बिना परमिशन बाजार में बिक रही 44 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवायें, भारत में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस का बढ़ रहा है खतरा
Lancet Study : भारत में AMR का बढ़ा खतरा, बिना परमिशन 44% antibiotics का हो रहा है सेवन
Lancet Study : कोविड-19 महामारी से पहले और कोरोना के दौरान भारत में एजिथ्रोमाइसिन सहित कई एंटीबायोटिक मेडिसिन ( Antibiotic medicines ) का इस्तेमाल लोगों ने बिना इजाजत और जरूरत से ज्यादा मात्रा में की। अब इसका दुष्परिणाम भी सामने आने लगा है। लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ ईस्ट एशिया में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक लाखों लोगों पर अब एंटीबायोटिक ने असर करना बंद कर दिया है। यानि ऐसे लोगों को एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस ( AMR ) के शिकार हो चुके हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में दैनिक स्तर पर 44 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल गैर कानूनी तरीके से बिना परमिशन के होता है।
भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता
भारत सबसे बड़ा एंटीबायोटिक उपभोक्ता है लेकिन यहां पर अमेरिका और यूरोप में पाए जाने वाले एंटीमाइक्रोबायल स्टीवर्डशिप प्रोग्राम संचालित करने के लिए एंटीबायोटिक उपयोग निगरानी की औपचारिक प्रणाली नहीं है। इस बात का खुलासा उस समय हुआ जब एंटीबायोटिक खपत की जांच करने वाले 65 देशों की नवीनतम वैश्विक निगरानी रिपोर्ट में भारत का डेटा शोधकर्ताओं को नहीं मिला। दरअसल, कई देशों की तरह भारत की दवा की बिक्री और खपत के आंकड़े मुख्य रूप से निजी वाणिज्यिक संस्थाओं द्वारा एकत्र किए जाते हैं।
CDSCO से एप्रूव्ड हैं केवल 46% एंटीबायटिक
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बिकने वाले एंटीबायोटिक दवाओं ( Antibiotic medicines ) के 1098 अद्वितीय फॉर्मूलेशन और 10,100 अद्वितीय उत्पाद ब्रांडद् हैं। इनमें से केवल 46 प्रतिशत ब्रांड यानि 19 प्रतिशत फॉर्मूलेशन केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण ( CDSCO ) द्वारा अप्रूव्ड हैं। साफ है कि मेडिसिन इंडस्ट्री और अस्पतालों के संचालक सीडीएससीओ की मंजूरी के बिना बड़े पैमाने पर एंटीबायटिक का इस्तेमाल करता है और भारत सरकार को इसकी जानकारी तक नहीं है। हालांकि, अधिकांश राज्यों में एसडीआरए की सीमित तकनीकी क्षमता है लेकिन यह प्रभावी नहीं है।
प्रतिबंधित एंटीबायोटिक का खतरनाक स्तर पर हो रहा इस्तेमाल
2007-12 के दौरान भारतीय दवा बाजार के विश्लेषण से पता चला है कि सीडीएससीओ द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं ( Antibiotic medicines ) का एक बड़ा हिस्सा अस्वीकृत है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 90 प्रतिशत से अधिक मैक्रोलाइड, 61 प्रतिशत सेफलोस्पोरिन केंद्रीय एजेंसी की मंजूरी के बिना बाजार में बेचे जाते हैं। इन उत्पादों को राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा अनुमति दी जाती है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि भारत में औषधीय रूप से असंगत संयोजनों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। 2015 में राष्ट्रीय सरकार ने 16 एंटीबायोटिक्स एफडीसी पर प्रतिबंध लगा दिए थे जो कुल एंटीबायोटिक एफडीसी बिक्री का 14 प्रतिशत हिस्सा था।
2019 में 12 लाख लोगों की हुई AMR से मौत
मेडिकल जर्नल द लैंसेट जर्नल में एंटीबायोटिक दवाओं ( Antibiotic medicines ) के असर को अब तक से सबसे बड़े अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में दुनियाभर में 50 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। इनमें से 12 लाख से अधिक लोगों को मौत बैक्टीरिया से हुए संक्रमण के कारण हुई। इस लोगों पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हुआ। हैरानी की बात है कि एंटीबायोटिक के बेअसर होने से हुई मौतों का ये आंकड़ा हर साल मलेरिया और एड्स से मरने वालों की संख्या से ज्यादा है। मेडिकल टर्म में दवाओं के बेअसर होने की स्थिति को एंटी माइक्रोबियल रेसिस्टेंस यानि एएमआर ( AMR ) कहते हैं। ताज्जुब की बात यह है कि दुनिया के गरीब देशों में इसका असर ज्यादा है।
बता दें कि एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव पर अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने अध्ययन किया, जिसमें दवाओं के बेअसर होने से मौतों का अनुमान लगाया गया। ये रिपोर्ट 204 देशों में किए गए विश्लेषण पर आधारित है।