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झारखंड

पत्थलगड़ी में लोगों पर लगाए गए मुकदमे वापस लिए जाएं - ज्यां द्रेज

Janjwar Desk
8 Feb 2022 4:26 PM GMT
पत्थलगड़ी में लोगों पर लगाए गए मुकदमे वापस लिए जाएं - ज्यां द्रेज
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Jean Drèze: पुलिस व सुरक्षा बलों के दमनकारी रवैये, मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों व अवैध खनन का विरोध में आज यानी 8 फरवरी को राजभवन के समक्ष विभिन्न जन संगठनों द्वारा दिए गए धरनास्थल पर आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता, रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर व अर्थशास्त्री ज़्याँ द्रेज़ ने कहा कि विद्यालयों से CRPF कैम्प हटाए जाए और पत्थलगड़ी में लोगों पर लगाए गए मुक़दमे वापस लिए जाए। सुरक्षा के नाम पर असुरक्षा हो रही है,

पुलिस व सुरक्षा बलों के दमनकारी रवैये, मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों व अवैध खनन का विरोध में आज यानी 8 फरवरी को राजभवन के समक्ष विभिन्न जन संगठनों द्वारा दिए गए धरनास्थल पर आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता, रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर व अर्थशास्त्री ज़्याँ द्रेज़ ने कहा कि विद्यालयों से CRPF कैम्प हटाए जाए और पत्थलगड़ी में लोगों पर लगाए गए मुक़दमे वापस लिए जाए। सुरक्षा के नाम पर असुरक्षा हो रही है, न्याय के नाम पर लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। जिसे जल्द बंद किया जाए। उन्होंने कहा कि आज अलग अलग जगहों से लोग धरना कार्यक्रम में आए हैं, झारखंड सरकार को यह कहने के लिए कि सरकार मानवाधिकार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाए। इसपर सरकार को संज्ञान लेना चाहिए।

बता दें कि झारखंड जनाधिकार महासभा के आह्वान पर राज्य भर के अनेक जन संगठनों में आदिवसी अधिकार मंच, आदिवसी मूलवासी अधिकार मंच बोकारो, आदिवसी यंगस्टर्स यूनिटी कोल्हन चाईबासा, AIPF झारखंड, अखिल झारखंड खरवार आदिवसी विकास परिषद झारखंड, AWN, आज़ाद समाज पार्टी, बग़ाईचा नामकुम, भारत जन आंदोलन, बिहार प्रगतिशील मज़दूर यूनियन, भाकपा माले, धजवा बचाओ संघर्ष समिति, घरेलू कामगार यूनियन, हुल झारखंड क्रांति दल, इज़्ज़त से जीने का अधिकार अभियान, जन संग्राम मोर्चा, झारखंड जनाधिकार महासभा, झारखंड जनतांत्रिक महासभा, झारखंड किसान परिषद, जोहार पश्चिम सिंहभूम चाईबासा, खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच पश्चिम सिंहभूम, मूलनिवासी संघ, PUCL राँची, समाजवादी जन परिषद, सर्वहारा जन संघर्ष मोर्चा, SC ST OBC ऐंड माइनॉरिटी एकता मंच पलामू, SUCI (कम्यूनिस्ट), WSS, और यूथ सेल TRTC ने राजभवन पर धरना दिया एवं पुलिसिया गुण्डई और मानवाधिकार उल्लंघन के मामले पर अपने विचार व्यक्त किए।

अवसर पर धरना का संचालन करते हुए अम्बिका यादव ने कहा कि रघुवर दास सरकार की जन-विरोधी नीतियों व गतिविधियों के विरुद्ध वर्तमान राज्य सरकार को स्पष्ट जनादेश मिला था। वर्तमान सरकार भाजपा सरकार से कई मामलों में बेहतर तो है, लेकिन अभी भी आदिवासी-मूलवासियों, खास कर के वंचितों, के विरुद्ध विभिन्न तरीकों से प्रशासनिक और पुलिसिया दमन हो रहा है। लगातार आदिवासी-मूलवासियों पर UAPA व राजद्रोह धाराओं के तहत व माओवाद के फ़र्ज़ी मामले दर्ज हो रहे हैं। पत्थलगड़ी आन्दोलन में पिछली सरकार द्वारा आदिवासियों पर लगाए गए मामलों की वापसी वर्तमान राज्य सरकार द्वारा घोषणा के दो साल बाद भी नहीं हुई है। अनेक गावों में पत्थर का अवैध खनन चल रहा है एवं शिकायत के बावज़ूद प्रशासन द्वारा कार्यवाई नहीं की जा रही है।

