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Pegasus Scandal India Explained: 'साबित हो गया! चौकीदार ही जासूस है', कांग्रेस हमलावर, जानिए Pegasus विवाद के बारे में सब कुछ

Janjwar Desk
29 Jan 2022 12:51 PM GMT
Pegasus Scandal India Explained: साबित हो गया! चौकीदार ही जासूस है, कांग्रेस हमलावर, जानिए Pegasus विवाद के बारे में सब कुछ
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अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने विधानसभा चुनाव के बीच पेगासस जासूसी बम फोड़कर भाजपा की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। 

Pegasus Scandal India Explained: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का मत है कि नागरिकों को निजता के उल्लघंन से सुरक्षा प्रदान करना जरूरी है। सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय 'मूक दर्शक' बना नहीं रह सकता।

Pegasus Scandal India Explained: देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर जारी जोड़तोड़ के बीच अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने पेगासस जासूसी बम ( Pegasus Spy Bomb ) फोड़ दिया है। अमेरिकी अखबार The New York Times ने अपनी रिपोर्ट के जरिए मोदी सरकार ( Modi Government ) को न केवल सच से रूबरू कराने की कोशिश की है बल्कि कटघरे में भी खड़ा कर दिया है। इस खुलासे से विरोधी दलों ( Opposition Parties ) को मोदी-योगी को बेनकाब करने का अच्छा मौका भी मिल गया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ( Congress ) ने तो इसे लपकते हुए आरोप लगाया है कि पेगासस स्पायवेयर ( Pegasus Spyware ) के जरिए मोदी सरकार ने भारतीय लोकतंत्र को हाईजैक कर लिया है। सपा, आप, बसपा व अन्य दल भी इसे चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दा बना सकते हैं। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में ऐसा होना भी चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो 'जनता की अदालत' में मोदी सरकार को जवाब देना पड़ेगा, नहीं तो मतदाता उन्हें सबक सिखाने का काम करेंगे।

सरकार ने झूठ बोलकर किया देशद्रोह का अपराध

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आज कांग्रेस ने मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है। कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि मोदी सरकार ने हमारे लोकतंत्र की प्राथमिक संस्थाओं, राज नेताओं व जनता की जासूसी करने के लिए पेगासस खरीदा था। फोन टैप करके सत्ता पक्ष, विपक्ष, सेना, न्यायपालिका सब को निशाना बनाया है। ये देशद्रोह है। वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कें पेगासस स्पायवेयर के मुद्दे पर सरकार ने संसद में झूठ बोला। इससे साबित होता है कि चौकीदार ही चोर है।

आइए, हम इस मुद्दे पर सियासी उठापटक से खुद को दूर रखते हुए जानें की आखिर पेगासस जासूसी विवाद है क्या, क्यों यह मोदी सरकार के लिए राहु-केतु की तरह है, जो मौका मिलते ही ग्रास करने पर उतारू हो जाता है। यह विवाद कहां से चला और भारत में इसको लेकर स्थिति क्या है?

द न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस बात का किया खुलासा

इससे पहले पेगासस ( Pegasus Spyware ) मामले की गहराई में जाएं, यह जानना जरूरी है कि अमेरिकी अखबार ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट में खुलासा क्या किया है। दरअसल, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत सरकार ने 2017 में इस्राइल का जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस स्पायवेयर खरीदा था। मोदी सरकार ने पांच साल पहले दो अरब डॉलर ( करीब 15 हजार करोड़ रुपए ) का जो रक्षा सौदा इस्राइल से किया था, उसमें पेगासस स्पायवेयर की खरीद भी शामिल थी। इस रक्षा डील में भारत ने कुछ हथियारों के साथ एक मिसाइल सिस्टम भी खरीदा था।

पेगासस स्पायवेयर क्या है?

पेगासस एक स्पायवेयर है जिसे इसराइली साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ग्रुप टेक्नॉलॉजीज ने बनाया है। ये एक ऐसा प्रोग्राम है जिसे अगर किसी स्मार्टफोन फोन में डाल दिया जाए, तो कोई हैकर उस स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, ऑडियो और टेक्सट मेसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल कर सकता है। साइबर सुरक्षा कंपनी कैस्परस्काई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेगासस आपको एन्क्रिप्टेड ऑडियो सुनने और एन्क्रिप्टेड संदेशों को पढ़ने लायक बना देता है। एन्क्रिप्टेड ऐसे संदेश होते हैं जिसकी जानकारी सिर्फ मेसेज भेजने वाले और रिसीव करने वाले को होती है। जिस कंपनी के प्लेटफॉर्म पर मेसेज भेजा जा रहा, वो भी उसे देख या सुन नहीं सकती.पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल से हैक करने वाले को उस व्यक्ति के फोन से जुड़ी सारी जानकारियां मिल सकती हैं।

ये है पेगासस स्पायवेयर का इतिहास

पेगासस स्पायवेयर से जुड़ी जानकारी पहली बार 2016 में संयुक्त अरब अमीरात के मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर की वजह से दुनिया को मिली। उन्हें कई एसएमएस प्राप्त हुए थे, जो उनके मुताबिक संदिग्ध थे। उन्होंने अपने फोन को टोरंटो विश्वविद्यालय के 'सिटीजन लैब' के जानकारों को दिखाया। एक अन्य साइबर सुरक्षा फर्म 'लुकआउट' से मदद ली। मंसूर की आशंका बेवजह नहीं थी। अगर उन्होंने लिंक पर क्लिक किया होता, तो उनका आइफोन मैलवेयर से संक्रमित हो जाता। इसी मैलवेयर को पेगासस का नाम दिया गया।

