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जहां बाल नरेंद्र ने मगरमच्छ पकड़ा था उस वडनगर को 11 महीने से नहीं मिला विधायक, पिछली हार के बाद RSS चीफ के करीबी को टिकट

Janjwar Desk
14 Nov 2022 8:03 AM GMT
जहां बाल नरेंद्र ने मगरमच्छ पकड़ा था उस वडनगर को 11 महीने से नहीं मिला विधायक, पिछली हार के बाद RSS चीफ के करीबी को मिला टिकट
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जहां बाल नरेंद्र ने मगरमच्छ पकड़ा था उस वडनगर को 11 महीने से नहीं मिला विधायक, पिछली हार के बाद RSS चीफ के करीबी को मिला टिकट

Gujrat Assembly Election 2022: एक पल को ये जगह किसी किले की तरह मालूम होती है। यहीं वो तालाब है जहां से बाल नरेंद्र मगरमच्छ के बच्चे को पकड़ लाए थे। कुछ ही दूर वो रेलवे स्टेशन है, जहां मोदी के पिता और खुद PM चाय बेचा करते थे...

Gujrat Assembly Election 2022: संकरी-संकरी गलियां, ऊंचाई पर बने घर और एंट्री के लिए अलग-अलग दिशाओं में 6 गेट। एक पल को ये जगह किसी किले की तरह मालूम होती है। यहीं वो तालाब है जहां से बाल नरेंद्र मगरमच्छ के बच्चे को पकड़ लाए थे। कुछ ही दूर वो रेलवे स्टेशन है, जहां मोदी के पिता और खुद PM चाय बेचा करते थे।

यहां की गलियों, दीवारों और लोगों के जेहन में ये कहानियां बिखरी पड़ी हैं, एक सामान्य सा लड़का यहां रहता था, जो अब दुनिया के सबसे मशहूर और प्रभावशाली नेताओं में से एक है। अहमदाबाद से 90 किलोमीटर दूर उंझा विधानसभा के वडनगर गांव की। वडनगर जहां मोदी पले-बढ़े और पढ़े। महेसाणा जिले में आने वाले इस गांव का इतिहास 2500 साल से भी ज्यादा पुराना है।

भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ये सीट BJP के लिए काफी अहम है और इसके लिए अंदरखाने न सिर्फ प्लान बना है बल्कि स्ट्रैटजी के तहत प्रचार भी किया जा रहा है। BJP को बड़ा झटका तब लगा था, जब 1972 के बाद 2017 में ऐसा पहली बार हुआ कि खुद मोदी के गांव वाली विधानसभा सीट कांग्रेस ने जीत ली थी। इसकी दो बड़ी वजह सामने आईं थीं। पहली, पाटीदारों का आंदोलन और दूसरी 4 बार से BJP विधायक रहे नारायणभाई लल्लूदास पटेल के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी। इसलिए इस बार उंझा में पूरी कमान RSS के हाथ में है। प्रत्याशी कीर्तिभाई केशवलाल पटेल भी RSS की पसंद के हैं। वे संघ प्रमुख मोहन भागवत के करीबी हैं।

मोदी परिवार के घरों में किरायेदारों का बसेरा

वडनगर की वो जगह जहां मोदी का बचपन बीता था। यहां PM मोदी के परिवार के 10 घर हैं। इनमें से एक तो उनके भाई प्रह्लाद मोदी ने कुछ साल पहले ही बनवाया है। ज्यादातर घरों में किराएदार रह रहे हैं। कभी PM मोदी के पड़ोसी रहे और BJP नेता राजूभाई मोदी बताते हैं, हम और मोदी परिवार एक ही घांची समुदाय से आते हैं। पहले हमारे समाज के लोग तेल का बिजनेस करते थे, लेकिन अब यह काम न के बराबर लोग ही कर रहे हैं। वडनगर में हमारे समुदाय के करीब 200 घर हैं। मोहल्ले के आसपास ही करीब 100 घर हैं। यहां PM मोदी के परिवार के 10 से 11 घर हैं। उनके घर का अब यहां कोई नहीं रहता। उनके चाचा के परिवार के लोग जरूर रहते हैं।

वडनगर का विकास PM मोदी ने किया

डेवलपमेंट के बारे में बात करने पर हर कोई यहां लोकल नेताओं की बजाय PM मोदी का ही नाम लेता है। बीते कुछ साल में वडनगर में नया रेलवे स्टेशन, नया बस स्टैंड, मेडिकल कॉलेज, बड़ा हॉस्पिटल और तालाबों के आसपास वॉकवे बने हैं। गांव में ही बने प्राचीन हाटकेश्वर मंदिर का भी रिनोवेशन चल रहा है। सड़कें पक्की हैं और आसपास बिल्डिंग इतनी हैं कि किसी भी एंगल से वडनगर अब गांव नहीं लगता। पुरातत्व विभाग की टीम खुदाई का काम कर रही है। यहां से बौद्ध काल के तमाम अवशेष निकल रहे हैं।

विकास के बाद क्या रही हार की वजह?

