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भाकपा माले ने राज्यपाल को लिखी चिट्ठी, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वीसी के खिलाफ SIT जांच की मांग की

Janjwar Desk
19 Dec 2021 2:09 PM GMT
भाकपा माले ने राज्यपाल को लिखी चिट्ठी, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वीसी के खिलाफ SIT जांच की मांग की
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नियुक्तियों के मामले में कुलपति महोदय के विवादास्पद रिकॉर्ड को देखते हुए कार्यकाल के अंतिम महीनों में उन्हें नियुक्ति की विशेष अनुमति देना एक तरह से उनके जाल में फंसने जैसा है।

उत्तराखंड न्यूज। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में जारी भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा मामले में भाकपा माले के सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने राज्यपाल गुरमीत सिंह को एक चिट्ठी लिखी है। पत्र के जरिए उन्होंने कुलपति ओपीएस नेगी को दिए गए विशेष अधिकार वापस लेने की मांग की है। बता दें कि जनज्वार डॉट कॉम ( https://janjwar.com/ ) इस मुद्दे को प्राथमिकता के स्तर पर उठाता रहा है।

भाकपा माले के सचिव इंद्रेश मैखुरी ने पत्र के जरिए राज्यपाल गुरमीत सिंह से मांग की है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी को दी गई विशेष अनुमति को रद्द किया जाए। दीक्षांत समारोह और कार्यपरिषद की बैठक की अनुमति न करने दिया जाए। साथ ही विशेष अनुमति लेकर की गई नियुक्तियों समेत कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी जी के कार्यकाल में की गई समस्त नियुक्तियों की जांच, उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराई जाए।

पूर्व राज्यपाल ने नियुक्तियों को रद्द करने का दिया था भरोसा

राज्यपाल को जारी पत्र में कहा है कि समाचार पत्रों के जरिए अगस्त 2021 में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में 56 फर्जी नियुक्तियों का मामला प्रकाश में आया था। समाचार पत्रों ने यह भी लिखा था कि उक्त फर्जी नियुक्तियां ऑडिट ने एक साल पहले पकड़ ली थी, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने कहा था कि उक्त नियुक्तियां उनकी संस्तुति के बगैर हुई है। सभी विवादित नियुक्त्यिां निरस्त की जाएंगी। उन्होंने उक्त नियुक्तियों की जांच के आदेश भी दिए थे। उनके पदमुक्त होने के बाद उक्त जांच का क्या हुआ अभी कुछ पता नहीं चला।

इसके अलावा विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय निदेशकों की नियुक्तियों के मामले में गड़बड़ियों के आरोप लगे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन पर प्राध्यापकों की नियुक्तियों और आरक्षण के रोस्टर में गड़बड़ियों के भी गंभीर आरोप लग चुके हैं। समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक प्रोफेसरों के नियुक्ति में महिला आरक्षण पूरी तरह गायब कर दिया गया। साथ ही अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के हितों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया।

02 नवंबर को जारी आदेश सही

भाकपा माले के सचिव मैखुरी ने अपने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया है कि 02 नवंबर, 2021 को राज्यपाल की ओर से जारी आदेश नियामानुसार सही था। उक्त आदेश में राज्यपाल ने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी को कार्यकाल तीन महीने शेष होने का हवाला देते हुए कार्यपरिषद की बैठकें, नियुक्ति हेतु चयन समिति/साक्षात्कार आयोजित नहीं करने का ​स्पष्ट निर्देश दिया था। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति महोदय के कार्यकाल में सामने आए विवादों को देखते हुए राज्यपाल का उक्त आदेश एकदम सही और उचित वक्त पर जारी किया गया था।

24 नवंबर को जारी आदेश कुलपति के जाल में फंसने जैसा




इसके बावजूद 24 नवंबर, 2021 को उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय को कुछ पदों पर नियुक्ति और कार्यपरिषद की बैठक करने की अनुमति दी गई। महामहिम इस विशेष अनुमति को अपवाद स्वरूप दी गई अनुमति कहा गया। लेकिन नियुक्तियों के मामले में कुलपति महोदय के विवादास्पद रिकॉर्ड को देखते हुए कार्यकाल के अंतिम महीनों में उन्हें नियुक्ति की विशेष अनुमति देना एक तरह से उनके जाल में फंसने जैसा है।

इस मामले में ताजा जानकारी यह है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति महोदय अपने कार्यकाल के अंतिम महीनों में नियुक्ति के बाद दीक्षांत समारोह भी करने जा रहे हैं। महामहिम जिन पदों पर नियुक्ति के लिए कुलपति महोदय ने कार्यकाल के अंतिम महीनों में विशेष अनुमति मांगी, न तो वे ऐसी थी कि उनके तत्काल न होने से विश्वविद्यालय का सुचारु संचालन बाधित हो जाता और न ही दीक्षांत समारोह इतना आवश्यक है कि उसके लिए कुछ महीनों बाद नियुक्त होने वाले नए कुलपति की प्रतीक्षा न की जा सके। दीक्षांत के नाम पर नियम-कायदों के अंत की अनुमति कतई नहीं दी जानी चाहिए।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी की स्थापना प्रदेश में दूरस्थ शिक्षा के प्रसार के मकसद से की गई थी, लेकिन बीते कुछ अरसे से इस विश्वविद्यालय यदि किसी चीज के प्रसार के लिए चर्चित रहा है तो वो भ्रष्टाचार और अनियमितता है।

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