इसके बाद साल 2017 में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मेक्सिको की सरकार जानेमाने पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी सरकार पर मोबाइल फोन से जासूसी करने का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ मामला दर्ज कराया था। मई 2020 में आई एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि एनएसओ ग्रुप ने यूजर्स के फोन में हैकिंग सॉफ्टवेयर डालने के लिए फेसबुक की तरह दिखने वाली वेबसाइट का प्रयोग किया। एनएसओ ने इन आरोपों से इनकार करते हुए उन्हें "मनगढ़ंत" करार दिया था। 2019 में फेसबुक ने आरोप लगाया कि एनएसओ ने व्हाट्सएप पर अपने सॉफ्टवेयर को फैलाया ताकि लोगों के फोन की सिक्युरिटी से समझौता किया जाए। एनएसओ पर सऊदी सरकार को सॉफ्टवेयर देने का भी आरोप है, जिसका कथित तौर पर पत्रकार वहां की सरकार ने पत्रकार जमाल खशोग्जी की हत्या से पहले जासूसी करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। दिसंबर 2020 में साइबर सुरक्षा से जुड़े शोधकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कंपनी के बनाए गए स्पाइवेयर से अल जज़ीरा के दर्जनों पत्रकारों का फ़ोन कथित तौर पर हैक कर लिया गया था। अब तो यह मामला दुनिया के कई देशों तक फैल गया है। भारत में 18 जुलाई 2021 को यह मामला सामने आया और उसके बाद से इसको लेकर सियासी बवाल जारी है।

भारत में किस-किसकी हुई स्नूपिंग

इंडिया में द वायर द्वारा की गई जांच व अन्य रिपोर्ट में इस बात खुलासा हुआ कि जिनके खिलाफ जासूसी होने की संभावना थी उसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी,राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, द इंडियन एक्सप्रेस के दो वर्तमान संपादकों और एक पूर्व संपादक सहित लगभग 40 अन्य पत्रकारों के नाम भी शामिल थे। एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने रविवार को बताया कि भारत में दो मौजूदा मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, तीन विपक्षी नेताओं और एक मौजूदा न्यायाधीश सहित 300 से अधिक सत्यापित मोबाइल फोन नंबरों को स्पाइवेयर के माध्यम से हैकिंग के लिए कथित रूप से निशाना बनाया गया।

विपक्ष ने माना आपराधिक कृत्य, जांच की मांग

भारत में विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर इस्राइली स्पाइवेयर पेगासस का उपयोग करते हुए देश के प्रमुख हस्तियों की कथित फोन टैपिंग को लेकर सरकार पर निशाना साधा और एक स्वतंत्र न्यायिक जांच या संसदीय समिति की जांच की मांग की। विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के इस काम को निजता के अधिकार पर हमला, लोकतंत्र का अपमान, स्वतंत्रता का हनन, राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय, भारत के विचार ( आइडिया ऑफ इंडिया ) पर हमला, देश की राजनीति पर नियंत्रित करने वाला, ब्लैकमेल करने, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नहीं चलने देने के साथ इसे आपराधिक कृत्य करार दिया है।

मोदी सरकार की चुप्पी का मतलब, हलफनामा देने से क्यों किया इनकार?

इजरायली कंपनी का कहना है कि एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचता है। भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही स्वीकार किया है। सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस स्पाइवेयर के जरिए भारतीयों की जासूसी के मुद्दे पर लोकसभा में स्वत: आधार पर दिए ए अपने बयान में कहा था कि जब देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है तब अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए विस्तृत हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने से इनकार किया।

ये है सुप्रीम कोर्ट का स्टैंड

सुप्रीम कोर्ट ने इजरायली स्पायवेयर पेगासस मामला तूल पकड़ने और अदालत के समक्ष याचिका दायर होने के बाद 10 अक्टूबर, 2021 को मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकों की निजता के उल्लघंन से सुरक्षा प्रदान करना जरूरी है। सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय 'मूक दर्शक' बना नहीं रह सकता। हमारा प्रयास 'राजनीतिक बयानबाजी' में शामिल हुए बिना संवैधानिक आकांक्षाओं और कानून के शासन को बनाए रखना है, लेकिन उसने साथ ही कहा कि इस मामले में दायर याचिकाएं 'ऑरवेलियन चिंता' पैदा करती हैं.

अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम का दावा

18 जुलाई 2021 : अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम जिसमें द वायर भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिए नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की या फिर वे संभावित निशाने पर थे। इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिए निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे।

किस-किसने दायर की याचिका

पेगासस मामले में भारत सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने के पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, वरिष्ठ पत्रकार एन राम, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी एवं गैर सरकारी संगठन कॉमन काज, पत्रकार शशि कुमार, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, पेगासस स्पायवेयर के पीड़ित पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम अब्दी और स्पायवेयर के संभावित लक्ष्य पत्रकार प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और कार्यकर्ता इप्सा शताक्षी ने याचिका दायर कर इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी।

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