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शाही नौसेना के इन नाविकों को मिले राष्ट्रीय नायकों जैसा सम्मान, 1946 को कराची से कलकत्ता तक फैल गया था नौसैनिकों का विद्रोह
डॉ. चतुरानन ओझा की टिप्पणी
Royal Indian Navy mutiny : आज 18 फरवरी भारतीय नौसेना विद्रोह दिवस है। अग्रेजी राज में हो रही लूट, गैरबराबरी और दमन ने अंततः भारतीय नौसेना को भी विद्रोह के लिए मजबूर कर दिया। यह अंग्रेजी राज के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हुआ। 18 से 23 फरवरी 1946 तक मुंबई में होने वाले नौसेना विद्रोह को भले ही आज भुला दिया गया हो, किंतु यह हमारे स्वाधीनता संग्राम की शौर्यपूर्ण घटनाओं में से एक है।
9 सैनिकों को विदेश में सेवा करने का अवसर मिला जिसका परिणाम यह हुआ कि उनका विश्व के घटनाक्रम से संपर्क हुआ आजाद हिंद फौज के मुकदमे एवं भारत में युद्ध के बाद चल रहे जन आंदोलनों का प्रभाव भी सेना में बढ़ता गया फल स्वरूप 18 फरवरी के सिगनल्स प्रशिक्षण प्रतिष्ठान "तलवार" में नाविकों ने खराब खाने एवं नस्ली अपमान के विरुद्ध भूख हड़ताल कर दी। अगले दिन हड़ताल मुंबई बंदरगाह के 22 जहाजों में फैल गई। विद्रोही बेड़े के मस्तूलों पर तिरंगे, चाँद और हंसिया हथौड़े के निशान वाले झंडे एक साथ लहराए गए।
विद्रोह को कारगर बनाने के लिए नाविकों ने एक नौसेना केंद्रीय हड़ताल समिति का चुनाव किया जिसके प्रमुख एमएस खान थे। उनकी मांगों में बेहतर खाने तथा गोरे और भारतीय नागरिकों के लिए समान वेतन इत्यादि की मांगों के साथ ही आजाद हिंद फौज के एवं अन्य राजनीतिक कैदियों की रिहाई और इंडोनेशिया से सैनिकों के वापस बुलाए जाने की मांगें भी सम्मिलित थीं।
विद्रोही सैनिक शांत पूर्ण हड़ताल और पूर्ण विद्रोह के बीच पर शोपीस में पड़े रहे, जो घातक सिद्ध हुआ। 20 फरवरी को उन्होंने अपने अपने जहाजों में लौट जाने के आदेश का पालन किया, जहां सेना के गार्डों ने उन्हें घेर लिया। 9 सैनिकों ने घेरा तोड़ने का प्रयास किया। एडमिरल गॉडफ्रे ने नौसेना को नष्ट कर देने की धमकी दी। उसी दिन तीसरे पहर भाईचारे के हृदयस्पर्शी दृश्य देखने को मिले, लोगों की भीड़ गेटवे ऑफ इंडिया पर नाविकों के लिए खाना लेकर आई थी और दुकानदार भी कह रहे थे कि वे जो चाहें उनकी दुकानों से ले लें। हड़ताल की चरम अवस्था में 78 जहाज 20 तटीय प्रतिष्ठान और 20000 नाविक उसमें सम्मिलित थे। उस सुबह कराची में एक बड़ी लड़ाई के पश्चात ही हिंदुस्तान से समर्पण कराया जा सका और हिंदू और मुसलमान विद्यार्थियों एवं कामगारों ने पुलिस और सेना के साथ हिंसक झड़पों में भाग लेकर विद्रोह के प्रति अपना हार्दिक समर्थन प्रदर्शित किया।
नौसेना विद्रोह के समर्थन में मुंबई की सीपीआई ने आम हड़ताल का आह्वान किया, जिसका अरूणा आसफ अली और अच्युत पटवर्धन जैसे कांग्रेस समाजवादियों ने समर्थन किया। इसके विपरीत कांग्रेस और लीग की प्रांतीय इकाइयों ने इनका विरोध भी किया, किंतु कांग्रेस और मुस्लिम लीग के विरोध के बावजूद 22 फरवरी को 3,00,000 लोगों ने मुंबई में अपने औजारों को हाथ नहीं लगाया। लगभग सभी मिले बंद हो गईं और सड़कों पर हिंसक झड़पें हुईं। यह स्थिति दो दिनों तक बनी रही।
सरदार पटेल ने इस बार जिन्ना की सहायता से 23 फरवरी को नागरिकों को समर्पण के लिए तैयार कर लिया। उन्हें आश्वासन दिया गया कि राष्ट्रीय दल उन्हें अन्याय का शिकार नहीं होने देंगे, लेकिन इस वादे को शीघ्र ही चुपचाप भुला दिया गया, यह कहते हुए कि सेना के अनुशासन को छोड़ा नहीं जा सकता। बाद में जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार किया कि सेना और जनता के बीच की लोहे की दीवार तोड़ने के लिए नौसेना की हड़ताल महत्वपूर्ण थी।
इस घटना का मूल्यांकन करते हुए इतिहासकारों ने स्वीकार किया है कि आजाद हिंद फौज के जवानों के ठीक विपरीत शाही नौसेना के इन नाविकों को कभी राष्ट्रीय नायकों जैसा सम्मान नहीं मिला, यद्यपि उनके कार्य कुछ अर्थों में आजाद हिंद फौज के फौजियों से कहीं अधिक खतरनाक थे। जापानियों के युद्ध बंदी शिविर की कठिनाई भरी जिंदगी जीने से आजाद हिंद फौज में भर्ती होना कहीं बेहतर था।
नौसेना केंद्रीय हड़ताल समिति का यह अंतिम संदेश स्मरणीय है: "हमारी हड़ताल हमारे राष्ट्र के जीवन की एक ऐतिहासिक घटना रही है। पहली बार सेना के जवानों और आम आदमी का खून सड़कों पर एक साथ एक लक्ष्य के लिए बहा। हम फौजी इसे कभी नहीं भूलेंगे। हम यह भी जानते हैं कि हमारे भाई-बहन भी इसे नहीं भूलेंगे। हमारी महान जनता जिंदाबाद! जय हिंद!"
(चतुरानन ओझा उत्तर प्रदेश समान शिक्षा आंदोलन से जुड़े हैं।)