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झारखंड पंचायती राज अधिनियम को PESA संगत बनाने की उठी मांग, पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडे ने दिया आदिवासी हितों को बचाने आश्वासन

Janjwar Desk
13 Feb 2025 6:58 PM IST
झारखंड पंचायती राज अधिनियम को PESA संगत बनाने की उठी मांग, पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडे ने दिया आदिवासी हितों को बचाने आश्वासन
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JPRA व प्रस्तावित PESA नियमावली में ऐसे अनेक बिंदु हैं जो आदिवासी सामूहिकता और स्वायत्ता को कमज़ोर करते हैं। प्रतिनिधि मंडल ने मंत्री का ध्यान ग्रामसभा कोरम की धारा पर केन्द्रित किया। अनुसूचित क्षेत्र के ग्रामसभा के लिए कुल सदस्यों के महज़ एक तिहाई की उपस्थिति का कोरम रखा गया है...

PESA act : झारखंड जनाधिकार महासभा के प्रतिनिधिमंडल ने पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडे सिंह से मिलकर PESA के सभी अपवादों और उपन्तारणों अनुरूप झारखंड पंचायती राज अधिनियम, 2001 को संशोधित करने की मांग की। प्रतिनिधिमंडल के साथ पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव भी थीं। पंचायती राज मंत्री ने आश्वासन दिया कि सभी के सुझावों को लेते हुए इस प्रक्रिया को मिलकर आगे बढ़ाया जायेगा।

प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री से कहा कि PESA का मूल यही है कि अनुसूचित क्षेत्र में त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था के प्रावधानों का विस्तार होगा, लेकिन आदिवासी सामुदायिकता, स्वायत्तता और पारम्परिक स्वशासन इस पंचायत व्यवस्था का मुख्य केंद्रबिंदु होगा एवं ग्रामसभा स्वयंभू होगा। हालांकि झारखंड राज्य ने 2001 में झारखंड पंचायती राज अधिनियम (JPRA) बनाया, लेकिन इसमें PESA के अनुरूप ग्रामसभा व पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था सम्बंधित अनेक प्रावधान नहीं हैं। JPRA मुख्यतः पंचायत केन्द्रित है, जबकि PESA के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में इसे ग्राम सभा केन्द्रित होना है।

उदाहरण के लिए, ग्रामसभा की शक्तियों में सामुदायिक संसाधनों का मालिकाना, भूमि अधिग्रहण सम्बंधित अनुमति, गौण खनिज सम्बंधित अनुमति, गौण वन उपज पर स्वामित्व, अवैध भूमि हस्तांतरण रोकने की शक्ति, साहूकारी पर नियंत्रण, सामाजिक सेवा सम्बंधित सभी संस्थानों व कर्मियों पर नियंत्रण, स्थानीय बाज़ारों पर नियंत्रण आदि का ज़िक्र नहीं है। इसी प्रकार, आदिवासियों की रूढ़ी विधि व व्यवस्था, सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाज़ और सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन, जो PESA का मूल है, सम्बंधित कोई भी प्रावधान JPRA में नहीं है।

प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री को विभाग द्वारा बनाये गए PESA नियमावली के ड्राफ्ट में भी कई गंभीर त्रुटियों के विषय में बताया। नियमावली आदिवासी स्वायत्तता और प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार को सुनिश्चित और सुरक्षित नहीं करती है। उदहारण के लिए, PESA के अनुसार ग्रामसभा को आदिवासी भूमि का गलत तरीके के हस्तांतरण को रोकने और ऐसी भूमि वापिस करवाने की शक्ति होगी, लेकिन ड्राफ्ट नियमावली में निर्णायक भूमिका उपायुक्त की है।

