Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

पर्यावरण प्रभाव आंकलन (EIA) लागू हुआ तो तबाह हो जाएंगे पूर्वोत्तर के प्राकृतिक संसाधन

Janjwar Desk
20 Aug 2020 6:24 PM IST
पर्यावरण प्रभाव आंकलन (EIA) लागू हुआ तो तबाह हो जाएंगे पूर्वोत्तर के प्राकृतिक संसाधन
x

(EIA मसौदे के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग, प्रतीकात्मक तस्वीर)

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इस मसौदे को निरस्त करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि अगर यह प्रस्तावित मसौदा ईआईए एक अधिनियम बन जाता है, तो यह इस क्षेत्र के सभी पारिस्थितिक पहलुओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा....

दिनकर कुमार की रिपोर्ट

गोहाटी। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) विरोधी आंदोलन के बाद अब पूर्वोत्तर में ड्राफ्ट पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2019 का कई प्रमुख समूहों और पार्टियों द्वारा विरोध किया जा रहा है और इसे पूर्वोत्तर के जल-जंगल-जमीन के लिए विनाशकारी बताकर इसके खिलाफ आंदोलन शुरू करने की तैयारी की जा रही है।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा 12 मार्च को जारी किया गया ईआईए, 2020 अगर लागू किया जाता है, तो देश भर में प्रभावी होगा और मौजूदा परियोजनाओं की स्थापना या विस्तार / आधुनिकीकरण के संबंध में ईआईए, 2006 को उपसम्बद्ध किया जाएगा।

पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि / परियोजना के प्रभाव का अध्ययन और भविष्यवाणी करने के लिए ईआईए के दिशानिर्देशों का उपयोग किया जाता है। यह एक परियोजना के लिए विभिन्न विकल्पों की तुलना करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है और आर्थिक और पर्यावरणीय लागत और लाभों के सर्वोत्तम संयोजन का प्रतिनिधित्व करने वाले को पहचानने की कोशिश करता है।

ईआईए का मसौदा 2020 कहता है कि इसका उद्देश्य पूर्व पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया को 'ऑनलाइन प्रणाली के कार्यान्वयन के माध्यम से और अधिक पारदर्शी और समीचीन बनाना है, आगे के वितरण, युक्तिकरण, प्रक्रिया का मानकीकरण आदि करना' है।

लेकिन चूंकि नया मसौदा सार्वजनिक परामर्श के लिए निर्धारित की गई अवधि को कम कर देता है और परियोजनाओं के अनुमोदन की अनुमति देता है, इसलिए नागरिक संगठनों को संदेह है कि यह असम और उत्तर-पूर्व के हितों को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से लाया गया है और इस क्षेत्र के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाएगा।

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इस मसौदे को निरस्त करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है, 'अगर यह प्रस्तावित मसौदा ईआईए एक अधिनियम बन जाता है, तो यह इस क्षेत्र के सभी पारिस्थितिक पहलुओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा।' कांग्रेस नेता ने कहा कि न केवल असम और पूर्वोत्तर के लोग, बल्कि 'हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर और लद्दाख सहित पूरे हिमालय क्षेत्र के लोग इस अधिसूचना को लेकर बहुत चिंतित हैं।'

गोगोई ने लिखा, 'इस अधिसूचना ने प्राधिकरण को किसी भी प्रकार के कदम उठाने की असीमित शक्ति दी है जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए हानिकारक होगा। इस तरह की मनमानी शक्ति का बड़े कॉर्पोरेट समूहों द्वारा दुरुपयोग किए जाने की संभावना है।'

असम विधानसभा में कांग्रेस के विधायक और विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने कहा, 'यह प्रस्तावित कानून मुख्य रूप से आपत्तिजनक है क्योंकि यह पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाओं की वास्तविक मंजूरी का रास्ता खोलता है और समुदायों के हितों को प्रभावित करता है।' असम विधानसभा में कांग्रेस के विधायक और विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने 23 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे एक पत्र में बताया है।

उन्होंने मसौदा ईआईए अधिसूचना, 2020 के वर्तमान स्वरूप को निरस्त करने की मांग की, 'निजी कंपनियां भी निजी सलाहकारों की सेवा लेकर अपनी ईआईए रिपोर्ट तैयार कर सकती हैं। यह प्राकृतिक न्याय पर एक आघात है और अपनी भूमि पर स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन है।'

सैकिया ने इस क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में पहले से ही खनन / ड्रिलिंग कार्यों के कारण क्षति के मद्देनजर ईआईए, 2020 को असम और उत्तर-पूर्व के लिए 'बेहद खतरनाक' बताया।

ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने 25 जुलाई को ट्वीट किया, 'ईआईए ड्राफ्ट, 2020, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रणालीगत दमन को वैधता प्रदान करता है। यह हिंसक है, शोषणकारी है, सार्वजनिक भागीदारी को दबाता है और जैव विविधता को अपंग करता है। इसका प्रभाव असम और पूर्वोत्तर के लिए अन्यायपूर्ण, अलोकतांत्रिक और पर्यावरण-विरोधी हो सकता है।'

एमओईएफसीसी के तहत 17 अप्रैल को नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) ने देहिंग पटकाई वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में कोयला खनन की अनुमति दी थी, जिससे असम में हंगामा हुआ।

मई में एमओईएफसीसी ने ऊपरी असम के तिनसुकिया जिले में डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क क्षेत्र के अंतर्गत ऑयल इंडिया लिमिटेड को सात स्थानों पर हाइड्रोकार्बन के विस्तार ड्रिलिंग और परीक्षण के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति दी। 27 मई को डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क से सटे बागजान में स्थित ऑयल के एक प्राकृतिक गैस कुएं में विस्फोट हुआ और फिर 9 जून को आग लग गई और दो अग्निशामकों की मौत हो गई और आसपास के क्षेत्र को पारिस्थितिक क्षति के अलावा 2,000 परिवारों को विस्थापित होना पड़ा। गैस के कुएं में आग अभी भी बुझी नहीं है।

कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता मानस कोंवर ने 25 जुलाई को गुवाहाटी में एक संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया, 'केंद्र सरकार की मंशा असम और उत्तर-पूर्व के शेष भूमि और संसाधनों को लूटना है। इसलिए उसने यह मसौदा ईआईए अधिसूचना, 2020 तैयार किया है, जो हमारे हितों के लिए हानिकारक है।'

लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सचिव पार्थ प्रतिम बेजबरुवा ने कहा, 'ईआईए अधिसूचना, 2020 का मसौदा केंद्र को सार्वजनिक सुनवाई के बिना किसी भी अंतरराष्ट्रीय सीमा से 100 किलोमीटर (किमी) हवाई दूरी के भीतर उद्योग स्थापित करने की अनुमति देता है। चूंकि असम सहित उत्तर-पूर्व के लगभग सभी राज्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़े हुए हैं, इसलिए यह मसौदा सीधे उत्तर-पूर्व के लोगों के हितों के खिलाफ है।'

एमओईएफसीसी ने 12 मार्च को ईआईए अधिसूचना, 2020 का मसौदा प्रकाशित किया था, जिसमें 60 दिनों के भीतर जनता से प्रतिक्रिया मांगी गई थी। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण समय सीमा 11 अगस्त तक बढ़ा दी थी।

(दिनकर कुमार पिछले तीस वर्षों से पूर्वोत्तर की राजनैतिक मसलों की रिपोर्टिंग करते रहे हैं।)

TagsEIA
Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध