मोदी सरकार के 3 अध्यादेशों के विरोध में दिल्ली पहुंचा किसान आंदोलन, कहा भुखमरी की साजिश
जनज्वार ब्यूरो, नई दिल्ली। ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले करीब 20 किसान नेताओं ने आज सोमवार 14 सितंबर को यहां जंतर-मंतर पर सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव के साथ धरना दिया। हरियाणा से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन दिल्ली पहुंच गया है। जल्द ही हरियाणा के अलावा यूपी के किसानों के भी इस आंदोलन का हिस्सा बनने के आसार हैं।
किसान केंद्र सरकार के उन तीन अध्यादेशों को भुखमरी की साजिश बता रहे हैं, जिन्हें सरकार किसान हित में मानती है। यूपी के किसान भी इस आंदोलन का आज हिस्सा बनने वाले थे। लेकिन पुलिस ने उन्हें यूपी गेट पर ही रोक लिया। इसी तरह हरियाणा के किसानों को भी नरेला बॉर्डर पर रोक लिया गया। किसानों के गुस्से को देखते हुए दिल्ली सरकार ने राज्य की सीमाओं को सील कर दिया है। हालांकि, इस कदम से किसानों का गुस्सा और भड़क गया है।
आइए समझते हैं कि केंद्र सरकार के तीनों अध्यादेश क्या हैं और किसान संगठन इससे क्यों नाराज हैं
पहला अध्यादेश मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षण अध्यादेश- 2020 के नाम से लाया गया है। यह और कुछ नहीं बल्कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का केंद्रीय कानून है। पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है।
अभी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एपीएमसी एक्ट 2003 के तहत आती है। लेकिन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने किसानों को बाजार पर निर्भर बना दिया है। कंपनी ही तय करेगी कि किसान को कौन सी फसल उगानी है और उसका दाम भी कंपनी ही तय करेगी, सरकार नहीं।
जब किसान की उपज का दाम भी कंपनियों के हवाले हो जाएगा तो किसान की फसल खराब होने पर भी कंपनी बाजार में दाम गिरने का हवाला देकर किसान के नुकसान की भरपाई नहीं करेगी। 1917 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भी बिहार के चंपारण में किसानों से अनुबंध के तहत नील की खेती करवाती थी। गांधीजी के सत्याग्रह से सरकार को मजबूरन उसे बंद करना पड़ा था।
दूसरा अध्यादेश कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 है। अभी किसान अपनी उपज मंडी तक लेकर आते हैं। नए अध्यादेश से कृषि का बाजार कंपनियों के हवाले हो चुका है। यह कंपनियों को मंडी से बाहर किसानों की उपज को मनमाने दाम पर खरीदने को बढ़ावा देता है।
केंद्र सरकार ने अध्यादेश के रास्ते आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन कर दिया है। आवश्यक वस्तु अधिनियम की सूची से खाद्यान्न, तिलहन, दलहन फसलों के साथ आलू और प्याज जैसी प्रमुख फसलों को बाहर कर दिया है।
यानी इन वस्तुओं के कारोबार और कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा। इन वस्तुओं की कामतें अगर बढ़ती हैं तो इसका लाभ किसानों को नहीं मिलेगा। मुनाफाखोर कंपनियां अनाजों, दालों, तिलहन व आलू प्याज आदि की जमाखोरी कर जब चाहेंगी बाजार में सप्लाई रोक कर वस्तुओं के दामों को मनमर्जी से बढ़ाकर मनमाना मुनाफा वसूल सकेंगी और देश में भुखमरी का संकट पैदा कर देंगी।