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आजीविका

किसानों की आमदनी दोगुनी करने के जुमलों के बीच हर साल बढ़ रहा किसान आत्महत्या का आंकड़ा, प्रतिघंटे एक अन्नदाता ने किया सुसाइड

Janjwar Desk
16 Dec 2023 5:01 PM IST
किसानों की आमदनी दोगुनी करने के जुमलों के बीच हर साल बढ़ रहा किसान आत्महत्या का आंकड़ा, प्रतिघंटे एक अन्नदाता ने किया सुसाइड
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file photo

Farmer's Suicide in India : खेती से जुड़े कार्यों में संलग्न व्यक्तियों द्वारा आत्महत्या करने में एक बड़ा प्रतिशत खेतिहर मजदूरों का है। वर्ष 2022 में आत्महत्या करने वाले 11,290 व्यक्तियों में से, 53 प्रतिशत (6,083) खेतिहर मजदूर थे....

मनीष भट्ट मनु की टिप्पणी

Farmer's Suicide in India : भारत में विकास के तमाम दावों और किसानों की आमदनी दोगुनी करने के जुमलों के मध्य कड़वा सच यह है कि देश के किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। चार दिसंबर को ज्यादा समय नहीं बीता है, जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल देशभर में खेती से जुड़े 11,290 लोगों ने आत्महत्या की थी। वर्ष 2021 की तुलना में यह 3.7 प्रतिशत की वृद्धि है। तब खेती से जुड़े 10,281 लोगों की आत्महत्या दर्ज की गई थीं। 2022 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर घंटे कम से कम एक किसान की मौत आत्महत्या से हुई। एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य विधान सभा में प्रस्तुत आंकड़ों ने किसान की बदहाली उजागर की है।

महाराष्ट्र में इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 2,366 किसानों ने आत्महत्या की है। राहत और पुनर्वास मंत्री अनिल भाईदास पाटिल ने गुरुवार 14 दिसंबर को विधानसभा में इस बात की जानकारी दी। कांग्रेस विधायक कुणाल पाटिल द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मंत्री ने कहा कि अमरावती राजस्व मंडल में ऐसी सबसे अधिक 951 मौतें हुईं। मंत्री ने बताया महाराष्ट्र सरकार को रिपोर्ट मिली है कि इस साल जनवरी से अक्टूबर तक 2,366 किसानों ने अलग.अलग कारणों से आत्महत्या की है। यह रपिोर्ट अपने आप में चौंकाने वाली है, क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद महाराष्ट्र से किसानों की आत्महत्या का कलंक नहीं मटि रहा है। यह महाराष्ट्र की कृषि व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल है।

विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, अमरावती राजस्व मंडल में 951 किसानों ने अपनी जान दे दी। इसके बाद छत्रपति संभाजीनगर मंडल में 877, नागपुर मंडल में 257, नासिक मंडल में 254 और पुणे मंडल में 27 किसानों ने अपनी जान दे दी, वहीं राज्य के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने गुरुवार को ही विधान सभा को बताया कि महाराष्ट्र में कम से कम 96,811 किसानों को नमो शेतकारी महासंमान निधि योजना के तहत सहायता नहीं मिल सकी, क्योंकि उनके बैंक खाते और आधार नंबर लिंक नहीं थे।

महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को भुगतान की जाने वाली राशि के अलावा उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए योजना शुरू की है। मुंडे ने विधानसभा में एक लिखित उत्तर में कहा कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत पैसा पाने वाले लाभार्थियों की कुल सूची में सेए 96,811 ऐसे बैंक खाताधारक है, जिन्हें राज्य योजना का लाभ मिलना था, और जिन्हें नहीं मिल सका। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस साल 26 अक्टूबर तक उनका आधार नंबर और बैंक अकाउंट लिंक नहीं हुआ था।