इस सवाल के जवाब में राजूभाई कहते हैं, तब हमारे प्रत्याशी नारायणभाई पटेल थे। वे 1995 से विधायक थे। उन्हें लेकर कुछ एंटी इनकम्बेंसी थी। इसके अलावा पाटीदार आंदोलन ने कमजोर कर दिया था, क्योंकि उंझा विधानसभा के 2.28 लाख वोटर में से 80 हजार पाटीदार समुदाय से आते हैं। 2017 में कांग्रेस की आशा पटेल जीत गईं थीं। 2019 में वे भी BJP में शामिल हो गईं। दिसंबर 2021 में डेंगू से उनकी मौत हो गई। उनके निधन के बाद से ही विधायक की सीट खाली है।

वडनगर में गांव के बीचोंबीच शर्मिष्ठा तालाब है। इसके चारों तरफ वॉकवे बना है। PM मोदी के बचपन के दोस्त शामलदास मोदी बताते हैं, मैं PM मोदी से एक साल बड़ा हूं। उनकी मां हीराबा के पास ही बड़ा हुआ हूं। हम 7वीं तक साथ में पढ़े। हम 14 दोस्त थे उसमें से अब 3 ही बचे हैं। 2017 में कांग्रेस के जीतने पर शामलदास कहते हैं, वह धोखे से जीत गई थी। इस बार ऐसा नहीं होगा। आंकड़ों से भी पता चलता है कि उंझा विधानसभा में कांग्रेस इससे पहले 1972 में जीती थी। बाद में इस सीट से एक बार इंडिपेंडेंट और तीन बार जनता पार्टी के प्रत्याशी जीते। 1995 से यह सीट BJP के कब्जे में रही।

50 साल से कांग्रेस का विरोधी जीत रहा चुनाव

वडनगर के उंझा में देश की सबसे बड़ी मसाला और जीरा मंडी है। उंझा मंडी में घुसते ही चारों तरफ जीरे और कई मसालों के ढेर नजर आते हैं। यहां से जीरा और मसाले विदेशों तक सप्लाई होते हैं। कांग्रेस के सीनियर लीडर पटेल बाबूलाल नाथालाल कहते हैं कि बीते 50 साल से यहां कांग्रेस के खिलाफ जो पार्टी है, उसी का कैंडिडेट जीत रहा है। पहले जनता दल के प्रत्याशी जीतते थे। फिर BJP जीतने लगी। इसकी एक बड़ी वजह पाटीदारों की आबादी ज्यादा होना है। ये कभी कांग्रेस को वोट नहीं करते। ब्राह्मण, बनिया, मोदी और प्रजापति 20 साल पहले कांग्रेस के वोटर थे, लेकिन अब ये BJP में जा चुके हैं।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से वडनगर के आसपास के 22-23 गांव में उनका बहुत प्रभाव बना है। इसलिए BJP को वहां से 10 से 12 हजार वोट ज्यादा मिलते हैं। उंझा में मुकाबला 50-50 का होता है, लेकिन यहां भी गांव में BJP बाजी मार लेती है। इस बार भी ऐसा ही होगा। कांग्रेस के शहर अध्यक्ष चेतन पटेल कहते हैं, एक साल से यहां विधायक की सीट खाली पड़ी है। लॉ एंड ऑर्डर भी मेंटेन नहीं हो रहा। इसलिए इस बार जीत कांग्रेस की होगी। हालांकि, कांग्रेस को वोट देने की कोई ठोस वजह वे नहीं बता पाते।

स्कूटी से प्रचार कर रहा टिकट पाया RSS कार्यकर्ता

उंझा से इस बार BJP ने कीर्तिभाई केशवलाल पटेल को टिकट दिया है। पटेल RSS प्रमुख मोहन भागवत के करीबी बताए जा रहे हैं। BJP कार्यकर्ताओं के मुताबिक, टिकट को लेकर गुटबाजी हो रही थी, जो नाम सामने आ रहे थे उनमें एक-दूसरे को लेकर मतभेद था। इसके बाद कीर्तिभाई का नाम RSS की तरफ से फाइनल किया गया है। कीर्तिभाई की सादगी का हर कोई मुरीद है। मैं BJP कार्यकर्ताओं से बात कर रहा था, तभी वे स्कूटी से प्रचार करते हुए जाते दिखे। कीर्तिभाई कहते हैं कि पूरे प्रदेश में BJP के पक्ष में माहौल है। हारने की कोई वजह नहीं है। गुजरात में दो फेज में वोटिंग होनी है। उंझा में दूसरे फेज यानी 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। कांग्रेस ने अभी यहां से अपने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है।

अपने इतिहास और डेवलपमेंट की वजह से वडनगर टूरिस्ट स्पॉट बन रहा है। यहां के हॉस्पिटल की OPD में कभी सिर्फ 50 मरीजों के बैठने की जगह थी, लेकिन अब यहां एक हजार मरीजों को देखा जा सकता है। यह इलाके में मेडिकल हेल्थकेयर का बड़ा हब है। वडनगर में मध्यकाल से जुड़े स्मारक भी मौजूद हैं। इनमें सबसे खास है कीर्ति तोरण। इसे सोलंकी राजाओं ने बनवाया था। माना जाता है कि यह किसी जीत की यादगार के तौर पर बनाया गया होगा। शर्मिष्ठा झील के किनारे पर बने इस तोरण में गोल आकार के दो खंभे हैं, जिन पर शिकार और युद्ध के साथ जानवरों की कलाकृतियां बनी हैं। इन पर देवताओं की मूर्तियां भी हैं।

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