Kashmir Target Killing : आतंकियों के निशाने पर कश्मीरी पंडित, 5 सालों में गई 34 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की जान
पिछले कई सालों से खौफ में जी रहे कश्मीरी पंडित, आए दिन होते हैं आतंकियों के शिकार
Kashmir Target Killing : 19 जनवरी 1990 की घटनाएँ विशेष रूप से शातिराना थीं। उस दिन, मस्जिदों ने घोषणाएँ कीं कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं और पुरुषों को या तो कश्मीर छोड़ना होगा, इस्लाम में परिवर्तित होना होगा या उन्हें मार दिया जाएगा। जिन लोगों ने इनमें से पहले विकल्प को चुना, उन्हें कहा गया कि वे अपनी महिलाओं को पीछे छोड़ जाए। कश्मीरी मुसलमानों को पंडित घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया ताकि धर्मांतरण या हत्या के लिए उनको विधिवत निशाना बनाया जा सके। कई लेखकों के अनुसार, 1990 के दशक के दौरान 140,000 की कुल कश्मीरी पंडित आबादी में से लगभग 100,000 ने घाटी छोड़ दी।
कश्मीरी पंडितों पर होते हैं आतंकी हमले
कश्मीर के कश्मीरी पंडित आए दिन आतंकियों के निशाने पर आते रहते हैं। कश्मीरी पंडितों की हालत की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अभी हाल ही में एक फिल्म भी बनाई गई है। एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा दायर किए गए सूचना के अधिकार आवेदन के जवाब में पता चला कि हिंसा या हिंसा की धमकियों की वजह से कश्मीर घाटी छोड़कर विस्थापित हुए 1.54 लाख लोगों में से 88 फीसदी हिंदू थे।
हजारों कश्मीरी पंडितों ने किया पलायन
1990 के दशक में हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडित घाटी में अपना घर-बार छोड़कर पड़ोसी राज्यों में जा बसे थे। साल 1990 में घाटी में चरमपंथ बढ़ने के बाद केवल 800 कश्मीरी पंडितों के परिवार ही ऐसे थे, जिन्होंने यहां से न जाने का फैसला लिया था। कश्मीरी पंडितों को घाटी वापस लाने के लिए भारत सरकार ने साल 2009 में नौकरी देने की पेशकश की थी। इसमें उनके लिए सुरक्षित रिहाइश का भी प्रावधान किया गया था। उसके बाद से लगभग 5000 कश्मीरी पंडित वापस लौटे और उन्हें सरकारी नौकरियों में लाया गया। ज्यादातर लोगों को शिक्षा विभाग में काम मिला।
कश्मीरी पंडित आतंकियों के निशाने पर
14 फरवरी, 2019 को भारतीय सुरक्षाबलों पर एक बम हमला हुआ जिसमें 40 सैनिकों की मौत हो गई थी। इसके बाद से भारत और पाकिस्तान के संबंध बिगड़ने लगे। इस घटना को हफ्ता भी नहीं बीता था कि भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी क्षेत्र में हवाई हमले कर दिए। 2021 में कश्मीरी पंडितों को आतंकियों द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद से कथित तौर पर कई कश्मीरी पंडितों के घाटी छोड़कर जम्मू चले जाने के दावे किए जा रहे थे। कश्मीर में सरकारी ड्यूटी पर तैनात कुछ कश्मीरी पंडितों ने सरकार पर उन्हें घाटी में ही तैनात रहने के लिए मजबूर करने के भी आरोप लगाए थे। इसी तरह से प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठे थे। बुधवार को सरकार ने संसद को बताया, 'आतंकवाद के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति है और जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। हमलों में 2018 में 417 से 2021 में 229 तक की पर्याप्त गिरावट आई है।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद की स्तिथियां
5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 वापस लेने का ऐतिहासिक फैसला भाजपा सरकार ने लिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग किया गया और दोनों को दो केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। दावा था कि इससे जम्मू-कश्मीर में शांति, स्थिरता और विकास के नए रास्ते खुलेंगे। हालांकि इसके बाद जिस तरह कई दिनों तक जम्मू-कश्मीर में मीडिया पर, इंटरनेट पर, विरोधी दलों के नेताओं की आवाजाही पर पाबंदियां लगी रहीं, उससे समझ आ गया कि सरकार खुद अपने दावों को लेकर आश्वस्त नहीं है। कश्मीर में जनजीवन सामान्य नहीं रह गया है और अब आतंकवाद के जोर पकड़ने से एक बार फिर आम लोगों के सामने सुरक्षा का सवाल खड़ा हो गया है।
5 सालों में गई 34 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की जान
पिछले 5 सालों में घाटी में आतंकी घटनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय के 34 लोगों की जान गई। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि 5 अगस्त 2019 से इस साल मार्च तक जम्मू कश्मीर में आतंकियों द्वारा 4 कश्मीरी पंडित और 10 अन्य हिंदू मारे गए हैं। इन दिनों कश्मीर घाटी में एक बार फिर दूसरे राज्यों से आए मजदूरों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आतंकी निशाना बनाया है। सोमवार को एक कश्मीरी पंडित बाल कृष्ण पर आतंकियों ने हमला कर दिया, वहीं 24 घंटों के अंदर ही पंजाब और बिहार से आए 4 मजदूरों को भी आतंकियों ने गोली मारकर जख्मी कर दिया।