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एक्सक्लूसिव : कफील खान को जमानत दिलाने वाले वकील से जानिए मुकदमे की एक-एक बात
राजेश पांडेय की रिपोर्ट
जनज्वार। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मथुरा जेल में बंद डॉ कफील खान इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश पर जमानत पर रिहा हो चुके हैं। मगर उनके विरुद्ध FIR दर्ज होने से लेकर उनके जमानत पर रिहा होने तक कई कानूनी पहलू गुजरे, जिनके बारे में उनके अधिवक्ता दिलीप गुप्ता ने जानकारी दी है।
एडवोकेट दिलीप गुप्ता ने कहा 'जेएनयू कैंपस में दिए गए जिस कथित भड़काऊ भाषण को लेकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की गई थी, उसकी सीडी तो डॉ कफील खान को उपलब्ध कराई गयी, पर उसे देखने के लिए उन्हें सीडी प्लेयर नहीं दिया गया। संविधान की धारा 22(5) के तहत किसी भी निरुद्धि आदेश के विरुद्ध प्रभावी प्रत्यावेदन देने का हर नागरिक को अधिकार है। जिसके विरुद्ध निरुद्धि आदेश है, उसे हर वह मैटेरियल उपलब्ध कराना होगा। उसी के आधार पर निरुद्धि आदेश दिया गया है, पर कफील खान को सीडी देखने के लिए सीडी प्लेयर उपलब्ध नहीं कराया गया, जिससे वे उस सीडी को देखकर तदनुसार प्रभावी प्रत्यावेदन दे सकें। यह संविधान की धारा 22(5) का उल्लंघन था, जिसे कोर्ट ने विचारणीय माना। संभवतः देश मे पहली बार बंदी प्रत्यक्षीकरण के केस में इस धारा के अधिकार का उपयोग किया गया है।'
एडवोकेट दिलीप गुप्ता बताते हैं, कोर्ट ने कहा कि जेएनयू के उस पूरे भाषण को उद्धृत न कर उसके एक-दो अंशों को काटकर पिक एंड चूज के तहत आदेश जारी कर दिया गया है, जबकि पूरा भाषण एक राजनीतिक विचारधारा की अभिव्यक्ति थी। चूंकि 12 फरवरी को पार्लियामेंट में वह बिल पास हो रहा था और इधर भाषण हो रहा था। यह एक राजनीतिक विचारधारा का प्रवाह था, जिसे सांप्रदायिक भाषण माना गया।'
डॉ कफील खान के अधिवक्ता दिलीप गुप्ता ने यह सब बातें 'जनज्वार' से हुई बातचीत में कहीं। वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता हैं और बहुचर्चित आरुषि मर्डर केस में भी अधिवक्ता रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की खंडपीठ द्वारा डॉ कफील खान को जमानत दी गई है। हाईकोर्ट में मुख्य रूप से उनके द्वारा कई बिंदुओं को रखा गया।
एडवोकेट गुप्ता ने बताया, 'कफील खान पर आरोप था कि 12 दिसंबर 2019 को जेएनयू कैंपस में उनके द्वारा सांप्रदायिक सद्भावना को बिगाड़ने वाला भाषण दिया गया था। इसे लेकर 13 दिसंबर 2019 को लाइन थाने के इंचार्ज द्वारा 13 दिसंबर 2109 को FIR दर्ज कराई गई थी, जबकि उत्तरप्रदेश एसटीएफ द्वारा उनकी गिरफ्तारी 29 जनवरी 2020 को मुंबई एयरपोर्ट से उस वक्त की गई थी, जब वे एक मेडिकल कैंप में शामिल होने गए थे।
13 दिसंबर 2019 को एफआईआर दर्ज किए जाने के 47 दिन बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। इन 47 दिनों के बीच उनके ऊपर किसी भी तरह का भड़काऊ भाषण देने का कोई आरोप नहीं लगा। इस बात को कोर्ट में प्रमुखता से रखा गया।
एडवोकेट गुप्ता कहते हैं, इस बीच डॉ कफील खान बहराइच के एक मुकदमे, जिसकी लखनऊ में सुनवाई चल रही थी, उसमें सदेह प्रस्तुत हुए, पर उस वक्त न तो उन्हें 13 दिसंबर वाले FIR की जानकारी दी गई, न ही कॉपी दी गई और न ही उन्हें उस मामले में गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कोर्ट में इस बात को रखा।
उन्होंने आगे बताया, '29 जनवरी 2020 को कफील खान की गिरफ्तारी के बाद ट्रांजिट रिमांड पर उन्हें अलीगढ़ लाया गया और अलीगढ़ कोर्ट द्वारा 31 जनवरी को उन्हें न्यायिक हिरासत में मथुरा जेल भेज दिया गया। 2 फरवरी को सीजेएम द्वारा उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई की गई, 10 फरवरी को जमानत याचिका को स्वीकार कर लिया गया और 12 फरवरी को रिलीज ऑर्डर इश्यू किया गया।'
उन्होंने कहा कि जेल सुपरिटेंडेंट द्वारा इस तकनीकी कारण का हवाला दिया गया कि रिलीज ऑर्डर प्रॉपर चैनल से नहीं आया है, जबकि न्यायालय द्वारा आदेश दिया गया था कि अगर कोई टेक्निकल इश्यू हो तो 13 फरवरी को अदालत में प्रस्तुत किया जाय। 13 फरवरी को दूसरा रिलीज ऑर्डर बना, जिसे लेकर स्पेशल मैसेंजर प्रणीत कुमार अलीगढ़ जेल सुपरिटेंडेंट के पास गए, जिन्होंने सीजेएम के हस्ताक्षर को सत्यापित करते हुए स्पेशल मैसेंजर प्रणीत कुमार को मथुरा भेज दिया।'
एडवोकेट गुप्ता का आरोप है कि शाम में 5.30 बजे स्पेशल मैसेंजर रिलीज ऑर्डर लेकर मथुरा जेल गए, पर कफील खान को रिहा नहीं किया गया। उन्होंने कहा 'उसके बाद 13 फरवरी की रात जिलाधिकारी के स्तर से NSA कानून की धारा 3(2) के तहत आदेश पारित कर उनपर NSA ऐक्ट लगा दिया गया।'
एडवोकेट गुप्ता कहते हैं, यह आदेश जेल सुपरिटेंडेंट को 14 फरवरी को रिसीव कराया गया था, चूंकि उच्च न्यायालय को दिए गए अपने हलफनामे में उन्होंने कफील खान को रिहा न किए जाने का कारण यह बताया है कि रिहाई आदेश संध्या में मिला था, इसलिए रिहा नहीं किया गया। यानी 13 फरवरी के डेट में उनके पास NSA लगाए जाने के आदेश की कॉपी नहीं थी, वरना अपने हलफनामे में वे इसकी चर्चा करते।
एडवोकेट गुप्ता ने कहा कि हाईकोर्ट ने इन्ही सब बिंदुओं पर मुख्य रूप से विचार किया और इन तथ्यों और साक्ष्यों को कानूनी रूप से वाजिब ठहराते हुए उनकी जमानत पर रिहाई के आदेश दिये।