योगी सरकार का 1 ट्रिलियन डाॅलर इकोनाॅमी का दावा वास्तविकता से कोसों दूर, 6 लाख रिक्त पदों को भरने का जिक्र तक नहीं बजट में
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Lucknow news : उत्तर प्रदेश सरकार लगातार दावा कर रही है कि 2027 तक प्रदेश की अर्थव्यवस्था एक ट्रिलियन डॉलर यानी 83 लाख करोड़ रुपए की हो जाएगी, मगर सच कुछ और है। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह दावा सिर्फ प्रचार के लिए कहा जा रहा है। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट से जुड़े राजेश सचान ने कुछ बिंदुओं की तरफ ध्यान दिलाया है कि कैसे यह सिर्फ दिखावे के लिए 1 ट्रिलियन इकाॅनोमी का बजट है।
उत्तर प्रदेश बजट (2024-25 ) 736437 करोड़ रुपए का पेश किया गया है, जोकि गत वर्ष के बजट से करीब 7 फीसद ज्यादा है। राजकोषीय घाटा 3.46 फीसद और राज्य सकल घरेलू उत्पाद करीब 25 लाख करोड़ है, वहीं कर्ज 8.17 लाख करोड़ है।
महत्वपूर्ण मदों में खर्च इस प्रकार है।
1-वेतन+पेंशन+ब्याज में 321021 करोड़ (बजट शेयर 43.59 फीसद)
2-शिक्षा 92169 करोड़ (बजट शेयर 12.48 फीसद) जोकि 2023-24 के संशोधित बजट 77455 (बजट शेयर 11.23 फीसद) से मामूली तौर पर ज्यादा है।
3-स्वास्थ्य 34221 करोड़ (बजट शेयर 4.63 फीसद) 2023-24 के 37335 करोड़ (बजट शेयर 5.41 फीसद) में भी कटौती कर दी गई है।
4-समाज कल्याण 32933 करोड़ (बजट शेयर 4.45 फीसद) 2023-24 में 31964 करोड़ (बजट शेयर 4.63 फीसद)
5-कृषि एवं संबद्ध क्रियाकलाप 17664 करोड़ (बजट शेयर 2.39 फीसद)
2023-24 में 16406 करोड़ (बजट शेयर 2.34 फीसद)
6- सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण 13200 करोड़ 2023-24 में 12885 करोड़ (बजट शेयर 1.87 फीसद)
7- ग्राम्य विकास 27398 करोड़ (बजट शेयर 3.71 फीसद)
2023-24 में 23153 करोड़ (बजट शेयर 3.36 फीसद)
8- ऊर्जा 26181 करोड़ (बजट शेयर 3.55 फीसद)
2023-24 में 27215 करोड़ (बजट शेयर 3.94 फीसद)
9- उद्योग एवं खनिज 13201 करोड़ (बजट शेयर 1.79 फीसद)
2023-24 में 12890 करोड़ (बजट शेयर 1.86 फीसद)
10- अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ा वर्ग कल्याण 5503 करोड़ (बजट शेयर 0.74)
2023-24 में 5097 (बजट शेयर 0.73)
बजट 2024-25 में शिक्षा मद में गत वर्ष के सापेक्ष मामूली बढ़ोतरी है, वहीं स्वास्थ्य मद में काफी ज्यादा कटौती की गई है। कृषि व सिंचाई, समाज कल्याण, ऊर्जा , उद्योग एवं खनिज जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बजट शेयर में अमूमन कटौती की गई है। गौरतलब है कि 2023-24 के बजट अनुमान के सापेक्ष संशोधित बजट में तमाम मदों में कटौती की गई है। दरअसल उपरोक्त सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गुणात्मक रूप से बजट में बढ़ोत्तरी की जरूरत है।
बजट में कुल प्राप्तियां (आय) 7.21 लाख करोड़ है। जिसमें राज्य के स्वयं के कर से आय 270086 करोड़ है। इसमें प्रमुख रूप से राज्य वस्तु एवं सेवा कर (स्टेट जीएसटी) 114248 करोड़ और उत्पाद शुल्क 58307 करोड़ शामिल है जोकि गत वर्ष क्रमश: 87776 करोड़ व 50000 करोड़ था। दरअसल स्टेट जीएसटी को छोड़कर राज्य में उत्पादन व व्यापार समेत अन्य क्षेत्र से सीमित आय राज्य में विकास के अवरूद्ध होने को दर्शाता है।
बड़े जोर-शोर से पूंजीगत व्यय में हाल के वर्षों से शुरू की गई बढ़ोत्तरी को इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से जोड़कर ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है, लेकिन इसकी हकीकत अलग है। बजट में पूंजीगत व्यय है 225217 करोड़, इसमें बृहद निर्माण कार्य 103178 करोड़ 45.81 फीसद है। लघु निर्माण कार्य 921 करोड़ 0.41 फीसद है, निवेश/ऋण 74400 करोड़ 33.03 फीसद शामिल है। बृहद निर्माण कार्यों में मुख्य रूप से हवाईअड्डों, एक्सप्रेस वे, मेट्रो, टाउनशिप आदि का क्षेत्रों में पूंजी निवेश है। इसका प्रयोजन कारपोरेट्स के लाभ से है इससे आम जन की भलाई कतई नहीं है जैसा कि प्रचार किया जा रहा है।
