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जनज्वार विशेष

आयोजन बन चुका महिला दिवस यह बताने का दिन कि पुरुष कितना पीछे छोड़ चुके हैं महिलाओं को!

Janjwar Desk
8 March 2022 6:16 PM GMT
आयोजन बन चुका महिला दिवस यह बताने का दिन कि पुरुष कितना पीछे छोड़ चुके हैं महिलाओं को!
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आयोजन बन चुका महिला दिवस यह बताने का दिन कि पुरुष कितना पीछे छोड़ चुके हैं महिलाओं को!

Disproportionate impact of COVID 19 on Women : दुनिया महिलाओं के वैसी ही हो गयी है, जैसी 10 वर्ष पहले थी| संयुक्त राष्ट्र की महिला हिंसा विशेषज्ञ दुब्रावका सिमोनोविक के अनुसार वैश्विक महामारी ने दिखा दिया कि महिलाओं के सन्दर्भ में दुनिया पहले कैसी थी....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Disproportionate impact of COVID 19 on Women : हम भले ही आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के आयोजन में डूबे हों, पर एक के बाद एक अध्ययन बताते रहे हैं कि कोविड 19 के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव लैंगिक समानता को कई दशक पीछे पहुंचा चुके हैं| हाल में ही प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संबंधी जर्नल, द लांसेट (The Lancet), में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार कोविड 19 का महिलाओं पर भयानक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ा है|

इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (Institute of Health Matrix & Evaluation of University of Washington) के वैज्ञानिकों ने किया है और इस अध्ययन के लिए दुनिया के 193 देशों में सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गए शिक्षा, रोजगार और महिलाओं पर हिंसा के आकड़ों का विश्लेषण किया गया है|

इस अध्ययन के अनुसार मार्च 2020 से सितम्बर 2021 के बीच दुनियाभर में बेरोजगारी बढी, शुरू में महिलाओं की तुलना में ऐसे पुरुष भारी संख्या में बेरोजगार की श्रेणी में आ गए, जो इससे पहले रोजगार में थे| पर, कुछ ही महीनों बाद ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ गयी जिनसे रोजगार छीना गया|

अध्ययन के विश्लेषण से स्पष्ट है कि मार्च 2020 से सितम्बर 2021 के बीच दुनियाभर में 26 प्रतिशत महिलाओं से रोजगार छीना गया, जबकि पुरुषों के लिए यह संख्या 20 प्रतिशत है| इसी अवधि के दौरान बालकों की तुलना में 1.21 गुना अधिक बालिकाओं को अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी| इस दौरान घरेलू हिंसा के मामले भी बढे, और पुरुषों की तुलना में 1.23 गुना अधिक महिलायें इसकी शिकार बनीं|

11 मई 2021 को महिलाओं और बालिकाओं पर हिंसा रोकने के लिये किये गए इस्तांबुल समझौते (Istanbul Convention) के दस वर्ष पूरे हो गए थे| यह इस सन्दर्भ में दुनिया में अकेला अन्तराष्ट्रीय समझौता है| इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकतर देश यूरोपीय हैं| यूरोपीय देशों के अतिरिक्त कनाडा, अमेरिका, जापान, मेक्सिको, तुनिशिया और कजाखस्तान ने भी इसपर हस्ताक्षर किये हैं, पर भारत ने आज तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किया हैं|

इस पर सबसे पहले 13 देशों ने हस्ताक्षर किये थे और अबतक 46 देश इस समझौते को स्वीकार कर चुके हैं| इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि जिस तरह दुनिया कोविड 19 महामारी से जूझ रही है, उसी तरह महिलाओं और बालिकाओं पर हिंसा भी एक भयानक महामारी है, जिसकी चपेट में पूरी दुनिया है| पिछले 9 वर्षों में इस दिशा में जो कुछ भी किये गया था, उसे कोविड 19 के दौर ने पूरी तरह ख़त्म कर दिया है, और दुनिया महिलाओं के वैसी ही हो गयी है, जैसी 10 वर्ष पहले थी| संयुक्त राष्ट्र की महिला हिंसा विशेषज्ञ दुब्रावका सिमोनोविक के अनुसार वैश्विक महामारी ने दिखा दिया कि महिलाओं के सन्दर्भ में दुनिया पहले कैसी थी|

वर्ष 2020 में विकसित देशों के समूह, जी 20 के वित्त मंत्रियों और राष्ट्रीय बैंकों के गवर्नर की मीटिंग से पहले गेट्स फाउंडेशन की मुखिया मेलिंडा गेट्स (Malinda Gates) ने फॉरेन अफेयर्स नामक पत्रिका के जुलाई/अगस्त अंक में एक आलेख प्रकाशित किया था, द पेंडेमिक्स टोल ऑन वीमेन| इसमें उन्होंने बताया था कि वैश्विक महामारी का महिलाओं पर असंतुलित प्रभाव पड़ा है, जबकि महिलायें महामारी के प्रभाव कम करने के लिए पुरुषों से अधिक योगदान कर रहीं हैं|

