विकासशील देशों के श्रमिकों की श्रमशक्ति की लूट के बलबूते अमीर हो रहे हैं विकसित देश !
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
High consumption of resources and products in Global North is possible only because of massive appropriation of labour in Global South : दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों के श्रमिकों की भागीदारी 90 प्रतिशत है, पर कुल वैश्विक मुनाफे में इनके हिस्से महज 21 प्रतिशत आता है। दुनिया के तथाकथित विकसित देश अपने श्रमिकों के बलबूते पर नहीं, बल्कि विकासशील देशों के श्रमिकों के बलबूते पर लगातार अमीर हो रहे हैं। इन श्रमिकों में कुशल, अर्धकुशल और सामान्य – सभी वर्ग के श्रमिक शामिल हैं।
प्रायः माना जाता है कि विकसित देश विकासशील देशों से केवल सामान्य श्रमिकों का आयात करते हैं, पर यह धारणा गलत है। सच तो यह है कि किसी भी विकसित देश में पूर्ण कुशल श्रमिकों की श्रेणी में भी अपने देश के श्रमिकों की तुलना में विकासशील देशों के श्रमिक अधिक हैं। इन श्रमिकों को वहां के स्थानीय श्रमिकों की तुलना में एक ही काम के लिए अपेक्षाकृत कम वेतन दिया जाता है।
हाल में ही नेचर कम्युनीकेशंस नामक जर्नल में इसी विषय पर एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार अमीर देशों द्वारा लूट दो तरीके से होती है – विकासशील देशों से सस्ते में उद्योगों के लिए कच्चा माल खरीदा जाता है, और फिर इसी सस्ते कच्चे माल से उत्पाद बनाकर विकासशील देशों में महंगी कीमत पर बेचा जाता है। विकासशील देशों के श्रमिक ही एक तरफ विकासशील देशों में कच्चा माल या फिर अमीर देशों के बाजार के हिसाब से उत्पाद तैयार हारते हैं, दूसरी तरफ इन्हीं देशों के श्रमिक अमीर देशों में भी उत्पाद तैयार करते हैं।
जाहिर है, अमीर देशों की हरेक संसाधन और उत्पाद के अत्यधिक खपत की आदत के मूल में विकासशील देशों के श्रमिक हैं। इन अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ बार्सिलोना के इंस्टीट्यूट ऑफ़ एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया है। इसके लिए अमीर देशों द्वारा वर्ष 1995 से 2021 के बीच आयात और निर्यात का गहन विश्लेषण किया गया है, और इन उत्पादों को बनाने में मानव श्रम का आकलन किया गया है।
वर्ष 2021 में अमीर देशों ने विकासशील देशों से जितना आयात किया, मानव श्रम के सन्दर्भ में उसकी कीमत 906 अरब घंटे है। दूसरे शब्दों में, विकासशील देशों ने अमीर देशों को जितना सामान भेजा उसे तैयार करने में श्रमिकों ने 906 अरब घंटे की मिहनत की। इसी वर्ष अमीर देशों ने विकासशील देशों को जितना सामान निर्यात किया, उसे तैयार करने में महज 80 अरब घंटे का मानव श्रम लगा।
इन दोनों आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि अमीर देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए विकासशील देशो के श्रमिकों ने अकेले वर्ष 2021 में ही 826 अरब घंटे का अधिक श्रम किया, दूसरे शब्दों में अमीर देशों के श्रमिकों के 1 घंटे के श्रम की तुलना में विकासशील देशों के श्रमिकों ने 11 घंटे श्रम किया। यह स्थिति हरेक औद्योगिक क्षेत्र और कुशलता के सन्दर्भ में हरेक स्तर के श्रमिक की है। विकासशील देशों के श्रमिकों द्वारा 826 अरब घंटे अधिक किया गया श्रम, पूरे अमेरिका और यूरोप के श्रमिकों के सम्मिलित श्रम से भी अधिक है।
अमीर देशों की कीमतों के अनुसार विकासशील देशों के श्रमिकों द्वारा किया गया 826 अरब घंटे के श्रम की कीमत 18.44 खरब डॉलर है। इस अध्ययन में शामिल जैसन हिकेल के अनुसार अमीर देश की समृद्धि का आधार विकासशील देशों के संसाधनों और श्रम शक्ति की लूट है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो असमानता है, उससे अमीर देश पहले से अधिक समृद्ध होते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ विकासशील देश लगातार गरीब और कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं।
विकासशील देशों में एक ही काम के लिए अमीर देशों की तुलना में श्रमिकों का वेतन 87 से 95 प्रतिशत तक कम है। इस असमानता का आलम यह है कि अमीर देशों के सामान्य श्रमिक की तुलना में विकासशील देशों के उच्च-दक्षता या कुशलता वाले श्रमिक का वेतन भी एक-तिहाई से भी कम है।
इस अध्ययन के अनुसार यदि विकासशील देश अमीर देशों द्वारा अपने संसाधनों और श्रम शक्ति की लूट बंद कर दें तो अमीर देशों में उपभोक्ता उत्पादों की खपत 50 प्रतिशत से भी कम रह जायेगी।
संदर्भ:
Jason Hickel et al, Unequal exchange of labour in the world economy, Nature Communications (2024). DOI: 10.1038/s41467-024-49687-y