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Conjugal Rights : मुस्लिम जोड़े के मामले में गुजरात High Court का अहम फैसला, पत्नी को साथ रहने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर

Janjwar Desk
30 Dec 2021 1:45 PM GMT
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Conjugal Rights : गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को साथ रहने और व्यावहारिक अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है...

Conjugal Rights : गुजरात हाई कोर्ट ने पति-पत्नी के निजी जीवन को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को साथ रहने और व्यावहारिक अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। आगे गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालती डिग्री लेने के बाद भी एक पत्नी को अपने पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। बता दें कि गुजरात हाई कोर्ट ने यह फैसला बनासकांठा जिले के एक मुस्लिम जोड़े से जुड़े मामले में सुनाया है।

यह था मामला

अदालत में जो केस आया उस पर गुजरात हाईकोर्ट ने अहम फैसला लिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार महिला पालनपुर सिविल अस्पताल में नर्स का काम करती है। महिला पर आरोप लगाया गया है कि वह अपने बेटे के साथ अपना ससुराल छोड़कर मायके चली रही है। इस मामले में महिला का कहना है कि उसके भाई-बहन ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। महिला के ससुराल वाले और पति उसके ऊपर ऑस्ट्रेलिया जाने का दबाव बनाते रहते थे। महिला ने आरोप लगाया है कि उसके ससुराल वाले उससे कहते थे कि ऑस्ट्रेलिया जाकर बाद में वह अपने पति को भी वहां बुला ले। बता दें कि इस मामले में एक कुटुंब अदालत का फैसला पलटते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक आदेश के बावजूद एक महिला को उसके पति के साथ रहने और दांपत्य अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

इस आधार पर कोर्ट ने सुनाया फैसला

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए का की पहली पत्नी अपने पति के साथ रहने से इंकार कर सकती है। साथ ही कोर्ट ने इसका आधार बताया कि मुस्लिम कानून बहू विभाग की अनुमति देता है लेकिन इसे कभी बढ़ावा नहीं दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में कहा कि भारत में मुस्लिम कानून ने बहु विवाह को मजबूरी में सहन करने वाली संस्था के रूप में माना है लेकिन कभी इसे प्रोत्साहित नहीं किया गया है। मुस्लिम कानून के अनुसार पति को इस बात का मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया गया है कि उसकी पत्नी, पति की अन्य पत्नी को अपनी साथी के तौर पर रखने पर मजबूर करें। साथ ही गुजरात हाई कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने हालिया आदेश में कहा था कि समान नागरिक संहिता संविधान में केवल एक उम्मीद नहीं रहनी चाहिए।

कुटुंबा अदालत ने महिला को ससुराल वापस जाने का दिया था निर्देश

बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति निरल मेहता की खंडपीठ ने काकी वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक मुकदमे में निर्णय पूरी तरह से पति के अधिकार पर निर्भर नहीं करता है। आगे उन्होंने कहा कि कुटुंब अदालत को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या पत्नी को अपने साथ रखने के लिए मजबूर करना उसके लिए अनुचित होगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार खंडपीठ ने गुजरात के बनासकांठा जिले की एक कुटुंब अदालत के जुलाई 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका स्वीकार करते हुए या टिप्पणी की है। बता दें कि कुटुंब अदालत ने इस मामले में महिला को अपने ससुराल वापस जाने और वैवाहिक दायित्व के निर्वहन का आदेश दिया था।

महिला ने बेटे के साथ छोड़ा था ससुराल

गुजरात हाईकोर्ट ने जिस मुस्लिम जोड़े के दांपत्य जीवन को लेकर यह फैसला सुनाया है, उस जोड़े का निकाह 25 मई 2010 को बनासकांठा के पालमपुर में किया गया था और जुलाई 2015 में उनका एक बेटा हुआ था।

कोर्ट में दाखिल याचिका के अनुसार महिला सरकारी अस्पताल में नर्स नर्स का काम करती है। ससुराल वाले महिला को ऑस्ट्रेलिया जाकर, वहां नौकरी करने के लिए दबाव बना रहे थे जिसके चलते महिला ने जुलाई 2017 में अपने बेटे के साथ ससुराल छोड़ दिया था। महिला का कहना है कि उसे यह विचार पसंद नहीं था इसलिए उसने यह रास्ता अपनाया।

पति द्वारा कोर्ट में दी गई दलील

मेरा रिपोर्ट के अनुसार गुजरात हाईकोर्ट ने नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 321 का हवाला देते हुए काकी कोई भी व्यक्ति किसी महिला या उसकी पत्नी को साथ रहने के लिए और विवाहित अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। यदि पत्नी साथ रहने से निकाल कर देती है तो ऐसे मामले में उसे दांपत्य अधिकारों को स्थापित करने के लिए 1 डिग्री के जरिए मजबूत नहीं किया जा सकता है। वही महिला के पति द्वारा कोर्ट में दलील रखी गई थी कि उसकी पत्नी बिना किसी विवाद आधार पर घर छोड़ कर गई थी।

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