ऐसे में यदि सरकारों ने अर्थव्यवस्था को दुबारा पटरी पर लाने की योजनाओं में यदि महिलाओं को और उनकी समस्याओं को शामिल नहीं किया या फिर उनकी उपेक्षा की तब अर्थव्यवस्था में सुधार कठिन होगा, और केवल महिलाओं की उपेक्षा के कारण वैश्विक जीडीपी में वर्ष 2030 तक 10 खरब डॉलर का नुकसान हो सकता है|

मेलिंडा गेट्स के अनुसार डिजिटल और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी जब तक समान नहीं होगी, लैंगिक समानता नहीं हो सकती है| यदि लैंगिक समानता के लिए अगले चार वर्षों तक सरकारों द्वारा व्यापक कदम नहीं उठाये गए, तब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सरकारों को अनुमान से अधिक समय लगेगा| दुनियाभर में महिलाओं द्वारा अवैतनिक घरेलू कार्यों के मूल्य निर्धारण का समय आ गया है। अब लैंगिक समानता के साथ अर्थव्यवस्था को दुबारा खड़ा करने का समय है| अनेक आकलन बताते हैं कि दुनियाभर में महिलायें यदि दो घंटे भी अवैतनिक घरेलू कार्य में संलग्न रहतीं हैं तो उनके रोजगार के अवसर 10 प्रतिशत से भी कम हो जाते हैं|

मेलिंडा गेट्स लिखती हैं, कोविड 19 का दौर ऐसा दौर है जब सभी देशों के प्रमुख और अन्य राजनेता अपने पूरे परिवार के साथ घर में कैद थे। इस दौर में उन्होंने महिलाओं पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को भी देखा होगा. घरेलू कार्यों के साथ-साथ बच्चों और बुजुर्गों को संभालने की जिम्मेदारी भी महिलायें ही उठातीं हैं| अब इन राजनेताओं और देशों के प्रमुखों को महिलाओं को इस असंतुलित बोझ से बाहर करना होगा, जिससे महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके|

संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल 2020 में ही चेताया था कि कोविड 19 भले ही वायरस से फ़ैलने वाली वैश्विक महामारी हो, पर इसके साथ-साथ बहुत सारी सामाजिक समस्याएं उभर रही हैं, और लॉकडाउन के दौरान बंद घरों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा तेजी से पनप रही है| महामारी और इस तरह की दूसरी आपदाएं हमेशा समाज की कुरीतियों और सर्वहारा वर्ग की समस्यायें प्रमुखता से उजागर करती है| लैंगिक असमानता भी पूरी तरह से उजागर हो गई है|

इस दौर में गर्भवती महिलाओं को अस्पतालों से वापस भेज दिया गया, महिलाओं के घर में अवैतनिक कार्य पहले से अधिक हो गए। सरकारों ने बड़े तामझाम से ऑनलाइन शिक्षा को शुरू किया, पर इसमें करोड़ों बच्चियां पढ़ाई से वंचित रह गईं क्योंकि लैपटॉप या स्मार्टफोन की सुविधा से लड़कियां वंचित हैं|

मेलिंडा गेट्स ने सभी राष्ट्राध्यक्षों से आग्रह किया था कि इस संकट की घड़ी को लैंगिक समानता के अवसर में बदलें, पुराने विश्व को बदल कर एक नई और बेहतर दुनिया बनाएं| महिलाओं को रोजगार की गारंटी मिले, स्वास्थ्य व्यवस्था सुदृढ़ हो और महिलाओं के प्रजनन से सम्बंधित स्वास्थ्य समस्याएं आवश्यक सेवायें घोषित की जाएँ| उन्होंने यह भी कहा था कि सभी प्रकार के नीति निर्धारण में सभी वर्ग के महिलाओं की भागीदारी बढाई जाए|

साल-दर-साल आयोजित किया जाने वाला महिला दिवस, दरअसल कुछ करने का नहीं बल्कि भव्य आयोजनों का दिवस है, जिसके आयोजक पुरुष होते हैं और वही बताते हैं कि हम महिलाओं को कितना पीछे छोड़ चुके हैं और फिर तालियाँ बजाते हैं| यदि, पुरुषवादी सोच से चलने वाली दुनिया में महिलाओं को पीछे धकेलने की प्रवृत्ति नहीं होती तो जाहिर है फिर ऐसे भव्य आयोजनों की जरूरत ही नहीं पड़ती|

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