National Family Health Survey Report : बिहार में UP-महाराष्ट्र से ज्यादा लोग पीते हैं शराब, नीतीश सरकार बेनकाब
National Family Health Survey Report : नीतीश के सुशासन में 6 साल से बिहार में पूर्ण शराबंदी ( Liquor ban ) लागू है। इसके बावजूद बिहार में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पीते हैं। यानि सुशासन बाबू ( Nitish Government ) की लोकप्रिय शराबबंदी की नीति बिहार ( Bihar ) में मजाक बनकर रह गया है। इस बात का खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 ( National Family Health Survey Report -5 ) की रिपोर्ट से हुआ है। रही
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 ( National Family Health Survey Report -5 ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के 15 साल से ऊपर के 15.5 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं। बिहार के ग्रामीण इलाकों में शहरी इलाके से ज्यादा लोग शराब पीते हैं। ग्रामीण इलाकों के 15.8% पुरुष शराब पीते हैं, जबकि शहरी इलाके के 14.0% पीते हैं। वहीं, 0.5% महिलाएं शहरी इलाकों में और 0.4% महिलाएं ग्रामीण इलाकों में शराब पीती हैं।
ये बात सही है कि साल 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या में कमी आई है। करीब 28% पुरुष शराब पीते थे। वहीं, देशभर में 18.8% पुरुष और 1.3% महिलाएं पीतीं हैं।
दरअसल, भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने 2019-21 नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 दो पार्ट में कराया था। बिहार सहित 22 राज्यों की रिपोर्ट पहले चरण में आई चुकी है। यह सर्वे साल 2019-20 के बीच की है। बाकी 14 राज्यों का सर्वे दूसरे चरण (2020-21) में हुआ था, जिसकी रिपोर्ट हाल में आई है।
हिंदी पट्टी में झारखंड सबसे आगे
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक हिंदी भाषी राज्यों में झारखंड में सबसे अधिक 35% पुरुष और 6.1 % महिलाएं शराब पीती हैं। दूसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ (34.8% पुरुष और 5.0% महिलाएं) है। वहीं, जम्मू-कश्मीर में सबसे कम (8.8% पुरुष और 0.2% महिलाएं) लोग पी रहे हैं। महाराष्ट्र में 13.9% पुरुष और 0.4% महिलाएं पीती हैं।
बिहार में शराबबंदी बेअसर, 157 लोगों की जा चुकी है जान
बिहार में 5 अप्रैल 2016 को पूर्ण शराबबंदी लागू है। इसके बावजूद समय-समय पर जहरीली शराब पीने से 157 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इसको लेकर विपक्ष से लेकर बुद्धिजीवी संगठनों तक ने सरकार की आलोचना की है। विपक्ष के इन हमलों से परेशान सीएम नीतीश कुमार ने एक बार कहा था जो अनाब-शनाप पीएगा, वो मरेगा ही।
सुप्रीम कोर्ट की हिदायत पर झुकी नीतीश सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने भी नीतीश सरकार की ओर से लागू बिहार में पूर्ण शराबबंदी नीति की आलोचना की थी। एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह चिंता का विषय है। बिहार सरकार बगैर कोई विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून लेकर आई और पटना हाईकोर्ट के 16 न्यायाधीश जमानत अर्जियों का निस्तारण करने में जुटे हुए हैं। शीर्ष अदालत के इस फटकार के बाद सरकार ने मार्च 2022 में विधानसभा में संशोधन कानून पास कराया। जिसमें कहा गया है कि पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर 2 से 5 हजार रुपए के बीच जुर्माना देना होगा और उन्हें थाने से ही छोड़ा जा सकता है। अगर कोई जुर्माना नहीं देता है तो उसे एक महीने की जेल होगी। पहले यह जुर्माना 50 हजार रुपए था। यदि कोई व्यक्ति बार-बार शराब पीकर पकड़ा जाता है तो ऐसी स्थिति में उस पर न तो जुर्माना लगाया जाएगा, ना ही एक महीने की जेल होगी। बल्कि उस पर सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि सीएम नीतीश कुमार से पहले बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने 1977 में शराबबंदी लागू की थी, लेकिन ये पाबंदी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी थी।
3 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग
वर्तमान में बिहार में अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक शराबबंदी कानून के तहत 2.03 लाख मामले सामने आए। इनमें 3 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। 1.08 लाख मामलों का ट्रायल चल रहा है। 94,639 मामलों का ट्रायल शुरू होना बाकी है। दिसंबर तक सिर्फ 1,636 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था। 1,019 मामलों में आरोपियों को सजा हो चुकी है। 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं।
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