Begin typing your search above and press return to search.
आजीविका

Ground Report : योगी के रामराज में भूख से मरते मुसहरों की भयावह और मार्मिक तस्वीर, नमक-भात के भी लाले

Janjwar Desk
27 Jun 2021 3:29 AM GMT
Ground Report : योगी के रामराज में भूख से मरते मुसहरों की भयावह और मार्मिक तस्वीर, नमक-भात के भी लाले
x

file photo (4 बच्चों और पति की मौत के बाद भीख मांगकर दो बेटियों के साथ गुजारा करती मुसहर महिला को नहीं मिलता किसी सरकारी योजना का लाभ)

न घर, न शिक्षा, न ही पेटभर खाना, कुछ ऐसी है कुशीनगर के मुसहर टोले की तस्वीर, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के क्षेत्र के विकास की हकीकत बयां करती खास रिपोर्ट....

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के क्षेत्र कुशीनगर में आने वाले मुसहर टोले की बदहाली दिखाती अजय प्रकाश की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार। मुसहरों की बदहाली ऐसी है कि नमक-भात भी मिल जाये तो भी शुक्रगुजार हैं। सिर पर छत नही है, पेड़ों पर सामान डाला हुआ है। बच्चे कुपोषित और बीमार। स्वास्थ्य सुविधायें, सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित तंगहाल और बदहाल जीवन जी रहे हैं, मुसहर टोला के 1500 लोग। बदहाली की दास्तां देख शायद आप भी अनायास बोल पड़ें, कहां है विकास?

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। चुनाव से पहले नेताओं को जनता की याद आयेगी। बड़े-बड़े वादे होंगे, दावे होंगे। गरीबों को हर सुविधा देने की चुनावी घोषणाएं होंगी, लेकिन क्या वाकई तस्वीर बदलेगी। ये सवाल इसलिए, क्योंकि राज्य की मौजूदा सरकार भी गरीबों से कई वादे कर के ही सत्ता में आयी।

डबल इंजन वाली मोदी-योगी की सरकार, यानी डबल स्पीड से विकास, लेकिन कहां है विकास। राज्य के कुशीनगर के मुसहर टोला में तो विकास की एक किरण तक नहीं दिखी। अगर कुछ दिखा तो बदहाली की दास्तां बयां करते लोगों के आंसू।

लगभग 65 साल की बुजुर्ग महिला अपनी कहानी बयां करते-करते रो पड़ती है। उसके पास भरपेट खाना तो छोड़िये हर रोज के लिए नमक भात भी नसीब नहीं है। 4 बेटों और पति की मौत के बाद भी न तो इस महिला को वृद्धावस्था पेंशन मिलती है और न ही विधवा पेंशन।

वृृद्धा भोजपुरी में भरे गले से कहती है, 'ऐ बाबू हमारी दास्तां क्या सुनोगे, इतना भी पैसा यानी 100 रुपया भी नहीं है कि सरकारी कोटे से मिलने वाला अनाज ही घर ला पायें। किसीसरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। मेरे 4 बेटों और पति की मौत हो चुकी है, दो बेटियों और अपना गुजारा किसी तरह भीख मांगकर कर रही हूं। आज मेरे पति और बेटे जिंदा रहते तो मुझे से दुर्दिन नहीं देखने पड़ते, 4 पैसे कहीं से भी कमाकर लाते जिससे घर चलता।'

दलितों में सबसे पिछड़े माने जाने वाले मुसहरों के इस टोले में चारों तरफ झाड़-फूस के टूटे-फूटे मकान दिखे। गरीबी ऐसी कि न बच्चों के तन पर पूरे कपड़े दिखे और न बड़ों के। ना सिर पर आशियाना, ना शिक्षा, ना ही रोटी-रोजगार के साधन। बदहाली की इंतहा यहां आप एक साथ देख सकते हैं और सरकारी भ्रष्टाचार के भी तमाम उदाहरण यहां दिख जायेंगे।

बदहाली की इंतहा के साथ जीता मुसहर टोला

मोदी जी का स्वच्छ भारत अभियान, हर घर गैस योजना हो या फिर हर सर पर छत का विकास मॉडल, सभी की यहां धज्जियां उड़ती दिखीं। ग्राम प्रधानइंदिरा आवास के नाम पर तमाम परिवारों से घूस लेता है तो एक जोड़ा तो यहां अपनी व्यथा बताता ऐसा मिला, जिनके एकाउंट से पूरा पैसा निकलवाकर पूर्व ग्राम प्रधान केशू छीन ले गया। आखिर कहां करें ये गरीब इस भ्रष्टाचार की शिकायत। हो सकता है सरकारी आंकड़ों में इस टोले को शौचालय समेत इंदिरा आवास की तमाम सुविधायें मिल चुकी हैं, मगर असलियत में यह कैसा नरक झेल रहे हैं, इसकी असली झलक बरसात में नजर आती है।

