संसद की सफाई कर फोटो चमकाने वाले रूडी कभी छपरा के मुहल्लों में भी एक पोज दे लेते
जनज्वार ब्यूरो, पटना। यूं तो बरसात में राजधानी पटना में भी जलजमाव की खबरें सुर्खियां बनती रहीं हैं, पर बिहार के सारण जिले में तो यह चिरस्थायी समस्या है। इस शहर की कई आवासीय कॉलोनियां और मुहल्ले सालों भर जलजमाव का दंश झेलते हैं। स्थानीय स्तर पर इन कॉलोनियों को पॉश इलाका माना जाता है, पर यह एक समस्या इनका हाल झुग्गियों से भी बदतर बना देती है। बरसात के महीनों में इनमें से कई कॉलोनियों में आवागमन के लिए नाव चलाना पड़ जाता है। समस्या के कारण कई हैं, इनके समाधान के अस्थायी प्रयास भी कम नहीं हुए हैं, पर अबतक इन प्रयासों का कोई फायदा नहीं हुआ है।
छपरा शहर में नगर निगम है। यह सारण प्रमंडल का मुख्यालय है। यहां विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान हैं। सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बन रहा है। कमिश्नर, डीआईजी, डीएम जैसे बड़े अधिकारियों के कार्यालय हैं। यानी राज्य का यह प्रमुख शहर है।
छपरा में बरसात के दौरान तो लगभग पूरे शहर में जलजमाव हो जाता है। शहर का प्रभुनाथ नगर, उमानगर, शक्ति नगर, गुदरी बाजार सहित आधा दर्जन ऐसे इलाके हैं, जहां सालोंभर जलजमाव रहता है। गुदरी बाजार यहां का पुराना और मुख्य बाजार है तो प्रभुनाथ नगर हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनी। उमानगर और शक्तिनगर पिछले कुछ दशकों में बसीं कॉलोनियां हैं।
बरसात के महीनों में प्रभुनाथ नगर, उमानगर, शक्ति नगर, सांढा आदि कॉलोनियों में आने-जाने के लिए बस नाव ही एकमात्र सहारा होता है। यहां इन महीनों में अघोषित जल कर्फ्यू लग जाता है। लिहाजा इस बार भी बरसात शुरू होते ही यहां के लोग डरे हुए हैं और अपने स्तर से इस समस्या के हरसंभव निदान की कोशिश कर रहे हैं।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद छपरा से सांसद रहे हैं। यहां से सांसद रहते हुए रेलमंत्री भी रह चुके हैं। अभी यहां से बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी सांसद हैं। यहां के विधायक भी बीजेपी के ही डॉ सीएन गुप्ता हैं।
जनज्वार ने इन इलाकों में जलजमाव के कारणों की पड़ताल की। हमने यहां के लोगों से बात की, यहां के ड्रेनेज सिस्टम को समझने की कोशिश की। छपरा में खनुआ नाला मुख्य नाला है। यह नाला पूरे शहर से होकर गुजरता है। यह कहने को नाला है, पर एक तरह से नहर प्रणाली है, जो शहर के नालों और बरसात के पानी को चँवर में पहुंचाता है। बताया जाता है कि खनुआ नाला अंग्रेजों के जमाने से भी पहले का है।
शहर में खनुआ नाला अतिक्रमित है। ज्यादातर जगहों पर इसकी चौड़ाई महज एक चौथाई बच गई है। खनुआ नाला को इसके पूर्व स्वरूप में लाने के लिए पटना हाईकोर्ट में रिट दायर की गई। हाईकोर्ट ने इसे पूर्णतः अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया। इस पर पिछले काफी समय से काम चल रहा है। हालत यह है कि नगर निगम जब नगर परिषद था उस वक्त इस नाले के ऊपर कई स्थानों पर दुकानों का निर्माण कर लोगों को एलॉट कर दिया था। कई जगह इसके ऊपर पक्के घर भी बनाए जा चुके हैं।
