भितरघात के कारण तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का मौका चूका राजद, समर्थक क्षुब्ध तो मुस्लिम वोटबैंक हो रहा निराश
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दरभंगा, जनज्वार। अपनी महत्वाकांक्षा की आड़ में मिथिलांचल में राजद के कतिपय नेताओं ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का मौका गंवा दिया। अब वैसे राजद नेता आँख चुराते फिर रहे हैं। राजद के मुस्लिम चेहरे और कद्दावर नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के हारने के बाद से मुस्लिम मतदाताओं में भारी आक्रोश है।
आलम यह है कि अगर ध्यान नहीं दिया गया तो राजद का नया समीकरण दरकने के कगार पर है। मुस्लिमों में राजद के पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहम्मद अली अशरफ फातमी एवं अब्दुल बारी सिद्धकी राज्य स्तरीय चेहरा थे।
दरभंगा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार निर्वाचित सांसद मोहम्मद अली अशरफ फातमी को 2019 में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में राजद ने प्रत्याशी नहीं बनाया था। इससे क्षुब्ध होकर फातिमी ने नेतृत्व के विरुद्ध सवाल उठाए थे। फलतः उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया।
विधानसभा चुनाव के पूर्व मोहम्मद फातिमी के पुत्र केवटी के राजद विधायक डॉक्टर फराज फातमी को भी राजद ने पार्टी से निलंबित कर दिया। फातमी ने साल 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अशोक कुमार यादव को लगभग 7000 मतों के अंतर से हराया था।
फातमी हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के पूर्व जदयू में शामिल हो गये। एनडीए में सीटों के बंटवारे में केवटी भाजपा के कोटे में ही रहा। भाजपा यह सीट वीआईपी को देकर हरि साहनी का नाम भी लगभग तय कर चुकी थी। इसके बाद भाजपा से किसी ब्राह्मण को उम्मीदवार नहीं मिलने की चर्चा से ब्राह्मणों के बीच तीव्र प्रतिक्रिया देखी जा रही थी। भाजपा दरभंगा और हायाघाट से दो वैश्य को उम्मीदवार बना चुकी थी।
ब्राह्मण बाहुल्य दरभंगा जिले से जदयू मंत्री मदन साहनी को बहादुरपुर से उम्मीदवार बना चुकी थी। बाद में डॉक्टर मुरारी मोहन झा को भाजपा ने टिकट थमा कर राजनीतिक गलियारों में सबको चौका दिया। चुनावी विश्लेषक भाजपा की हार तय मान रहे थे। इधर महागठबंधन ने तीन मुस्लिम चेहरों को केवटी, जाले और गौराबौराम से उतारा। सभी इस चुनाव में हार गये।
राजद ने इस चुनाव में अपने नए समीकरण को और भी व्यापक बनाने के उद्देश्य अलीनगर से भाजपा के बागी विनोद मिश्र को उम्मीदवार बनाकर सभी को चौंका दिया। इससे पूर्व राज्यसभा चुनाव में भी राजद ने प्रोफेसर मनोज कुमार झा को उम्मीदवार बनाकर ब्राह्मणों को आश्चर्य में डाल दिया था।
इसका परिणाम यह हुआ कि तेजस्वी यादव के प्रति मिथिलांचल के ब्राह्मण वर्ग में सहानभूति पैदा हो गई। क्योंकि भाजपा और कांग्रेस की ओर से आज तक किसी मैथिल ब्राह्मण को राज्यसभा में नहीं भेजा गया है।
इधर राजद के समीकरण का दायरा बढ़ाने के उद्देश्य से एक राजपूत और एक ब्राह्मण को उम्मीदवारी देकर एनडीए की घेराबंदी करने की योजना बनाई गई थी।
लेकिन राजद जिला अध्यक्ष रामनरेश यादव, पूर्व विधायक हरे कृष्ण यादव, रामनाथ यादव, सुरेंद्र प्रसाद यादव समेत एक दर्जन राजद नेता नेताओं ने अधिकृत प्रत्याशी को हराने का षड्यंत्र रचकर परिणाम ही बदल डाला। क्योंकि सभी सीटों पर हार- जीत का फासला कम वोटों का रहा है। अब वैसे नेताओं के प्रति राजद समर्थित मतदाताओं में आक्रोश पनप रहा है।
विघटित विधानसभा में मिथिलांचल क्षेत्र से दो मुस्लिम विधायक थे। इस चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में सफल नहीं रहे। अब आलम यह है कि मुस्लिम मतदाताओं में राजद के प्रति निराशा बढ़ने लगी है। जिससे समीकरण के दरकने के आसार प्रबल हो गए हैं।
इस बीच खबर है कि बिहार विधानसभा चुनावों में हार के कारणों का पता लगाने के लिए राजद की ओर से एक कमिटी का गठन किया जा रहा है। पूर्व मंत्री श्याम रजक को इस कमिटी का संयोजक बनाया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यह कमिटी क्या जमीनी स्तर पर कारणों का पता लगा पाने या फिर उसे पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा पाने में सफल हो पाएगी।
मिथिलांचल की राजनीति में थोड़ी भी दिलचस्पी रखने वाला यहां पार्टी नेताओं के भितरघात को जानता और समझता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कमिटी मिथिलांचल में हुए भितरघात की बात जान-समझ पाती है या नहीं और पार्टी द्वारा ऐसे नेताओं पर क्या आगे कोई कार्रवाई की जाती है।