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Twitter पर भाषाई बहस कैसे बना विवाद अखाड़ा, क्या है Hindi का दर्जा, दक्षिण भारतीय क्यों करते हैं इसका विरोध?

Janjwar Desk
28 April 2022 9:44 AM GMT
Twitter पर भाषाई बहस कैसे बना विवाद अखाड़ा, क्या है Hindi का दर्जा, दक्षिण भारतीय क्यों करते हैं इसका विरोध?
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Twitter पर भाषाई बहस कैसे बना विवाद अखाड़ा, क्या है Hindi का दर्जा, दक्षिण भारतीय क्यों करते हैं इसका विरोध?

हिंदी का राजभाषा के रूप में प्रयोग को लेकर विरोध नई बात नहीं है। जरूरी यह है कि विरोध को दबाने के बदले हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ाने को लेकर सरकार प्रयास जारी रखे।


हिंदी को लेकर नये सिरे से जारी बहस पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

नई दिल्ली। हिंदी देश की राजकीय भाषा है या नहीं, इसको लेकर एक बार फिर भाषाई बहस विवाद ( Linguistic Dispute ) का विषय बनने की ओर अग्रसर है। इस बहस को सुलगाने का काम 14 सितंबर 2019 को एक ट्विट के जरिए केंद्रीय गृह अमित शाह ( Amit shah ) ने ही कर दिया था। उसके बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला चला था। ढ़ाई साल बाद उसी बहस की शुरुआत एक बार फिर किच्चा सुदीप ( Kichcha Sudip ) और अभिनेता अजय देवगन ( Ajay Devgan ) के बीच हिंदी ( Hindi ) और कन्नड़ ( Kannad ) को लेकर ट्विटर ( Twitter debate ) पर बहस से हुई है। इस बहस में कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ( Basavraj bommai ) भी कूद पड़े हैं। लग रहा है बोम्मई आगामी विधानसभा चुनाव में हिजाब के बाद भाषा का तड़का लगाने की सियासी योजना अभी से जुट गए हैं। खास बात यह है कि भाषाई विवाद ( Hindi language Controversy ) में 'मुन्नी' नहीं 'हिंदी' का बदनाम होना तय है।

तो आइए, हम आपको बताते हैं क्या है विवाद और क्या है हिंदी की संवैधानिक प्रस्थिति। साथ ही ताजा बहस में किसने क्या कहा?


संविधान में हिंदी को लेकर क्या है प्रावधान?

हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर, 1949 को मिला। संविधान के भाग-17 में इससे संबंधित प्रावधान शामिल हैं। दरअसल, 15 अगस्त 1947 में जब ब्रिटिश हुकूमत से भारत आजाद हुआ तो उसके सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था। भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं। ऐसे में कौन सी राष्ट्रभाषा चुनी जाएगी ये काफी अहम और जटिल मुद्दा था। काफी विचार-विमर्श के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया। संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी।

1965 में हिंदी को बनना था आधिकारिक भाषा

संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक 26 जनवरी, 1965 में हिंदी को अंग्रजी के स्थान पर देश की आधिकारिक भाषा बनना था और उसके बाद हिंदी में ही विभिन्न राज्यों को आपस में और केंद्र के साथ संवाद करना था। ऐसा आसानी से हो सके इसके लिए संविधान में 1955 और 1960 में राजभाषा आयोगों को बनाने की भी बात कही गई थी। इन आयोगों को हिंदी के विकास के संदर्भ में रिपोर्ट देनी थी। रिपोर्टों के आधार पर संसद की संयुक्त समिति के द्वारा राष्ट्रपति को इस संबंध में कुछ सिफारिशें करनी थीं।

संशोधित राजभाषा कानून 1963

संविधान सभा के इस फैसले के बाद दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वालों को इस बात का डर लगने लगा कि हिंदी के लागू हो जाने से वे उत्तर भारतीयों के मुकाबले विभिन्न क्षेत्रों में कमजोर स्थिति में हो जाएंगे। हिंदी को लागू करने और न करने के आंदोलनों के बीच 1963 में 'राजभाषा कानून' पारित किया गया, जिसने 1965 के बाद अंग्रेजी को राजभाषा के तौर पर इस्तेमाल न करने की पाबंदी को खत्म कर दिया। हालांकि, हिंदी का विरोध करने वाले इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद इस कानून में मौजूद कुछ अस्पष्टता फिर से उनके विरुद्ध जा सकती है।

संशोधित राजभाषा कानून 1967

इस बीच 26 जनवरी, 1965 को हिंदी देश की राजभाषा बन गई और इसके साथ ही दक्षिण भारत के राज्यों खास तौर पर तमिलनाडु में आंदोलनों और हिंसा का एक जबरदस्त दौर चला। इसमें कई छात्रों ने आत्मदाह तक कर लिया। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं इंदिरा गांधी के प्रयासों से इस समस्या का समाधान ढूंढ़ा गया जिसकी परिणति 1967 में राजभाषा कानून में संशोधन के रूप में हुई। इस संशोधन के जरिए अंग्रेजी को देश की राजभाषा के रूप में तब तक आवश्यक मान लिया गया जब तक कि गैर-हिंदी भाषी राज्य ऐसा चाहते हों। तब से आज तक यही व्यवस्था चली आ रही है।

14 सितंबर 2019 को अमित शाह ने क्या कहा था?

