य से थोड़ा भिन्न है। यहाँ रहने वालों के पास निवास स्थान के नाम पर कोई भी सरकारी कागज़ नहीं है और न ही ये यहाँ के वोटर हैं। बावजूद इसके यहाँ लम्बे वक़्त से बसे हुए हैं तो इसके पीछे एकमात्र कारण स्थानीय गुंडों द्वारा ज़मीन बेचकर उसमें प्रशासन से लेकर पुलिस तक को चढ़ावा चढ़ना ही है।

दरअसल ये पूरा इलाका एक दुधारू गाय की तरह सबको दूध देता रहा, इसलिए आबाद भी रहा। पुलिस, वन विभाग, निगम, बिजली विभाग और लोकल गुंडे सब इन गरीबों को लूटते रहे और शायद टूटने का दुःख उन्हें भी होगा कि उनकी कमाई का एक इलाका निकल गया, पर जल्द ही ये भूखे भेड़िये अपनी कमाई का रास्ता फिरसे निकाल लेंगे।

जिस सुप्रीम कोर्ट को अरावली के नाम से झुग्गी बस्ती और अवैध बसावट का कब्ज़ा दिख रहा है, उसे इसी खोरी से सटा अवैध बना राधा स्वामी सत्संग और बड़े बड़े शादी के पंडाल कैसे नहीं दिखाई दे रहे?

गौरतलब है कि इसी अरावली में राधा स्वामी सत्संग के नाम पर सैकड़ों एकड़ की ज़मीन इसी इलाके में कब्जाई हुई है और अब अरावली में ही बसे एक अन्य स्थान पर कोर्ट के आदेश के बावजूद 12 एकड़ भूमि पर कब्ज़ा कर लिया गया है। इतना ही नहीं क्रिकेट के मैदान और अन्य कई अवैध निर्माण कार्य चल रहे हैं जो कि पैसे से मजबूत लोगों के हैं।

जो कल तक था घर, अब वहां बिखरी हैं सिर्फ ईंटें और पीड़ित बहा रहे हैं इन्हें देख सिर्फ आंसू

कोरोना काल में मारे गए गरीब हर प्रकार से मारे जा रहे हैं। मकान तोड़ने से पहले न कोई नोटिस दिया गया, न ही एक घंटे का भी वक़्त कि वे अपना सामान निकाल कर कम से कम उसे ही सुरक्षित रख लेते। इस महामारी में कहीं न किराये पर मकान मिलने की संभावना है और कमाई न होने के बाद अब आशियाना भी टूट जाने के कारण भूख और बदहाली से जीवन का संकट उत्पन हो गया है।

टूटे घरों के मालिक अब मोदी सरकार की उन नीतियों और भाषणों का हवाला देकर गालियाँ दे रहे हैं, जिनमें उन्होंने मकान देने का वादा किया था। सरकार पाकिस्तान से आने वाले हिन्दुओं को शरण देने की बात करती है और यहाँ अपने ही देश के वैध नागरिकों को जो आत्मनिर्भर भी हैं को उजाड़ देती है।

खैर, सरकार की नीयत अब किसी से छिपी नहीं है, बशर्ते कोई देखना ही न चाहे। पर न्यायालय को कम से कम इस पूरे प्रकरण में शामिल भूमाफियाओं, वन अधिकारियों, पुलिस और निगम के अधिकारियों को सलाखों के पीछे डालते हुए उनकी भी जवाबदेही तय करनी चाहिए।

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