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रसूल गलवान के पोते ने कहा, 'युद्ध विनाश लाता है, आशा है कि LAC पर विवाद शांति से हल हो जाएगा'

Janjwar Desk
19 Jun 2020 12:50 PM GMT
रसूल गलवान के पोते ने कहा, युद्ध विनाश लाता है, आशा है कि LAC पर विवाद शांति से हल हो जाएगा
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मोहम्मद अमीन गलवान ने कहा किचीन की नजर 1962 से घाटी पर थी, लेकिन हमारे सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया, अब फिर वे ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं...

जनज्वार। लद्दाख का गलवान घाटी, जहां एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा है, उसका संबंध गलवान परिवारों के साथ गहरा व भावनात्मक है। इस घाटी का नाम एक स्थानीय एक्सप्लोरर गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था।

एलएसी पर वर्तमान स्टैंड ऑफ के बारे में बात करते हुए उनके पोते मोहम्मद अमीन गलवान ने कहा कि वह उन जवानों को सलाम करते हैं, जिन्होंने चीनी पीएलए के साथ लड़ते हुए अपना बलिदान दिया। उन्होंने कहा, 'युद्ध विनाश लाता है, आशा है कि एलएसी पर विवाद शांति से हल हो जाएगा।'

परिवार के साथ घाटी के गहरे संबंध को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके दादाजी पहले इंसान थे जो इस गलवान घाटी की ट्रैकिंग करते हुए अक्साई चीन क्षेत्र में पहुंचे थे। उन्होंने साल 1895 में अंग्रेजों के साथ इस घाटी में ट्रैकिंग की थी।

उन्होंने कहा, 'अक्सई चीन जाने के दौरान रास्ते में मौसम खराब हो गया और ब्रिटिश टीम को बचाना मुश्किल हो गया। मौत उनकी आंखों के सामने थी। हालांकि फिर रसूल गलवान ने टीम को मंजिल तक पहुंचाया। उनके इस कार्य से ब्रिटिश काफी खुश हुए और उन्होंने उनसे पुरस्कार मांगने के लिए कहा, फिर उन्होंने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए बस इस नाले का नामकरण मेरे नाम पर कर दिया जाए।'

उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस पर कब्जा करने की कोशिश की है, बल्कि अतीत में ऐसे प्रयास भारतीय सैनिकों द्वारा निरस्त किए गए थे।

मोहम्मद अमीन गलवान ने कहा, 'चीन की नजर 1962 से घाटी पर थी, लेकिन हमारे सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया, अब फिर वे ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं, दुर्भाग्य से हमारे कुछ जवान शहीद हो गए, हम उन्हें सलाम करते हैं।' उन्होंने कहा कि एलएसी में विवाद अच्छा संकेत नहीं है और सबसे अच्छी बात यह होगी कि मुद्दों को शांति से हल किया जाए।

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