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श्रम कानूनों को खत्म करने वाले मोदी ने मजदूरों के कल्याण के लिए लालकिले से पढ़ा मंत्र
राजेश पांडेय का विश्लेषण
जनज्वार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 74वें स्वतंत्रता दिवस समारोह पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए संस्कृत का एक श्लोक पढा। इस श्लोक द्वारा उन्होंने श्रमशक्ति के महत्व को रेखांकित किया। किसी भी देश की उन्नति, प्रगति और वैभव का स्रोत श्रमशक्ति को बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारी policies हमारे process हमारे products सबकुछ बेस्ट होना चाहिए। ऐसे में इस बात की चर्चा प्रासंगिक है कि एक तरफ विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन और इन्हें स्थगित निरस्त कर श्रमिकों के हितों और अधिकारों पर कैंची चलाई जा रही है और सरकारी कंपनियों का निजीकरण तथा विनिवेश कर देश की श्रमशक्ति को निजीकरण की ओर भेजा जा रहा है, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जी का यह वक्तव्य, क्या इन दोनों के बीच कोई तालमेल बैठ रहा है।
कोरोना को लेकर लंबी अवधि तक किए गए लॉकडाउन के बाद देश के उद्योग-धंधे बंद हुए, श्रमिकों के रोजगार छिन गए और लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए। देश की बड़ी श्रमशक्ति सड़कों पर आ गई। लोग बेरोजगार होकर घर बैठ गए। लोगों के पास अपना और परिवार का पेट भरने का साधन नहीं रहा। भुखमरी और आर्थिक मंदी का यह दौर अब भी कायम है।
ऐसे दौर में देश के कई राज्यों ने पुराने श्रम कानूनों में संशोधन किया और श्रमिकों के हितों की रक्षा करने वाली कई धाराओं को कुछ महीनों से लेकर कुछ वर्षों तक के लिए निरस्त कर दिया। श्रमिकों के काम की अवधि, जो पहले 8 घंटे हुआ करती थी, उसे 12 घंटे का कर दिया गया। प्रवासी, अस्थायी और ठेके पर कार्यरत श्रमिकों के हितों से संबंधित क्लॉज खत्म कर दिए गए। इन श्रमिकों के स्वास्थ्य, नौकरी की सुरक्षा, इन्हें हटाए जाने के नियमों आदि में भी कई तरह के बदलाव कर दिए गए। ट्रेड यूनियन, जो मजदूरों के हितों को लेकर मालिकान पर दबाव बनाते रहते हैं, उन्हें मान्यता देने का प्रावधान भी निरस्त कर दिया गया।
रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, रेलवे से जुड़ी अन्य सेवाओं आदि को भी निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। पब्लिक सेक्टर की कई अग्रणी कंपनियों के विनिवेश की ओर कदम बढ़ाए गए हैं। इसके लिए बाजाप्ता एक विभाग का गठन किया गया है, जो विनिवेश की समीक्षा और नोडल एजेंसी का काम देखती है। यानी इन संस्थानों को निजी हाथों में दिए जाने की प्रक्रिया चल रही है। निजी कंपनियों में श्रमिक हित की बात एक तरह से बेमानी ही होती है।
एक तरफ निजीकरण और विनिवेश की प्रक्रिया, दूसरी तरफ श्रम कानून में संशोधन-शिथिलीकरण, पुराने कानूनों के स्थगन और निरस्तीकरण, जिनमें श्रमिक हित के लिए कोई खास स्पेस नहीं है, इनके बीच श्रमशक्ति की महत्ता को रेखांकित करना कुछ अनसुलझे सवाल तो जरूर छोड़ जा रहा है। यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या श्रमशक्ति का महत्व सिर्फ सैद्धांतिक और किताबी भाषा बनकर नहीं रह गई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है मेरे प्यारे देशवासियों हमारे यहां कहा गया है, 'सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं, श्रममूलं च वैभवम्'। अर्थात किसी समाज, किसी भी राष्ट्र की आज़ादी का स्रोत उसका सामर्थ्य होता है, और उसके वैभव का, उन्नति प्रगति का स्रोत उसकी श्रम शक्ति होती है।
इस श्लोक में उन्होंने श्रमशक्ति की महत्ता बताई है। अभी देश में सरकारी विभागों में भी ठेके और आउटसोर्सिंग के माध्यम से ज्यादातर बहालियां की जा रहीं हैं। इनके माध्यम से बहाल कामगारों के हितों की सुरक्षा के लिए कोई नियामक नहीं होता, तो निजी क्षेत्रों की क्या बात की जाय। ऐसी परिस्थिति में श्रमशक्ति को काम करने का सही माहौल, उनकी नौकरी की सुरक्षा, उनके भविष्य की सुरक्षा आदि भी गौण हो जाती हैं।
पिछले कुछ दिनों में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात सहित कई राज्यों ने पुराने श्रम कानूनों में संशोधन या कुछ अवधि तक निरस्तीकरण को लागू करने की तैयारी की है। सभी राज्यों में हालांकि इसके ड्राफ्ट अलग-अलग हैं, पर उनमें बहुत-सी चीजें कॉमन भी हैं।
उत्तरप्रदेश में क्या हो रहे बदलाव?
