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बिहार

आखिर क्यों नाराज हो गए लालू प्रसाद के ब्रह्म बाबा रघुवंश, जेनरेशन गैप झेल रहे तेजस्वी के सामने बड़ी चुनौती

Janjwar Desk
24 Jun 2020 6:24 AM GMT
आखिर क्यों नाराज हो गए लालू प्रसाद के ब्रह्म बाबा रघुवंश, जेनरेशन गैप झेल रहे तेजस्वी के सामने बड़ी चुनौती
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राजद की स्थापना के पूर्व से लालू प्रसाद के अनन्य सहयोगी रहे रघुवंश प्रसाद सिंह अबतक उनके हर सुख-दुख के साथी रहे हैं।उनकी नाराजगी का कारण तात्कालिक ही सही,पर इसकी बीज पहले ही पड़ चुकी थी.....

पटना से राजेश पाण्डेय की रिपोर्ट

जनज्वार ।फक्कड़ और मस्तमौला स्वभाव,सादगी का रहन-सहन, वैसा ही भोजन,क्रोध आया तो अंगारा, कुछ ऐसी ही ठेठ बिहारी पहचान है रघुवंश प्रसाद सिंह की। चाहे केंद्रीय मंत्री रहे हों या सांसद, इनमें परिवर्तन नहीं आया। लालू के पुराने व अनन्य सहयोगी और खांटी समाजवादी रघुवंश बाबू को लालू प्रसाद अक्सर ब्रह्म बाबा कहा करते थे। रघुवंश बाबू जब कभी नाराज होते थे तो लालू प्रसाद सार्वजनिक रूप से ठेठ गंवई अंदाज में कह देते थे 'काहे खिसियाइल बानीं ब्रह्म बाबा'। इतने से ही रघुवंश बाबू का गुस्सा ठंढा हो जाया करता था।

मंगलवार 23 जून को लालू प्रसाद के वही ब्रह्म बाबा इतने नाराज थे कि कोरोना के इलाज हेतु अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर आने का भी इंतजार भी नहीं किया। सवाल उठना लाजमी है कि ऐसा क्या हो गया, जिससे रघुवंश बाबू अचानक अंगार हो उठे। बिहार की राजनीति की बारीक समझ रखने वाले इसके पीछे कई कारणों को गिना रहे हैं। इन कारणों के साथ ही हाल के एक घटनाक्रम ने विस्फोट कर दिया।

बिहार के अमूमन हर गांव के प्रवेश स्थल पर ब्रह्म बाबा का स्थान रहता ही है। माना जाता है कि ब्रह्म बाबा गांव के पहरेदार होते हैं और बुरी बलाओं से गांव के लोगों की रक्षा करते हैं। ये बड़े दयालु माने जाते हैं,साथ ही उतने ही क्रोधी भी। लालू प्रसाद ने ही रघुवंश बाबू को ब्रह्म बाबा की उपाधि दी है।

लालू प्रसाद की जीवनी पर आधारित और नलिन वर्मा द्वारा लिखित पुस्तक 'गोपालगंज टु रायसीना' में लालू प्रसाद ने अपने पैतृक गांव के ब्रह्म बाबा और बचपन में अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र किया है। इस किताब के अनुसार उन्होंने बताया है कि बचपन में गांव के ब्रह्म बाबा द्वारा किस प्रकार कथित भूतों से उनकी रक्षा की गई। पुस्तक में उन्होंने गांवों के ब्रह्म बाबा के ऊपर लिखित गुणों को भी बताया है और यह भी कहा है कि अभी भी जब कभी वे पैतृक गांव जाते हैं तो गांव में प्रवेश के पूर्व ब्रह्म बाबा को प्रणाम जरूर करते हैं। लालू प्रसाद के जन्मदिन के अवसर पर विगत 11 जून को नलिन वर्मा ने फेसबुक पोस्ट कर स्वयं यह किस्सा लिखा था।