इसी प्रकार सामुदायिक संसाधनों पर ग्रामसभा के मालिकाना अधिकार की स्पष्ट व्याख्या नहीं है। साथ ही, PESA नियमावली ड्राफ्ट में कई प्रावधानों का वर्तमान कानूनों के रेफरेन्स में व्याख्या किया गया है, जिसके कारण वे PESA के मूल भावना के विपरीत सामूहिक अधिकारों को सीमित करते हैं, जबकि PESA कानून अनुसार सभी सबंधित राज्य व केंद्रीय कानूनों में संशोधन किया जाना है।

इसके अलावा JPRA व प्रस्तावित PESA नियमावली में ऐसे अनेक बिंदु हैं जो आदिवासी सामूहिकता और स्वायत्ता को कमज़ोर करते हैं। प्रतिनिधि मंडल ने मंत्री का ध्यान ग्रामसभा कोरम की धारा पर केन्द्रित किया। अनुसूचित क्षेत्र के ग्रामसभा के लिए कुल सदस्यों के महज़ एक तिहाई की उपस्थिति का कोरम रखा गया है। यह सामूहिक निर्णय प्रक्रिया को कमज़ोर करती है। साथ ही आदिवासियों के रीति रिवाज़ अनुसार चलने वाले ग्रामसभा के सचिव के रूप में सरकारी कर्मी (पंचायत सेवक) का रहना भी अनुचित है।

ऐसी परिस्थिति में, बिना JPRA को संशोधित किये एवं बिना प्रस्तावित नियमावली में सुधार किये, नियमावली को अधिसूचित करना पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को कमज़ोर करना होगा। महासभा ने पंचायती राज मंत्री के सामने मांग रखी कि

—PESA के सभी अपवादों और उपन्तारणों अनुरूप झारखंड पंचायती राज अधिनियम, 2001 को संशोधित किया जाये।

—PESA नियमावली के वर्तमान ड्राफ्ट की खामियों को PESA कानून की मूल भावना अनुरूप ठीक किया जाये।

—यह पूरी प्रक्रिया आदिवासियों, पारंपरिक आदिवासी स्वशासन प्रणाली के प्रतिनिधियों और आदिवासी अधिकारों और पांचवीं अनुसूची के मसले पर संघर्षरत जन संगठनों के साथ मिलकर पूर्ण पारदर्शिता के साथ चलायी जाये।

—राज्य सरकार आदिवासियों, पारंपरिक आदिवासी स्वशासन प्रणाली के प्रतिनिधियों और आदिवासी अधिकारों एवं पांचवीं अनुसूची के मसले पर संघर्षरत जन संगठनों के प्रतिनिधियों व विभागीय पदाधिकारियों की एक समिति का गठन करे जो राज्य व केंद्र के सभी कानूनों व नियमों का अध्ययन कर PESA अनुरूप संशोधनों का सुझाव देगी। साथ ही, PESA के धारा 4(o) अनुसार छठी अनुसूची के स्वशासी परिषद अनुरूप ढांचे का प्रारूप भी सुझावित करेगी।

साथ ही महासभा ने मंत्री को गठबंधन दलों द्वारा किए गए चुनावी वादों को भी याद दिलाया और मांग किया कि सरकार तुरंत उन वादों को पूरा करने की दिशा में कार्यवाई करे। उदाहरण के लिए, लैंड बैंक व भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन, 2017 को तुरंत रद्द किया जाए; झारखंडी जनाकांक्षाओं के आधार पर स्थानीयता और नियोजन नीति को तुरंत लागू किया जाए; दलित समुदाय व भूमिहीनों के लिए जाति प्रमाणपत्र बनाने की प्रक्रिया को सरल बनाते हुए आवेदकों को तुरंत जाति प्रमाणपत्र दिया जाए; आंगनवाड़ी व मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडा दिया जाए; मनरेगा समेत हर सरकारी योजना में व्याप्त ज़मीनी भ्रष्टाचार और ठेकेदारी व्यवस्था पर तुरंत अंकुश लगे आदि।

प्रतिनिधिमंडल में दिनेश मुर्मू, सिसिलिया लकड़ा, एलिना होरो, रिया तुलिका पिंगुआ, सिराज और टॉम कावला शामिल थे।

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