मराठी लेखक नंदा खरे ने किया साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने से इनकार, क्या हिन्दी कवि अनामिका दिखा पायेंगी साहस!
जनज्वार ब्यूरो, नई दिल्ली। मराठी लेखक नंदा खरे ने 2014 में प्रकाशित अपने उपन्यास "उद्योग" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया है। हालांकि पुरस्कार वापसी पर उनका कहना है कि इसे राजनीतिक रूप न दिया जाये, बल्कि उन्होंने 4 साल से कोई भी पुरस्कार लेना बंद कर दिया है इसलिए ऐसा किया है।
इसके साथ ही सवाल पैदा होता है कि देश की जनविरोधी मोदी सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध करते हुए और किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए क्या हिन्दी कवयित्री अनामिका अपने पुरस्कार को लौटाने का साहस दिखाएंगी?
सोशल मीडिया पर अनामिका को मिले पुरस्कार को लेकर जिस तरह दक्षिणपंथियों के साथ साथ तथाकथित वामपंथियों ने भी जो जश्न का माहौल बना रखा है, उसे देखते हुए अनामिका से ऐसे नैतिक साहस की उम्मीद नहीं की जा सकती।
नंदा खरे ने कहा, "मुझे बताया गया कि मेरा उपन्यास 'उद्योग' साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया। मैंने विनम्रता से पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया, क्योंकि मैंने पिछले चार वर्षों से पुरस्कार स्वीकार करना बंद कर दिया है। समाज ने मुझे बहुत कुछ दिया है। इसलिए मुझे लगता है कि मुझे अधिक स्वीकार नहीं करना चाहिए। यह पूरी तरह से एक व्यक्तिगत कारण है और इसमें कुछ भी राजनीतिक नहीं समझा जान चाहिए।'
अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष वसंत अबाजी दहके, जो पुरस्कार चुनने वाले तीन विशेषज्ञों में से एक थे, ने कहा, "हममें से कोई भी नहीं जानता था कि उन्होंने पुरस्कार स्वीकार करना बंद कर दिया है। इसलिए हमने उनको चुना। साहित्य अकादमी चयन करने से पहले एक लेखक की सहमति नहीं पूछती है।"
उपन्यास के बारे में पूछे जाने पर डहाके ने कहा, "यह वर्तमान पूंजीवादी और मशीन चालित मानव जीवन के परिणामों के रूप में उभर रहे संभावित परिदृश्यों का एक बहुत ही दिलचस्प भविष्यवादी खाता है। यह इस बात की व्याख्या करता है कि मनुष्य को मशीनों द्वारा कैसे गुलाम बनाया गया है, विशेष रूप से उन लोगों द्वारा जो किसी के व्यक्तिगत जीवन की निगरानी के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।"