कई लोगों ने पलामू ज़िले के पांडु प्रखंड में धजवा पहाड़ में हो रहे अवैध खनन पर बात रखी। धजवा पहाड़ बचाओं संघर्ष समिति के अरविंद पाल ने कहा कि धजवा पहाड़ का अवैध खनन करके उसे अस्तित्वहीन बनाने के लिए पत्थर माफिया व प्रशासनिक गठजोड़ के विरुद्ध पलामू में ग्रामीणों द्वारा 87 दिनों से धरना दे रहे हैं। परन्तु धरने पर बैठे लोगों की बात कोई नहीं सुन रहा है। जब तक इस खनन के लिए बनी फ़र्ज़ी लीज़ ख़ारिज नहीं होती है, तब तक लोग आंदोलन करते रहेंगे। सर्वहारा जन संघर्ष मोर्चा की पुष्पा भोगता ने कहा कि हमारे प्राकृतिक संसाधन ख़तरे में हैं। इन संसाधनों को अवैध रूप से बेचा जा रहा है। समाजवादी जन परिषद के भारत भूषण चौधरी ने कहा कि धजवा पहाड़ का मसला राज्य सरकार की परीक्षा है कि सरकार प्राकृतिक संसाधन की खुली छुट को रोकती है या नहीं और दोषी कंपनी व पदाधिकारियों पर कार्यवाई करती है या नहीं। धरने में अनेक लोगों ने अपने क्षेत्र के मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों को साझा किया।

अवसर पर गोमिया (बोकारो) के सुनील माँझी ने बताया कि उनके पिता संजय माँझी के विरुद्ध एक पूर्व के माओवादी घटना के फ़र्ज़ी आरोप पर कुर्की जब्ती का नोटिस निर्गत हुआ जबकि न वे फ़रार थे और न ही उनका माओवादी पार्टी या 2014 की घटना से कोई सम्बन्ध है। वहाँ ऐसे अनेक मामले हैं।

लातेहार के लाल मोहन खेरवार ने बताया कि 12 जून 2021 को पिरी गाँव (गारू) के निर्दोष 24 वर्षीय आदिवासी ब्रम्हदेव सिंह की सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग में गोली लगने से मृत्यु हो गयी थी। आज तक न दोषी सुरक्षा बलों पर प्राथमिकी दर्ज हुई, न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और न दोषियों पर कार्यवाई हुई।

पश्चिमी सिंहभूम से आए नारायण कांडेयांग और अजीत कांडेयांग ने कोल्हान में मानवअधिकार उल्लंघनों के कई मामलों को रखा। 15 जून 2020 को CRPF के जवानों ने नक्सल सर्च अभियान के दौरान चिरियाबेड़ा ग्राम (अंजेडबेड़ा राजस्व गाँव, खूंटपानी प्रखंड, पश्चिमी सिंहभूम) के आदिवासियों को डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों से बेरहमी से पीटा गया। आज तक न दोषी CRPF के विरुद्ध कार्यवाई हुई और न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला। हाल में 23 जनवरी 2022 को पुलिस द्वारा चाईबासा शहर में निर्दोष ग्रामीणों के विरुद्ध हिंसा की गयी।

आदिवासी विमेंस नेटवर्एक की एलीना होरो ने कहा कि अभी भी झारखंड की कई महिलाओं को बंधुआ मज़दूरी करनी पड़ती है और उनके साथ यौन शोषण भी होता है। अक्टूबर 2019 में दुमका की दो आदिवासी महिलाओं का बेगलुरु के कारखाने में शोषण हुआ था।लेकिन मामले में दो साल बाद चार्जशीट दायर हुई और अभी तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।

गाँव गणराज्य के कुमार चंद मार्डी ने कहा कि झारखंड में लगातार किसी ना किसी मुद्दे पर संघर्ष हो रहा है। पूर्वी सिंहभूम के नाचोसाई में अवैध खनन के विरुद्ध लोग संघर्षरत हैं। राज्य सरकार ने अभी तक पेसा कानून की नियमावली नहीं बनायीं है, जिसके कारण इस कानून को लागू नहीं किया जा रहा। इसलिए आज राज्यपाल के समक्ष हम इन मांगों को दोहराने आए हैं।

