Monsoon 2022 : एक तरफ सूखा तो दूसरी तरफ बाढ़ से त्राहिमाम, पर ऐसा क्यों होता है?
Monsoon 2022 : एक ओर देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश ( Heavy rain ) की वजह से हालात बेकाबू हो गए हैं तो दूसरी तरफ कुछ राज्य सूखे ( Drought ) के कारण भयानक जल संकट से जूझ रहा है। ऐसा दक्षिण-पश्चिम मानसून की सक्रियता की वजह से हो रहा है। असम, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, मुंबई सहित महाराष्ट्र के कई जिलों में बाढ़ ( floods ) के हालात पैदा हो गए हैं। दूसरी तरफ दिल्ली, वेस्ट यूपी, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा सहित अन्य क्षेत्रों में सूखे की मार किसान झेलने को मजबूर हैं। वहीं भीषण गर्मी और भारी उमस ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है।
मौसम विभाग ने गोवा, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि में तेज या भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। कर्नाटक में रेल अलर्ट तो केरल में येलो अलर्ट जारी किया है। वहीं दिल्ली, हिमाचल, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और चंड़ीगढ़ सहित वेस्ट यूपी के कई हिस्सों में भारी बारिश की संभावना भी जताई है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने आजकल में तेलंगाना, उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश, दक्षिण छत्तीसगढ़, दक्षिण ओडिशा, दक्षिण मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों, विदर्भ, मराठवाड़ा, कोंकण और गोवा, दक्षिण गुजरात और तटीय कर्नाटक में हल्की से मध्यम बारिश के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, केरल और उत्तर प्रदेश की तलहटी में हल्की से मध्यम बारिश के आसार हैं। सिक्किम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, असम, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश होने के आसार हैं। पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश और दिल्ली और उत्तरी राजस्थान में एक-दो स्थानों पर बारिश की संभावना बनी रहेगी। शेष पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों में हल्की बारिश का पूर्वानुमान है।
गोवा महाराष्ट्र में लोगों को सतर्क रहने के निर्देश
गोवा सरकार ने तीन तालुकों में चापोरा नदी के किनारे रहने वाले लोगों को सतर्क रहने का निर्देश दिया है। उत्तरी गोवा के जिला मजिस्ट्रेट ने पेरनेम, बिचोलिम और बर्देज़ तालुका में नदी के किनारे रहने वाले लोगों के लिए अलर्ट जारी किया है क्योंकि टिल्लारी जलाशय से पानी छोड़ा जा रहा है। गोवा राज्य जल संसाधन विभाग के अधिकारी और महाराष्ट्र के अधिकारी चौबीसों घंटे टिल्लारी जलाशय की स्थिति की निगरानी कर रहे हैं। टिल्लारी जलाशय उत्तरी गोवा जिले में गोवा-महाराष्ट्र सीमा पर स्थित है।
दक्षिण गुजरात में जलभराव से जन जीवन अस्त-व्यस्त
दक्षिण गुजरात में शुक्रवार को भारी बारिश का सिलसिला जारी है। अहमदाबाद के कई हिस्से जलमग्न हो गए। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने कहा गया है कि जामनगर, देवभूमि द्वारका और जूनागढ़ जिलों के कुछ हिस्सों में भी भारी बारिश की वजह से जलभराव हो गया और कुछ अंडरपास यातायात के लिए बंद हो गए। आईएमडी ने कहा कि दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र के कुछ स्थानों पर अगले चार दिनों में भारी से बहुत भारी बारिश होने की संभावना है। बताया गया है 11-12 जुलाई को दक्षिण गुजरात के सूरत, नवसारी, वलसाड, दमन, दादरा और नगर हवेली में कुछ स्थानों पर और जूनागढ़ जिले के कुछ हिस्सों में अत्यधिक भारी वर्षा हो सकती है।
कर्नाटक में रेड अलर्ट
कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा कि एक जून से अब तक बारिश से जुड़ी विभिन्न घटनाओं में कुल 12 लोगों की मौत हुई है क्योंकि राज्य के कई हिस्सों में मूसलाधार बारिश जारी है। मुख्यमंत्री ने बारिश से प्रभावित 13 जिलों के जिला प्रभारी मंत्रियों और डिप्टी कमिश्नरों की बैठक में सीएम ने कहा कि राज्य भर में विभिन्न स्थानों पर अगले तीन से चार दिनों तक बारिश जारी रहेगी, क्योंकि उन्होंने अधिकारियों को निर्देश भी दिए हैं। पिछले कुछ दिनों से राज्य के तटीय, मलनाड और आंतरिक क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश हो रही है, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ है। 13 जिलों में भारी बारिश और बाढ़ जैसे हालात हैं।