राज्य विधानमंडल के चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान एआईएमआईएम विधायक मुफ्ती मोहम्मद इस्माइल अब्दुल खालिक द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में मुंडे कहा कि किसानों के बैंक खातों और आधार नंबरों को जोड़ने का काम तेजी से चल रहा है। मंत्री ने कहा कि लाभार्थियों को व्यक्तिगत रूप से स्थानीय सरकारी कार्यालय से संपर्क करना होगा और बैंक खाते और आधार संख्या को जोड़ने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी।

उन्होंने कहा, एक बार लिंकिंग पूरी हो जाने के बाद लाभार्थियों को योजना का लाभ मिलता रहेगा। आंकड़े के हिसाब से राज्य में औसतन लगभग 240 किसान हर महीने और सात किसान हर दिन अपनी जान दे रहे हैं। विदर्भ क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गये हैं। महाराष्ट्र के नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ने राज्य सरकार पर किसानों की दुर्दशा के प्रति उदासीनता बरतने का आरोप लगाया है। प्रकृति की मार और महायुति सरकार की उपेक्षा के कारण प्रतिदिन औसतन सात किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत के लगभग 38 प्रतिषत किसान अकेले महाराष्ट्र में आत्महत्या करते हैं। फसल की विफलता और बढ़ते कर्ज के कारण एक जुलाई, 2022 से एक जुलाई, 2023 तक एक वर्ष में राज्य में 3,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में विस्तृत जानकारी का अभाव दिखाई देता है मगर एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक खेती से जुड़े कार्यों में संलग्न व्यक्तियों द्वारा आत्महत्या करने में एक बड़ा प्रतिशत खेतिहर मजदूरों का है। वर्ष 2022 में आत्महत्या करने वाले 11,290 व्यक्तियों में से, 53 प्रतिशत (6,083) खेतिहर मजदूर थे।

एनसीआरबी द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 के दौरान आत्महत्या करने वाले 6,083 कृषि मजदूरों में 5,472 पुरुष और 611 महिलाएं शामिल थीं। इसी प्रकार जिन 5,207 किसानों ने इस अवधि में आत्महत्या की, उनमें 4,999 पुरुष और 208 महिलाएं थीं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक 4,248 किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की। न केवल यह संख्या सबसे अधिक थी, बल्कि कृषि से जुड़े लोगों की आत्महत्या के मामलों में राज्य का योगदान 38 प्रतिशत था। दूसरे सबसे अधिक मामले कर्नाटक (2,392) में दर्ज किए गए, इसके बाद आंध्र प्रदेश (917), तमिलनाडु (728), और मध्य प्रदेश (641) थे।

हालांकि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में सभी राज्यों में आत्महत्याओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। यहां वर्ष 2021 की तुलना में 42.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि छत्तीसगढ़ (31.65 प्रतिशत) में थी। आष्चर्यजनक तौर पर किसानों और खेतिहर मजदूरों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं में तीसरे नंबर पर आए में इसकी 2021 संख्या से 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इसी तरह, केरल में भी 30 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जबकि पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, चंडीगढ़, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुडुचेरी जैसे कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किसानों तथा खेतिहर मजदूरों की शून्य आत्महत्या भी एनसीआरबी के आंकड़ों में दर्ज है।

ऐसे में स्पष्ट है कि किसान और खेतिहर मजदूर किसी भी राजनीतिक दल की प्राथमिकता में नहीं हैं। साथ ही केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किसानों को दी जाने वाली राषि भी उनमें जीने की ललक पैदा कर पाने में नाकाम साबित हो रही है। विकास के तमाम दावों के मध्य उनके जीवन यापन में किसी तरह का कोई सधार हुआ है। बढ़ते तापमान, बिगड़ती जलवायु और सरकारी उपेक्षा के मध्य समाज का यह अन्नदाता अपने आप को एक ऐसे अंधे मोड़ पर पा रहा है जहां से उसकी परेशानियां और चिंताएं किसी की भी प्राथमिकता में नहीं हैं।

(लेखक भोपाल में निवासरत अधिवक्ता हैं। लंबे अरसे तक सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर लिखते रहे है। वर्तमान में आदिवासी समाज, सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ में कार्य कर रहे हैं।)

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