संयुक्त किसान मोर्चा ने लगाया मोदी सरकार पर अडानी-अंबानी, धनपशुओं-गुंडा-माफियाओं और बाहुबलियों की हिफाजत का आरोप
Banaras News : संयुक्त किसान मोर्चा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश से जुड़े संगठनों का आह्वान किया है कि वह वाराणसी के मैदागिन स्थित पराड़कर भवन में 1 जुलाई को आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे। इस कार्यक्रम में किसानों-मजदूरों की लड़ाई को मजबूती से लड़ने, पूर्वी उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन के अलावा 2024 के चुनाव अभियान के दौरान संगठनों की भूमिका तय की जायेगी।
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का कहना है मणिपुर राज्य जल रहा है, फिर भी देश का प्रधानमंत्री अमेरिकी यात्रा पर निकल गये। करीब 60 से 70 हजार, मणिपुरी जनता विस्थापित हो चुकी है। अमेरिका में प्रवासी भारतीयों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। जंतर-मंतर पर मणिपुरी महिलाओं का धरना प्रदर्शन जारी है। दुनिया भर में देश के तिरंगे झंडे को खेल प्रतियोगिताओं के माध्यम से ऊंचाई तक ले जाने वाली भारत की आन,बान,शान महिला पहलवानों के साथ शासन-प्रशासन का एकतरफा अन्याय सबने देखा लिया है।
संघर्ष के मोर्चे पर डटी महिला पहलवान अपना सबकुछ दाँव पर लगा चुकी हैं। उनकी इंसाफ की लड़ाई बहुत मुश्किल तो है लेकिन अन्याय के खिलाफ विद्रोह न्यायसंगत है। वर्ष 2014 से अब तक सरकार के तमाम कुकर्मों के कारण यह प्रमाणित हो चुका है कि पिछली सभी कारपोरेटपरस्त सरकारों से भी और आगे बढ़कर क्रूर ,नग्न फासीवादी तरीकों से मोदी सरकार अडानी-अंबानी धन पशुओं, बाहुबलियों, गुंडा-माफियाओं की हिफाजत में खड़ी हैं। मोदी सरकार के किसान-मजदूर विरोधी तीन कृषि काले कानूनों के खिलाफ 13 महीनों तक दिल्ली की सीमाओं पर धरना देना पड़ा था। तब जाकर प्रधानमंत्री मोदी जी माफी मांगते हुए, किसानों को लिखित आश्वासन भेजकर विश्वास दिलाया था, लेकिन धरना स्थगित होते ही मोदी सरकार वादे से मुकरकर विश्वासघात करने लगी।
लखीमपुर खीरी किसान-पत्रकार नरसंहार के साजिशकर्ता अजय मिश्र टेनी आज तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री पद पर आसीन है । अभी तक उसे केंद्र सरकार ने बर्खास्त तक नहीं किया है। आज आजमगढ़ में एयरपोर्ट विस्तारीकरण के नाम पर नौ गांव की जमीन छीनने के खिलाफ आजमगढ़ के खिरिया बाग (जमुआ हरिराम) में करीब 8 महीने से महिला, मजदूर, किसान धरना जारी रखे हैं। आजमगढ़(खिरिया बाग) के अब बनारस(वरुणा नदी के किनारे गांधी शिक्षण संस्थान , मोहन सराय,दश्मेधघाट पर किल्ला) चंदौली(नवगढ़,चकिया, सिकंदरपुर,कैमूर) मिर्जापुर(मणिहान-कोटवा पांडे) सोनभद्र(भैसवार-घोरावल),मऊ(ताल रतोय) और लखीमपुर खीरी इलाके में भूमि अधिग्रहण के मुद्दों को जनता द्वारा उठाया जा रहा है।
ऐसी सारी लड़ाइयां किसान-मजदूरों की साझी लड़ाइयां हैं । संघर्ष में सभी जाति-धर्म से ऊपर उठकर संघर्ष के साथी हैं। सरकार कारपोरेट विकास मॉडल के विनाशलीला को जनता पर थोपने के लिये जनता की रिहायशी, उपजाऊ खेती की नामी-बेनामी(recorded and non-recorded) जमीन से किसान-मजदूर जनता को बेदखल करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए जनता के बीच पढ़े-लिखे बुध्दिजीवी वर्ग को चुप कराने, भ्रमित करने के लिये गोदी मीडिया दिन रात काम कर रही है। इन्वेस्टर्स समिट, एयरपोर्ट विस्तारीकरण ,वन्य अधिकार कानून , पर्यावरण संरक्षण, रिजर्व टाईगर्स,पर्यटन, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर ,खनन,माल ढुलाई केंद्र,ग्रीन बेल्ट, एक्सप्रेस वे, आदि तमाम लोक लुभावने नामों से भूमि अधिग्रहण के बाद एक तरफ जनता उजड़ेगी और दुसरी तरफ आजीविका के साथ पर्यावरण संकट और बढ़ जायेगा। इसीलिए लोकतंत्रविरोधी सरकार की हिटलरी बुलडोजर नीति के खिलाफ किसान,मजदूर जनता सड़क पर आकर आदोलन के लिए मजबूर हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा के किसान-मजदूर मानते हैं, देश में जब सभी पूंजीवादी पक्ष-विपक्ष की पार्टियां मौन हो जाए, न्याय पंगु हो जाए, तब जनता को आगे अपने कदमों को सड़क पर बढ़ाना होगा और जन आंदोलनों का सैलाब खड़ा करके जन विकल्प का रास्ता तैयार करना होगा। तभी हम आम जनता के प्रति न्याय की आशा कर पाएंगे। जनता ने बड़े-बड़े अत्याचारियों के सर कुचले हैं, जनता भरोसा भी नहीं तोड़ेगी।
चौतरफा आंदोलन की परिस्थिति से सरकार बखूबी परिचित हैं, लेकिन इन किसान-मजदूर जनांदोलनों का सम्मान करने के बजाय पुलिसिया तरीके से निपटाना चाहती है। इसके लिए और ज्यादा व्यापक जनपहल को बढ़ाने के पूर्वी UP के मजदूर-किसान संगठनों को आपसी तालमेल को मजबूत बनाने की परिस्थिति मजबूत है।