महाराष्ट्र में 1 जून से महाराष्ट्र में बारिश ने 67 लोगों की जान ले ली है। एनडीआरएफ की 13 टीमों को तटीय महाराष्ट्र में तैनात किया गया है, जबकि कुछ टीमें पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा और कोल्हापुर जिलों में तैनात हैं, जहां हाल के मानसून में बड़ी बाढ़ आई थी। इसके अलावा भारी बारिश के कारण असम, मेघालय, मिजोरम, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ गई है।
भारत सहित दक्षिण एशिया पर मंडरा रहा खतरा
साइंस एडवांसेज में तीन साल पहले प्रकाशित एक शोध के मुताबिक आने वाले दिनों में दक्षिण एशिया के कृषि क्षेत्र भीषण गर्मी की चपेट में ज्यादा आएंगे। इसका सबसे ज्यादा असर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कृषि क्षेत्रों पर पड़ेगा। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की डाटा के अनुसार हर साल हीटवेव (लू) की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। 19वीं सदी के बाद से पृथ्वी की सतह का तापमान तीन से छह डिग्री तक बढ़ गया है। हर 10 साल में तापमान में कुछ न कुछ वृद्धि हो ही जाती है। ये तापमान में वृद्धि के आंकड़े मामूली लग सकते हैं, लेकिन इनके पीछे प्रलय छिपी हुई है।
जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है और उस बदलाव के साथ धरती पर मौजूद सभी जीव (चाहे वो इंसान ही क्यों न हों), जल्द ही सामंजस्य भी बैठा लेते हैं। लेकिन पिछले 150-200 सालों की अगर बात की जाए तो ये जलवायु परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है कि इंसानों से लेकर पूरा वनस्पति जगत इस बदलाव के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है।
लेंसेट (मेडिकल जर्नल) की रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में हुई क्षति का 99 फीसदी तो भारत जैसे निम्न आय वाले देशों में हुआ है। इस क्षति का आकलन गर्मी बढ़ने के कारण पैदा होने वाली परिस्थितियों, तबाही की घटनाओं, इसके चलते स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों, बीमारियों आदि को ध्यान में रखते हुए किया गया है। रिपोर्ट में पिछले दो दशकों से भी कम समय में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव तेजी से सामने आए हैं।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सबसे ज्यादा मौसम पर पड़ता है। बाढ़ या सूखे का खतरा पैदा हो जाता है। इसके अलावा ध्रुवीय ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में भी वृद्धि हो जाती है। पिछले कुछ सालों में आए तूफानों और बवंडरों ने अप्रत्यक्ष रूप से इसके संकेत भी दे दिए हैं। 2018 में जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2016, 2017 और 2018 सबसे गर्म वर्षों की सूची में शीर्ष पर हैं। ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में हाल ही में आए चक्रवात की वजह भी जलवायु परिवर्तन ही है। इस दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में 13 दबाव के क्षेत्र बने, जिसने पिछले 26 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव चक्रवाती गतिविधियों के बढ़ने में ही नहीं बल्कि तापमान में वृद्धि और वर्षा में कमी के रूप में भी दिख रहा है। माना जा रहा है कि इस सदी के अंत तक तमिलनाडु का तापमान 3.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, जबकि वर्षा में औसतन 4 फीसदी की कमी आएगी।
ये हैं जलवायु परिवर्तन के बड़े कारण
पहाड़ों और घाटियों में निर्मित और निर्माणाधीन बड़े बांध, नदियों के जलस्तर में बदलाव, अंधाधुंध खनन, जंगलों की आग, सूखा, बाढ़, बेहिसाब औद्योगिकीकरण, शहरी क्षेत्रों में लगातार चल रहा निर्माण, कम होती खेती की जमीनें, सड़कों पर बढ़ती वाहनों की भीड़ और बढ़ती जनसंख्या मौसम में बदलाव के अहम कारक हैं।