बजट में दिए गए रोजगार सृजन के आंकड़ों पर गौर करें:-
एमएसएमई के अंतर्गत स्वरोजगार योजना में 22 लाख 389 लाभार्थियों में 179112 रोजगार सृजित।
एक जनपद एक उत्पाद वित्त पोषण योजना 13597 लाभार्थियों के माध्यम से 192193 रोजगार सृजित
विश्वकर्मा श्रम सम्मान तथा एक जनपद एक उत्पाद कौशल उन्नयन एवं टूलकिट से 4.08 रोजगार।
उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन 12.15 लाख युवाओं को प्रशिक्षित कर 4.13 लाख युवाओं को विभिन्न कंपनियों में रोजगार
उपरोक्त में कुल रोजगार 7.84 लाख।
मनरेगा में 2023-24 में 75 लाख 24 हजार श्रमिकों में 28 करोड़ 68 लाख मानव दिवस काम दिया गया, जोकि औसतन प्रति मजदूर लगभग 38 दिन काम मिला। अब 33 करोड़ मानव दिवस का लक्ष्य रखा गया है। जबकि सभी परिवारों को न्यूनतम सौ दिन काम की गारंटी होनी चाहिए।
बजट में बजट में इंवेस्टर्स समिट में 40 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आने का जिक्र है और 2025 में 1.10 करोड़ रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया है।
बजट के उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि जैसे क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए न्यूनतम कदम भी नहीं उठाए गए हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में सरकार का फोकस हवाई अड्डों, एक्सप्रेस वे, मेट्रो, टाउनशिप आदि से है। बहुप्रचारित एमएसएमई, एक जनपद एक उत्पाद, उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन जैसे क्षेत्रों में रोजगार सृजन बेहद सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन को रोकने के लिए मनरेगा में भी न्यूनतम सौ दिन का भी काम नहीं मिल रहा। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से लेकर सेवा क्षेत्र तक में रोजगार के नये अवसर नहीं हैं। प्रदेश में सरकारी विभागों में 6 लाख रिक्त पद हैं, जिन्हें भरने का वायदा किया गया था इसका कहीं भी जिक्र बजट में नहीं है, बल्कि लाखों सृजित पदों को ही खत्म किया जा रहा है।
आशा, आंगनबाड़ी, शिक्षा मित्र, अनुदेशक और संविदा व आउटसोर्सिंग कर्मियों के मानदेय/मजदूरी में बढ़ोत्तरी जैसी न्यूनतम मांगों को भी अनसुना किया गया है। ईज आफ ड्यूंग बिजनेस के नाम पर कारपोरेट्स को रियायतें व मजदूरों के अधिकारों में कटौती व बेइंतहा शोषण किया जा रहा है। 2025 में 1.10 करोड़ रोजगार सृजन का दावा महज आंकड़ेबाजी व प्रोपेगैंडा से ज्यादा नहीं है, क्योंकि पूर्व में इस तरह के इंवेस्टर्स समिट द्वारा निवेश प्रस्ताव का हश्र देखा जा चुका है, जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बमुश्किल 10-15 फीसद तक लक्ष्य हासिल किया जा सका है। बजट में जहां तमाम कथित उपलब्धियों का महिमामंडन है, वहीं 2018 से लेकर 2022 तक इंवेस्टर्स समिट के निवेश आंकड़े पेश नहीं किए गए हैं।
वैसे 2027 तक एक ट्रिलियन डॉलर(83 लाख करोड़ रुपए) अर्थव्यवस्था का बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि अभी राज्य की अर्थव्यवस्था महज 25 लाख करोड़ रुपए की है और राज्य सरकार पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद का करीब एक तिहाई हिस्सा कर्ज है। कुलमिलाकर एक ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का प्रोपेगैंडा वास्तविकता से कोसों दूर है। प्रदेश में विकास व रोजगार का सवाल हल करने के लिए अर्थव्यवस्था की दिशा में बुनियादी बदलाव करना पड़ेगा , जिसमें प्रमुख रूप से कृषि क्षेत्र और कृषि आधारित उद्योगों, लघु-कुटीर, छोटे मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने, सहकारी क्षेत्र के प्रोत्साहन जैसे उपायों की जरूरत है. सार्वजनिक क्षेत्र मजबूत बनाया जाए, सभी रिक्त पदों को भरा जाए। संविदा/मानदेय कर्मचारियों को नियमित करने जैसे कदम उठाने होंगे।