यूपी के कुशीनगर जिले का मुसहर टोला, जो पडरवा थाना के कोयलसवाबुजुर्ग बाइस टोला में आता है। ये इलाका राज्य के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही का विधानसभा क्षेत्र है। 1500 की आबादी वाले इस टोले में शायद ही किसी ने अपने विधायक को देखा है। और शायद ही कभी विधायक जी को चुनाव जीतने के बाद इनकी याद आय़ी हो। लोगों को तो अपने विधायक का नाम तक नहीं पता।

शौचालय योजना या फिर इंदिरा आवास योजना में जहां हद दर्जे का भ्रष्टाचार इस टोले के भुक्तभोगी खुद बयां करते हैं, वहीं इस टोले में इक्का-दुका लोगों के पास ही पक्के मकान हैं। अगर कोई मकान है तो आधा ढहा हुआ, टूटा हुआ।

ना कोई पेंशन, ना ही आवास

गरीबों के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार कई योजनाएं बनाती तो है, लेकिन लगता है कि इन सरकारी योजनाओं को इस मुसहर टोले का पता नहीं मालूम। या फिर बाबू लोग (अधिकारी) इसे यहां पहुंचने नहीं देते। जिन्हें सरकार की किसी कल्याणकारी योजना का कोई लाभ मिला भी तो इसके लिए पहले रिश्वत देनी पड़ती है, फिर जाकर काम होता है।

प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर टोला के अधिकांश लोगों ने घूस देने का आरोप लगाया। टोला के रहने वाले ठाकुर कहता है, 'ग्राम प्रधान इन योजना के बदले मिलने वाले एक लाख 20 हजार में से 20 हजार घूस लेते हैं।'

मुसहर टोला के रहनेवाले दीपक बताते हैं, 'प्रधान ने आवास योजना के पैसे खुद रख लिये। दीपक की पत्नी ने बताया कि प्रधान ने उसके हाथों से योजना की राशि ये बोलकर छीन ली गयी कि ये उसके बाप की कमाई नहीं है। तीन किस्त में पैसे निकाले गये, लेकिन तत्कालीन प्रधान केशू सारे पैसे छीनकर ले गया।'

इंदिरा आवास की हकीकत टोला निवासी महिला माया ​बताती है, मेरी गलती बस इतनी रही कि दो कट्ठा खेत बेचकर घर बनवाने की सोच ली। खेत बेचकर जो पैसे आये, उससे दीवार तो बन गयी, लेकिन सिर पर छत नहीं आ सकी। किसी तरह एस्बेस्टर की छत बनायी, लेकिन अब यही छत उसके लिए आफत बन गयी है, क्योंकि उसे आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा।'

मुसहर टोले में घरों का यही है हाल

सिर पर छत बनना यहां के लोगों के लिए किसी सपने के पूरा होने जैसा है। इस टोले में रहने वाली कुंती देवी को भी आवास योजना का लाभ नहीं मिला। उनकी मानें तो प्रधान ने कहा कि वोट नहीं दिया तो योजना का लाभ कैसे दें, लेकिन नये प्रधान ने आवास दिलवाने का आश्वासन जरुर दिया है।

यहीं के रहने वाले ठाकुर कहते हैं, 'हम लोगों को रहने के लिए कोई सुविधा नहीं है। बारिश के दिनों में ये लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर है, हमारे घरों में घुटने से ऊपर तक पानी भर जाता है। पक्की सड़क तो नजर नहीं आय़ी, गली-कूचे की हालत भी खस्ता। बारिश में पानी भरने से यहां जिंदगी किसी जहन्नुम से कम नहीं होती।

शिक्षा-स्वास्थ्य से महरूम लोग

मुसहर टोला में रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं। बच्चों को ना उचित शिक्षा मिल पा रही है और न ही परिवार के लोग इस पर ज्यादा ध्यान देते है। वैसे भी जब दो जून की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से हो तो शिक्षा की बात बेमानी लगती है।

कहने को टोला के पास ही एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन यहां न तो डॉक्टर नजर आते हैं, ना कोई मेडिकल स्टाफ। जनज्वार की टीम सुबह साढ़े दस बजे पीएचसी सेंटर पहुंची, जहां कुछ लोग वैक्सीनेशन के लिए डॉ. और स्टाफ का इंतजार करते नजर आय़े। पीएचसी में टीकाकरण अभियान चल रहा है, लेकिन वैक्सीनेशन से संबंधित इंतजाम नदारद दिखे।

काफी इंतजार के बाद एक स्टाफ पहुंचा, जिसके पास देर से आने के अपने बहाने थे। वह पीएचसी में दो साल से पोस्टेड डॉक्टर रविशंकर सिंह की तरफदारी करने से नहीं चूका। उसके अनुसार, डॉ. सिंह रोज समय पर आते हैं, बस आज ही लेट हुए हैं। खैर डॉक्टर, स्टाफ की मनमानी के बीच अस्पताल की हालत भी दयनीय दिखी। दीवारों में सीलन, टूटी कुर्सियां, टूटे पंखे, बिखरे सामान। पीएचसी के बारे में लोग कहते हैं कि डॉक्टर को खोजना पड़ता है। पैसा है नहीं तो इलाज कहां से करायें।

टोला के लोग बेहद गरीब हैं, ऐसे में उनके पास पेट भर खाना नहीं है तो पौष्टिक खाना तो दूर की कौड़ी है, जिसका नतीजा है कि इलाके के बच्चे कुपोषित है। यहां रहने वाली किशोरी कहती है, 'मेरी बच्ची कुपोषित है, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती। दाने-दाने को मोहताज परिवार पौष्टिक आहार कहा से लाये। लेकिन सरकारी तंत्र का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। बच्चों को दूध देने के सवाल पर टोला निवासी कुंती देवी कहती हैं कि खाना मुश्किल से जुटता है। चार बेटा, पांच नाती वाले परिवार में साग-सब्जी से मुश्किल से मिल पाता है। दूध कहां से लायेंगे?

