Jaishankar ने यूएस-यूरोप को फिर सुनाई खरी-खरी, कहा - चीनी आक्रामकता यूरोप के लिए वेक-अप कॉल
Jaishankar ने यूएस-यूरोप को फिर सुनाई खरी-खरी, कहा - चीनी आक्रामकता यूरोप के लिए वेक-अप कॉल
Raisina Dialogue : भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ( S Jaishankar ) ने अमेरिका ( America ) और यूरोप ( Europe ) पर एक बार फिर पलटवार किया है। रायसीना डॉयलॉग ( Raisina Dialogue ) में उन्होंने सालों से एशिया में चीन के आक्रामक व्यवहार की अनदेखी करने और तालिबान के साथ समझौता कर अफगानिस्तान को संकट में धकेलने का आरोप लगाया। रायसीना डायलॉग्स में जयशंकर अमेरिकी और यूरोपियन डिप्लोमैट्स से कहा कि आपने यूक्रेन और रूस युद्ध को लेकर भारत की बात की। मुझे याद है, एक साल से भी कम समय पहले अफगानिस्तान में क्या हुआ था, जहां नागरिकों को दुनिया ने एक संकट की ओर धकेल दिया।
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने दी थी नसीहत
दरअसल, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन देर लियेन ने रायसीना डायलॉग्स में बूचा में हुई हत्याओं को अंतरराष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन बताया था। साथ ही कहा था कि यूक्रेन में युद्ध के परिणाम न केवल यूरोप के भविष्य को निर्धारित करेंगे बल्कि भारत-प्रशांत क्षेत्र और पूरी दुनिया को गहराई से प्रभावित करेंगे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों से स्थायी शांति के प्रयासों का समर्थन करने का आग्रह किया और भारत से समर्थन की अपील भी की।
इसके अलावा, रायसीना डायलॉग में लक्जमबर्ग के विदेश मंत्री जीन एस्सेलबोर्न के एक अन्य सवाल के जवाब में जयशंकर ( Jaishankar ) ने कहा कि अगर मैं इन चुनौतियों को सिद्धांतों के संदर्भ में रखूं और जब एशिया में चीन ( China agression ) के आक्रामक रवैये के कारण ऐसी ही एक चुनौती हमारे सामने थी तो हमें यूरोप से जो सलाह मिली वह थी चीन के साथ व्यापार बढ़ाओ। कम से कम हम आपको वो सलाह तो नहीं दे रहे हैं। अफगानिस्तान का जिक्र करते हुए उन्होंने पूछा कि मुझे बताया जाए कि आखिर कौन से नियम-आधारित आदेशों को दुनिया ने वहां लागू किया?
अमेरिका और यूरोप ने चीन की अनदेखी क्यों की?
भारत की अपील के बावजूद अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों ने न केवल भारत के ख़िलाफ़, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अन्य देशों के खिलाफ भी चीन के बढ़ते अक्रामक रवैये की अनदेखी की है, क्यों? हां, भारत रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को खत्म करने के लिए बातचीत और कूटनीति का सहारा लेने के लिए कहता रहा। भारत ने अब तक यूक्रेन में सैन्य अभियान शुरू करने के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कदम की निंदा नहीं की है। रूस के साथ भारत की दशकों पुरानी रणनीतिक साझेदारी और सैन्य हथियारों को लेकर भारत की रूस पर निर्भरता को देखते हुए भारत ने युद्ध पर अपना रुख काफी सतर्क रखा है।
क्या चीन एशिया में और आक्रामक हो सकता है
इसी तरह स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ड्ट ने भी जयशंकर से सवाल पूछा कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध से चीन क्या निष्कर्ष निकाल सकता है। क्या कम्युनिस्ट पार्टी स्थिति का लाभ उठाते हुए एशिया में अपने अक्रामक रुख को और बढ़ा सकती है? इसके जवाब में जयशंकर ने कहा कि पिछले एक दशक से एशिया दुनिया का एक आसान हिस्सा नहीं रहा है। यह दुनिया का एक ऐसा हिस्सा है जहां सीमाएं तय नहीं हुई हैं। जहां आतंकवाद अभी भी प्रचलित है। यह दुनिया का वो हिस्सा है जहां एक दशक से अधिक समय से नियमों पर आधारित व्यवस्था लगातार तनाव और संकट में है। मुझे लगता है कि एशिया के बाहर बाकी दुनिया के लिए आज इसे पहचानना जरूरी है।
यूरोप के लिए एशिया को देखने का वेक-अप कॉल
Raisina Dialogue : यूरोपीय देशों ने इस पर ध्यान देने में देर कर दी। भारत लंबे समय से बता रहा है कि चीन पहले से ही एशिया में नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। न केवल भारत के साथ विवादित सीमा पर बल्कि दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और ताइवान खाड़ी के साथ-साथ पूरे भारत-प्रशांत क्षेत्र में वो ऐसा कर रहा है। पिछले 10 सालों से एशिया में ऐसी चीजें हो रही हैं। यूरोप ने शायद इसे नहीं देखा होगा तो ये यूरोप के लिए भी एशिया को देखने के लिए एक वेक-अप कॉल हो सकता है।