प्रभुनाथ नगर विकास समिति के अध्यक्ष सन्तोष सिंह कहते हैं, कॉलोनी में जनप्रतिनिधि सिर्फ वोट लेने के समय आते हैं। उसके बाद कभी नजर नहीं आते। यह समस्या बहुत पुरानी है। यह कॉलोनी हाउसिंग बोर्ड की है। क्षेत्र के लोगों ने बैठक की है। इस बार निर्णय लिया गया है कि समस्या का स्थायी समाधान होने तक लोग वोट का बहिष्कार करेंगे।
खनुआ नाला को पुराने रूप में लाने के लिए बिहार सरकार द्वारा 30 करोड़ की लागत से जीर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है। यह कार्य लगभग एक वर्ष से चल रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि निर्माण एजेंसी इतनी धीमी गति से कार्य कर रही है कि उनकी समस्या और बढ़ गई है। कई जगह घरों के सामने गड्ढे बनाकर महीनों से ऐसे ही छोड़ दिए गए हैं।
सांढा का क्षेत्र शहर में ही है, पर यह नगर निगम के तहत नहीं बल्कि पंचायत के तहत आता है। यहां भी सालोंभर जलजमाव रहता है। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के आध्यात्मिक गुरु कामता सखी का मठ भी यहीं है।
बीजेपी के स्थानीय स्तर के बड़े नेता और मठ के वर्तमान कर्ताधर्ता जय प्रकाश वर्मा भी यहीं रहते हैं। वे कहते हैं जलजमाव की समस्या स्थायी है। हर स्तर पर प्रयास किया गया, पर समस्या यथावत है। हालत यह है कि घर से बाहर कदम रखना भी कठिन है। कुछ दिन पूर्व स्थानीय सांसद राजीव प्रताप रूडी द्वारा जेसीबी मशीन और पंप लगवाकर पानी निकालने का प्रयास किया गया है। पर कोई खास लाभ नहीं हुआ। अब लोगों का जनप्रतिनिधियों से मोहभंग हो रहा है।
इन कॉलोनियों में आलीशान इमारतें हैं, बड़े लोग रहते हैं पर सिर्फ इस समस्या के कारण उनका जीवनस्तर झुग्गी बस्ती वाला हो जाता है। खासकर बरसात में ये इलाके टापू बन जाते हैं। लिहाजा यहां के अधिकांश लोग गांवों में पलायन कर जाते हैं। पढ़ाई आदि कारणों से जो नहीं जा पाते हैं, वे नाव की सवारी करते हैं। बरसात में बच्चों का स्कूल छूट जाता है। बीमार पड़ने पर खाट के सहारे जाने की मजबूरी है।
हमने इन कॉलोनियों की इस समस्या के मूल में जाने की कोशिश की। मुख्य रूप से दो कारण सामने आए। दरअसल इन इलाकों में कॉलोनियां तो बस गईं पर ड्रेनेज सिस्टम कभी बन नहीं सका। लोगों ने इमारतें बना लीं पर न तो उन्होंने, न ही सरकारी स्तर पर पुख्ता ड्रेनेज सिस्टम बन सका। खनुआ नाला का अतिक्रमण भी एक मुख्य कारण है तो शासन-प्रशासन की उपेक्षा भी।
उधर शहर की सबसे पुरानी मंडी और उससे लगे इलाके गुदरी बाजार में समस्या कुछ अलग है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां ड्रेनेज सिस्टम है पर बहुत पुराना है। इसका अतिक्रमण हो चुका है। निरन्तर साफ-सफाई के अभाव में कई स्थानों पर मुहाने जाम हो चुके हैं। कुछ वर्ष पूर्व यहां नई सड़क बनी। उस सड़क को ऊंचा बनाया गया। नाले भी ऊंचे कर दिए गए। लिहाजा उससे जुड़े अन्य सड़कें और नाले नीचा हो गए। जिससे इन इलाकों का पानी स्थायी रूप से सालोंभर सड़क पर ही रहता है। धूप निकलती है तो धीरे-धीरे सूखता है। जिला का सबसे बड़ा और पुराना राजेन्द्र कॉलेज और राजेंद्र कॉलेजिजिएट स्कूल इसी इलाके में हैं।