1. संसोधन के बाद यूपी में अब केवल बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996 लागू रहेगा।
2. उद्योगों को वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट 1923 और बंधुवा मजदूर एक्ट 1976 का पालन करना होगा।
3. उद्योगों पर अब पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936 की धारा 5 ही लागू होगी।
4. श्रम कानून में बाल मजदूरी व महिला मजदूरों से संबंधित प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।
5. उपर्युक्त श्रम कानूनों के अलावा शेष सभी कानून अगले 1000 दिन के लिए निष्प्रभावी रहेंगे।
6. औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों का स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति संबंधित कानून समाप्त हो गए।
7. ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी खत्म कर दिया गया है।
8. अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून भी समाप्त कर दिए गए हैं।
9. लेबर कानून में किए गए बदलाव नए और मौजूदा, दोनों तरह के कारोबार व उद्योगों पर लागू होगा।
10. उद्योगों को अगले तीन माह तक अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम कराने की छूट दी गई है।
मध्यप्रदेश ने श्रम कानून में क्या बदलाव किये हैं...
1. छूट की इस अवधि में केवल औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 लागू रहेगी।
2. 1000 दिनों की इस अवधि में लेबर इंस्पेक्टर उद्योगों की जांच नहीं कर सकेंगे।
3. उद्योगों का पंजीकरण-लाइसेंस प्रक्रिया 30 दिन की जगह 1 दिन में ऑनलाइन पूरी होगी।
4. अब दुकानें सुबह 6 से रात 12 बजे तक खुल सकेंगी। पहले ये समय सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक था।
5. कंपनियां अतिरिक्त भुगतान कर सप्ताह में 72 घंटे ओवर टाइम करा सकती हैं। शिफ्ट भी बदल सकती हैं।
6. कामकाज का हिसाब रखने के लिए पहले 61 रजिस्टर बनाने होते थे और 13 रिटर्न दाखिल करने होते थे।
7. संशोधित लेबर कानून में उद्योगों को एक रजिस्टर रखने और एक ही रिटर्न दाखिल करने की छूट दी गई है।
8. 20 से ज्यादा श्रमिक वाले ठेकेदारों को पंजीकरण कराना होता था। ये संख्या बढ़ाकर अब 50 कर दी गई है।
9. 50 से कम श्रमिक रखने वाले उद्योगों व फैक्ट्रियों को लेबर कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है।
10. संस्थान सुविधानुसार श्रमिकों को रख सकेंगे। श्रमिकों पर की गई कार्रवाई में श्रम विभाग व श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होगा।
गुजरात सरकार द्वारा किए गए अहम बदलाव
1. नए उद्योगों के लिए 7 दिन में जमीन आवंटन की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।
2. नए उद्योगों को काम शुरू करने के लिए 15 दिन के भीतर हर तरह की मंजूरी प्रदान की जाएगी।
3. नए उद्योगों को दी जाने वाली छूट उत्पादन शुरू करने के अगले दिन से 1200 दिनों तक जारी रहेगी।
4. चीन से काम समेटनी वाली जापानी, अमेरिकी, कोरियाई और यूरोपीयन कंपनियों को लाने का है लक्ष्य।
5. गुजरात ने नए उद्योगों के लिए 33 हजार हेक्टेयर भूमि की चिह्नित।
6. नए उद्योगों के रजिस्ट्रेशन व लाइसेंस आदि की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है।
7. नए उद्योगों को न्यूनतम मजदूरी एक्ट, औद्योगिक सुरक्षा नियम और कर्मचारी मुआवजा एक्ट का पालन करना होगा।
8. देश की जीडीपी में गुजरात की हिस्सेदारी 7.9 फीसद है। कुल निर्यात में हिस्सेदारी करीब 20 फीसद है।
9. उद्योगों को लेबर इंस्पेक्टर की जांच और निरीक्षण से मुक्ति।
10. अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में परिवर्तन करने का अधिकार।
क्या है श्रमिक संगठनों की आशंका, क्या होगा असर?
1. श्रमिक संगठनों को आशंका है कि उद्योगों को जांच और निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा।
2. शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी मिलने से हो सकता है लोगों को बिना साप्ताहिक अवकाश के प्रतिदिन ज्यादा घंटे काम करना पड़े। हालांकि, इसके लिए ओवर टाइम देना होगा।
3. श्रमिक यूनियनों को मान्यता न मिलने से कर्मचारियों के अधिकारों की आवाज कमजोर पड़ेगी।
4. उद्योग-धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ सकती है। हालांकि, इसके लिए भी ओवर टाइम का प्रावधान किया गया है।
5. पहले प्रावधान था कि जिन उद्योग में 100 या ज्यादा मजदूर हैं, उसे बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी। अब ऐसा नहीं होगा।
6. श्रमिक संगठनों को आशंका है कि मजदूरों के काम करने की परिस्थिति और उनकी सुविधाओं पर निगरामी खत्म हो जाएगी।
7. आशंका है कि व्यवस्था जल्द पटरी पर नहीं लौटी तो उद्योगों में बड़े पैमाने पर छंटनी और वेतन कटौती शुरू हो सकती है।
8. ग्रेच्युटी से बचने के लिए उद्योग, ठेके पर श्रमिकों की हायरिंग बढ़ा सकते हैं।