जाहिर है, लालू प्रसाद रघुवंश बाबू को भी इन्हीं सब गुणों तथा पार्टी में उनकी ब्रह्म बाबा वाली भूमिका के कारण ही इस नाम से पुकारते होंगे। गांवों में ब्रह्म बाबा की मान्यता जैसी है, वैसी ही मान्यता रघुवंश बाबू के प्रति भी लालू प्रसाद की रही होगी। उनका रघुवंश बाबू को ब्रह्म बाबा के नाम से संबोधित करना ही पार्टी में उनकी भूमिका, महत्ता और योगदान को बताने के लिए पर्याप्त है।चुनावी वर्ष में उनकी नाराजगी राजद पार्टी के लिए बड़ा सेटबैक माना जा रहा है।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और ईटीवी भारत के स्थानीय संपादक प्रवीण बागी कहते हैं 'राजद में अभी भी वरिष्ठ नेताओं का ऐसा वर्ग है जो तेजस्वी को नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है। लालू प्रसाद का वफादार रहे इन नेताओं का विश्वास जीतने में तेजस्वी नाकाम रहे हैं। तेजस्वी और बड़े नेताओं के बीच तालमेल न बैठ पाने की एक वजह पीढ़ी का फासला भी है।'

वे आगे कहते हैं 'रघुवंश बाबू लालू-राबड़ी के मुंह पर ही खरी-खरी सुना दिया करते थे,इसलिए लालू उन्हें ब्रह्म बाबा कहा करते थे। पर लालू प्रसाद उन्हें मनाने की कला जानते थे और चुटकियों में मना लिया करते थे। लेकिन लालू प्रसाद अभी जेल में हैं और तेजस्वी लालू नहीं बन सकते।'

मंगलवार 23 जून को ही एक और ऐसी घटना घटी, जिससे राजद पार्टी को बड़ा नुकसान हो गया। पार्टी के 8 में से 5 विधान पार्षद सत्ताधारी दल जदयू में चले गए। राजद विधान परिषद में महज तीन पार्षदों के भरोसे रह गई। नतीजा विधान परिषद में नेता, मुख्य विपक्षी दल के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की कुर्सी भी खतरे में आ गई। नेता,मुख्य विपक्षी दल का स्टेटस पाने के लिए 75 सदस्यीय विधान परिषद में कम से कम 8 पार्षद होने चाहिए,जबकि राजद के पास मात्र 3 विधान पार्षद ही रह गए हैं। हालांकि विधायक कोटे से विधान परिषद की 9 सीटों के चुनाव के लिए अभी नामांकन का कार्य चल रहा है, पर मौजूदा संख्याबल के आधार पर राजद इनमें से 3 सीटें ही जीत सकता है।

प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा ' मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यही सब करने के लिए तो 90 दिन घर में छुपे हुए थे। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है और जनता उनके साथ है। वे जबाब दें इससे जनता को क्या हासिल हुआ। इसका लाभ उनको मिलेगा या जनता को। रघुवंश बाबू हमारे गार्जियन हैं,वे पार्टी के संस्थापकों में हैं। दो दिन पहले टेलीफोन से बातचीत हुई है। उनका स्वास्थ्य प्रमुख है। जब स्वस्थ हो जाएंगे,उनसे मिलकर बात की जाएगी।' इन सब घटनाओं से इतर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव 23 जून को पार्टी के कुछ नेताओं के साथ राज्यपाल से मिलने राजभवन गए थे।

वहां उन्होंने एससी-एसटी आरक्षण में कथित छेड़छाड़ के मुद्दे को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन दिया। वहीं उन्होंने मीडिया के साथ बात की।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके मंगल पाण्डेय ने 23 जून को अपने फेसबुक एकाउंट से एक के बाद एक तीन पोस्ट किए। उन्होंने लिखा 'अभी तो राबड़ी की जाएगी नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी आगे के लिए तेजस्वी भी तैयार रहें।'

उन्होंने कुछ ही देर बाद दूसरा पोस्ट कर लिखा 'राजद में टूट और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से रघुवंश प्रसाद सिंह का इस्तीफा तो ट्रेलर है।बहुत जल्द थोक के भाव में विधायक भी एनडीए का दामन थामेंगे।'

राजनैतिक विश्लेषक सवाल उठा रहे हैं कि एक ही दिन रघुवंश बाबू के इस्तीफे और राजद के 5 विधान पार्षदों के जदयू में जाने की घटना के बीच क्या आपस में कोई संबन्ध है? पर जानकर इससे इनकार कर रहे हैं। हालांकि दोनों घटनाओं की टाइमिंग जरूर इस तरफ इशारा कर रही है। पहले विधान पार्षदों के जदयू में जाने की खबर आई,उसके तुरन्त बाद ही रघुवंश सिंह के पद से इस्तीफा देने की खबर आ गई।