हिंदी दिवस यानि 14 सितंबर, 2019 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'एक राष्ट्र, एक भाषा' का विचार पेश कर हड़कंप मचा दिया था। उन्होंने हिंदी में लिखते हुए ट्विटर पर कहा था — भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है लेकिन पूरे देश की एक भाषा का होना बहुत जरूरी है जो विश्व स्तर पर भारत की पहचान बने। आज अगर कोई एक भाषा देश को जोड़ने का काम कर सकती है तो वह सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है।

शाह की टिप्पणियों के बाद देशव्यापी विरोध शुरू हो गया। विरोध करने वालों ने आरोप लगाया कि प्रस्ताव संकीर्ण था। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए शाह ने तुरंत एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि उन्होंने केवल एक अनुरोध किया था और विपक्ष इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है।

अपनी पहले की टिप्पणी को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि एक बच्चा प्रदर्शन कर सकता है, बच्चे का उचित मानसिक विकास तभी संभव है जब बच्चा अपनी मातृभाषा में पढ़े। मातृभाषा का मतलब हिंदी नहीं है। यह मेरे राज्य में गुजराती की तरह एक विशेष राज्य की भाषा है। देश में एक भाषा होनी चाहिए, अगर कोई दूसरी भाषा सीखना चाहता है तो वह हिंदी होनी चाहिए। 2019 में शाह के बयानों की आलोचना हुई। दक्षिण भारतीय राज्यों में कन्नड़ समर्थक संगठन बेंगलुरु में सड़कों पर उतरे और आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

हिंदी हर भारतीय की मातृभाषा नहीं : ओवैसी

अमित शाह की उस ट्विट से नाराज हैदराबाद से एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा था कि हिंदी हर भारतीय की 'मातृभाषा' नहीं है। क्या आप कई मातृभाषाओं की विविधता और सुंदरता की सराहना करने की कोशिश कर सकते हैं जो इस भूमि पर हैं? अनुच्छेद 29 प्रत्येक भारतीय को एक अलग भाषा, लिपि और संस्कृति का अधिकार देता है। भारत हिंदी, हिंदू, हिंदुत्व से बहुत बड़ा है।

शाह या सुल्तान इस बात का रखें ध्यान : कमल हासन

DMK प्रमुख एमके स्टालिन ने आरोप लगाया था कि केंद्र हिंदी की निरंकुशता को थोपने की कोशिश में हैं। अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन ने 2017 में जल्लीकट्टू समर्थक आंदोलन की तुलना में राज्य में एक बड़ी हलचल की चेतावनी दी। उन्होंने कहा था कि विविधता में एकता है एक वादा है जो हमने तब किया था जब हमने भारत को एक गणतंत्र बनाया था। अब, किसी भी शाह, सुल्तान या सम्राट को उस वादे से मुकरना नहीं चाहिए। हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं, लेकिन हमारी मातृभाषा हमेशा तमिल रहेगी।

किच्चा सुदीप के समर्थन में उतरे बसवराज बोम्मई

अभिनेता अजय देवगन और किच्चा सुदीप की हिंदी राष्ट्रीय भाषा पर बहस पर कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा कि किच्चा सुदीप ने जो कहा वह सही था। एक क्षेत्रीय भाषा सबसे महत्वपूर्ण है। एक राज्य भाषाई आधार पर बनता है। सुदीप ने जो कहा है, उसे सभी को समझना चाहिए। साथ ही उसका सम्मान करना चाहिए।

हिंदी राष्ट्रीय भाषा थी, है और रहेगी : देवगन

बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन ने कन्नड़ फिल्म अभिनेता किच्छा सुदीप (Kichcha Sudeep) का जिक्र करते हुए लिखा कि आपके मुताबिक अगर हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा (National Language) नहीं है तो आप अपनी मातृभाषा की फिल्मों को हिंदी में डब करके क्यूं रिलीज करते हैं? हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा थी, है और हमेशा रहेगी।

मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं : किच्चा

किच्चा सुदीप ने कहा था कि पैन इंडिया फिल्में कन्नड़ में बन रही हैं। मैं, इसपर एक छोटा सा करेक्शन करना चाहूंगा। हिंदी अब राष्ट्रीय भाषा नहीं रह गई है। आज बॉलीवुड में पैन इंडिया फिल्में की जा रही है। वह तेलुगु और तमिल फिल्मों का रिमेक बना रहे हैं लेकिन इसके बाद भी स्ट्रगल कर रहे हैं। आज हम वे फिल्मे बना रहे हैं जो दुनियाभर में देखी जा रही हैं। अजय देवगन के ट्वीट का रिप्लाई करते हुए किच्छा ने पलटवार करते हुए लिखा - सर, जिस कॉन्टेक्स्ट में मैंने वह बात कही, मुझे लगता है कि मेरी उस बात को बहुत अलग तरीके से ले लिया गया है। शायद मैं अपनी बात को बेहतर ढंग से आपके सामने तभी रख सूंक जब मैं आपसे मिलूंगा। मेरी बात का मतलब यह नहीं था कि मैं किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाऊं। उत्तेजित करूं या फिर किसी विवाद को बढ़ावा दूं। मैं ऐसा क्यों करूंगा सर।

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