शौचालय, उज्ज्वला योजना भी नदारद

1500 की आबादी वाले इस टोला के बारे में शौचालय के बारे में रमावती देवी कहती हैं कि वैसे तो करीब 50 शौचालय बनाये गये। लेकिन इनमें से काम के लायक पांच-दस ही है। बाकी शौचालय या तो टूटे-फूटे है, या अधूरे पड़े हैं। हालत कैसी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग अपने शौचालय में चारा रख रहे हैं। गांव के भोला बताते हैं कि शौचालय में पाइप लगेगा तब ही इस्तेमाल कर पायेंगे। घर नहीं है, इसलिए शौचालय में भूसा भरकर रखते हैं।

पीएम मोदी के महत्वाकांक्षी उज्जवला योजना की ऊष्मा भी यहां तक नहीं पहुंची है। महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर है। कहीं-कहीं तो ईंट को जोड़कर चूल्हा बनाया गया है। कहीं घर के अंदर तो कहीं बाहर। बारिश में जब ये चूल्हे भींग जाते होंगे तो कैसे इन पर रोटी सिंकेगी, खाना बनेगा। हां, इक्का-दुक्का घर में उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस मिली। टोला की रहनेवाली केसरी कहती है, रसोई गैस तो मिला है, लेकिन उसे दोबारा भरवाने की हैसियत उसकी नहीं है।

मुसहर टोले के जिन घरों में बने हैं शौचालय, उनका हाल है कुछ ऐसा

वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल होते हैं मुसहर : शिवाजी राय

जिस विकास की बात केंद्र की मोदी सरकार बीते दो शासन और यूपी की योगी सरकार कर रही है, उसकी हकीकत तो हमने आपको बतायी। विकास से कोसों दूर इस टोले की बदहाली का कारण पूछने पर किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष शिवाजी राय कहते हैं, ये मुसहर जाति बदहाल है। इनको आज तक घर नहीं मिला है। सरकार और सरकारी तंत्र के आगे मजबूर ये लोग बस वोट के रूप में इस्तेमाल होते हैं। सिर्फ इस टोले की नहीं पूरे यूपी में इनकी यही हालत है। दलितों की ये पिछड़ी जाति सरकारी तंत्र की उपेक्षा का दंश झेल रही है। कोई सरकारी योजना टोला तक पहुंचती ही नहीं।

मुसहरों के कमजोर होने की बात करते हुए शिवाजी राय कहते हैं, इनके लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। इनका प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं है। सामाजिक स्तर पर हुई लड़ाई में मुसहर जाति के लिए आवाज नहीं उठायी गयी। ताकतवरों के हित में हर कुछ हुआ, लेकिन यूपी में 18 जातियों की हालत बहुत ही दयनीय है। इनके श्रम का शोषण होता है। अति पिछड़े ये लोग आज भी नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

वहीं सामाजिक कार्यकर्ता जर्नादन शाही कहते हैं, मुसहर टोला के 80 फीसद लोग भूमिहीन है। इनके पास न तो आशियाना है, न ही योजना का लाभ। सरकारी सुविधा जमीन तक नहीं पहुंच रही। वृद्धा पेंशन हो, विधवा पेंशन हो कुछ नहीं मिलता। हॉस्पिटल में सरकारी डॉक्टर आते नहीं हैं। शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला है। कुल मिलाकर देखें तो सरकारी तंत्र यहां पूरी तरह से विफल नजर आता है। यहां लोगों की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।

वैसे तो तथाकथित विकास की कड़वी सच्चाई दिखाने से सरकार और उनका तंत्र बिफर पड़ता है। ऐसे सांसद, मंत्री, विधायक, सरकार का क्या लाभ जो इन गरीबों की वोट की मदद से सत्ता में तो आ जाते हैं, लेकिन फिर इन्हें पलटकर नहीं देखते है। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे कर एक बेहतर जिंदगी की झूठी उम्मीद बंधाने वाले नेताओं को ये समझने की जरूरत है कि इन टूटे-फूटे घरों में किसी राजनीतिक दल का झंडा नहीं है।

1500 की आबादी में शायद एक-दो लोग ही किसी नेता को पहचानते हो। इन लोगों को किसी पॉलिटिकल पार्टी से कोई मतलब नहीं है। अगर इन्हें किसी चीज से मतलब है तो वो है दो वक्त की रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और वो तमाम सुविधाएं जो एक बेहतर जिंदगी जीने के लिए जरूरी होती है।

Next Story