किसान आंदोलनकारियों ने कहा ट्रैक्टर मार्च का मकसद देश का दिल जीतना है, दिल्ली को पस्त करना नहीं
जनज्वार, दिल्ली। आज रविवार 24 जनवरी को दिल्ली पुलिस ने आखिरकार दिल्ली में गणतंत्र दिवस 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर मार्च निकालने की इजाजत दे दी है। दिल्ली पुलिस ने इजाजत देते हुए आंदोलनकारियों को 4 रूट दिए हैं, जहां से वे अपना मार्च निकाल सकेंगे। मीडिया को यह जानकारी पुलिस अधिकारियों से औपचारिक मुलाकात के बाद स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने दी।
योगेंद्र यादव ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस ने प्रस्तावित 26 जनवरी को प्रस्तावित किसान मार्च के लिए चार रूट हमें हम आंदोलनकारियों को मुहैया कराया है। किसान गाजीपुरए चिल्लाए सिंघू और टिकरी बाॅर्डर से टैक्टर मार्च निकाल सकेंगे। आंदोलनकारी किसानों ने इस मार्च का नाम 'किसान गणतंत्र परेड' नाम रखा है, जिसे शांतिपूर्ण तरीके से दिल्ली के बाहरी सड़कों से होते हुए पूरा होना है।
गौरतलब है कि सरकार से किसान आंदोलनकारियों की 12 दौर की वार्ता हो चुकी हैै। सरकार ने आखिरी दौर की यानी 12वीं वार्ता में प्रस्ताव दिया था कि डेढ़ साल के लिए तीनों किसान विधेयक स्थगित कर दिए जाएगा, लेकिन किसान आंदोलनकारी प्रतिनिधियों का दो टूक कहना था कि उनके आंदोलन का मकसद किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करना है न कि स्थगन। ऐसे में किसान और सरकार के बीच यह वार्ता भी असफल रही जिसके बाद 26 जनवरी को होने वाला किसानों का मार्च सुनिश्चित हो गया है।
ट्रैक्टर मार्च की तैयारी के लिए उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड से किसान दिल्ली बाॅर्डर की आने लगे हैं। पंजाब के किसान पिछले 2 महीने से बाॅर्डर पर जमे हुए हैं। किसानों का पहला जत्था पंजाब और हरियाणा होते हुए दिल्ली के सिंघू बाॅर्डर पर 26 नवंबर को पहुंच गया था। तब से लेकर अबतक गाजीपुर, सिंघू, टिकरी और चिल्ला बाॅर्डर पर किसान लगातार आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को मानने को तैयार नहीं है।
दिल्ली बाॅर्डर पर धरना दे रहे आंदोलनकारियों में करीब 250 किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। उनमें सरकार से वार्ता करने में 32 संगठनों के प्रतिनिधि जाते हैं, जबकि सिंघू बाॅर्डर पर बनी समिति 50 के करीब किसान संगठन शामिल हैं। आंदोलनकारियों का सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब से आए किसानों और वामपंथी रूझान के किसान आंदोलनकारियों का है। इसीलिए सत्ता प्रायोजित मीडिया और भाजपा के नेता-मंत्री आंदोलनकारियों को नक्सली-खालीस्तानी कहने से नहीं चूकते।
बताते चलें कि किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 पर किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता कानून के खिलाफ आंदोलनरत हैं।