जदयू के प्रदेश प्रवक्ता व सूचना और जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार कहते हैं 'जो नेता हमारे साथ आए हैं वे राजद की नीतियों से असंतोष के कारण आए हैं। अब तो राजद के लोगों को भी तेजस्वी यादव में कोई भविष्य नहीं दिख रहा।'

राजद छोड़ने वाले विधान पार्षदों ने कहा 'वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों से प्रभावित होने के कारण जदयू में गए हैं।'

इसपर राजद के नेता चुटकी ले रहे हैं कि क्या 15 वर्षों में पहली बार चुनाव के समय इन लोगों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का काम दिखा है।

बिहार की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले विश्लेषक विधान पार्षदों के इस्तीफे को लेकर कह रहे हैं कि इसकी नींव पहले ही पड़ गई थी। ये लोग हाल में कई मौकों पर पार्टी की नीतियों पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाते रहे हैं। लिहाजा इनका पार्टी छोड़ना तय माना जा रहा था। महत्वपूर्ण बात यह है कि राजद के कुल आठ में से पांच विधान पार्षदों ने एक साथ पार्टी छोड़ दी। इसके साथ उसी दिन रघुवंश सिंह ने भी पद से इस्तीफा दे दिया।

राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, 'इन लोगों ने लोकतंत्र का गला घोंटा है, हम चुनाव में जनता की अदालत में जा रहे हैं। जनता वहां इनका गला घोंट देगी। उन्होंने हमारे पांच विकेट लिया है,जनता इनको ऑलआउट कर देगी। पहले भी इन लोगों ने हमारे 8 विधायकों को तोड़ा था, आज हम सदन में 10 गुणा यानि 80 हो गए हैं।'

राजद से जुड़े लोग बता रहे हैं कि लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद से ही रघुवंश बाबू पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं। तेजस्वी यादव की कार्यशैली लालू प्रसाद से अलग तरह की है। लालू प्रसाद फैसले खुद के मन की करते थे पर हंसी-मजाक में ही वरिष्ठ सहयोगियों से हामी भी भरवा लेते थे। वरिष्ठ नेताओं के साथ तेजस्वी यादव का जेनरेशन गैप एक बड़ा सेटबैक है। माना जा रहा है कि वरिष्ठ नेता जितनी सहजता से लालू प्रसाद के साथ मंत्रणा कर लेते थे, तेजस्वी यादव के साथ उतना सहज नहीं हो पाते। इसके अलावा तेजस्वी यादव की अपनी टीम भी बताई जाती है।

रघुवंश सिंह पिछले कुछ समय में कई मौकों पर पार्टी के कुछ निर्णयों से असहमति जता चुके हैं। सवर्ण आरक्षण के मुद्दे पर भी उस वक्त उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर बोल दिया था। जगदानन्द सिंह को जब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तब भी वे नाखुश थे। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही वे पटना के पार्टी दफ्तर नहीं गए हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस भी पटना के अपने आवास पर करते रहे हैं।

हालांकि रघुवंश सिंह और जगदानन्द सिंह दोनों किसी मतभेद से इंकार करते रहे हैं। कुछ दिन पहले पूर्व सांसद रामा सिंह को पार्टी में शामिल किए जाने के निर्णय से भी रघुवंश सिंह खासे नाराज बताए जा रहे हैं। रामा सिंह वैशाली संसदीय क्षेत्र में उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदी तो हैं ही,उनकी क्षवि भी बाहुबली की है। 2014 के संसदीय चुनाव में लोजपा के टिकट पर लड़ रहे रामा सिंह ने तब राजद के टिकट पर लड़ रहे रघुवंश सिंह को पराजित किया था। हालांकि 2019 के चुनाव में लोजपा ने उनको टिकट नहीं दिया था।

वैसे रघुवंश बाबू ने अभी सिर्फ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया है, पार्टी नहीं छोड़ी है। इसलिए मान-मनव्वल का स्कोप अभी बचा हुआ है। जैसा कि तेजस्वी यादव ने कहा है, उनके स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर आने के बाद वे मुलाकात करेंगे। इसका नतीजा क्या होगा,यह तो समय के गर्त में छुपा है। पर रघुवंश बाबू को 'का ब्रह्म बाबा काहे खिसियाइल बानीं' कहकर पलक झपकते मना लेने वाले लालू प्रसाद अभी जेल में हैं और तेजस्वी यादव के साथ बड़ा जेनरेशन गैप है।

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