हूल झारखंड क्रांति के बिरसा हेम्ब्रम ने कहा कि राज्य सरकार अभी तक वन अधिकार कानून को सही से लागू नहीं कर रही है और जंगल में बसे लोगों पर दमन जारी है।

प्रफुल लिंडा ने कहा कि दुःख की बात है कि पूर्व की सरकार की तरह अभी भी राज्य में UAPA के मामले दर्ज किए जा रहे हैं और निर्दोष ग्रामीण ऐसे मामलों से जूझ रहे हैं।

PUCL के किसलय ने कहा कि अगर वर्दी पहने वाले पुलिस और सुरक्षा बल के लोग लोगों का मानवाधिकार उल्लंघन करते हैं, तो ये बहुत चिंताजनक है।

भाषा आंदोलन में सक्रिय दीपक रंजीत ने कहा कि लोगों ने रघुवर सरकार को 2019 में सत्ता से तो हटाया, पर झामुमो के नेतृत्त्व में बनी आदिवासी सरकार में भी भाषा आन्दोलन में झारखंडी भावना को भी सरकार नहीं समझ रही है।

AIPF के नदीम खान ने कहा वर्तमान सरकार के कार्यकाल में भी भीड़ द्वारा हिंसा के मामले हुए हैं। इस सरकार को याद दिलाने की ज़रूरत है कि पिछले सरकार के ऐसे जन विरोधी रवैये के कारण ही उसे बाहर किया गया था।

धरने का समापन करते हुए मंथन ने कहा कि झारखंड जनाधिकार महासभा नियमित रूप से राज्य सरकार को उसके अपूर्ण वादों के बारे में याद दिला रही है। उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड में राज्यपाल राज्य सरकार के काम की निगरानी नहीं कर रही, जो उनकी ज़िम्मेदारी है।

धरने के अंत में राज्यपाल के नाम संलग्न मांग-पत्र एवं मानवाधिकार उल्लंघनों के कुछ मामलों की सूची दी गई। जिसमें निम्न मांगें शामिल हैं -

  1. • अनुलग्नक 1 में संलग्न सूचि के सभी मामलों में उचित कार्यवाई कर पीड़ितों को न्याय और मुआवज़ा एवं दोषी पुलिस व सुरक्षाबलों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई सुनिश्चित की जाए। नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए। लोगों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामला दर्ज करना पूर्णत: बंद हो
  2. • सभी पत्थलगड़ी मामलों की अविलम्ब वापसी की जाए।
  3. • गोमिया प्रखंड (बोकारो) में माओवाद के फ़र्ज़ी आरोपों पर फंसाए गए आदिवासी-मूलवासियों के मामलों के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक जांच का गठन हो।
  4. • विद्यालयों से पुलिस कैंप को हटाये जाएं और कहीं भी कैंप स्थापित करने से पहले ग्राम सभा व पंचायत से सहमति ली जाए।
  5. • राज्य में UAPA व राजद्रोह धारा के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक लगे। सरकार इन कानूनों को निरस्त करने की ओर कार्यवाई करे।
  6. • धजवा पहाड़ (पांडू, पलामू) में हो रहा अवैध खनन बंद हो, कंपनी, लीज़धारक व दोषी पदाधिकारी के विरुद्ध कानूनी कार्यवाई हो, ग्रामीणों के विरुद्ध दर्ज मामले को निरस्त किया जाए एवं उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा मिले।
  7. • निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को पुनर्जीवित किया जाए और इस आयोग की कार्यप्रणाली जनता के लिए सुलभ हो। महिलाओं के लिए एक सिंगल विन्डो शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए, जिससे महिलाएँ किसी भी प्रकार के शोषण की स्थिति में न्यूनतम दस्तावेजों के साथ शिकायत दर्ज कर सकें।
  8. • पांचवी अनुसूची प्रावधानों व पेसा को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। वनाधिकार कानून को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के थानों, सुरक्षा बलों व स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर प्राथमिकता स्थानीय, मुख्यतः आदिवासियों, को दी जाए। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए।
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