एक साल में 50 फीसदी बढ़े खाद्य तेलों के दाम, आम नागरिक हुए हलकान
(देश में रिटेल में खाद्य तेल के मासिक औसत दाम जनवरी 2010 से अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं)
जनज्वार डेस्क। कोरोना वायरस महामारी के चलते लगाई गई पाबंदियों की वजह से कई लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। काम बंद होने से वह अपने गांव की ओर लौट गए। वहीं लॉकडान के बीच बढ़ती महंगाई लोगों की कमर तोड़ रही है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस महीने खाद्य तेलों के दाम पिछले एक दशक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं। 24 मई को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने खाद्य तेलों की बढ़ती कीमत को लेकर इसमें शामिल सभी पक्षों से बैठक की बैठक में विभाग ने राज्य के साथ साथ व्यापारों से खाद्य तेलों के दाम में कमी लाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है।
दैनिक क्रिया में प्रयोग किए जाने से लेकर खाद्य तेल तक काफी महंगे हो गए हैं। तेल की बढ़ी कीमत ने भोजन का जायका बिगाड़ दिया है। इससे गृहणियां परेशान है। लोगों के लिए घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है। महंगाई के इस दौरान में बस किसी तरह से लोग जीवन-यापन करने में जुटे हुए हैं।
पड़ोसी देश चीन की वजह से देश की सीमा पर पहले ही तनातनी है। अब उसके कारण घर का बजट भी बिगड़ रहा है। चीन में खाद्य तेलों की खपत बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल आया है, जिसका सीधा असर भारत के घरेलू बाजार पर पड़ा है और आम आदमी का बजट बिगड़ गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपनी कुल खाद्य तेल की जरूरत का बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात करता है। चीन में बढ़ती खपत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आए उछाल से घरेलू बाजार में भी कीमत बढ़ी है।
भारतीय बाजारों में खाद्य तेलों की कीमतें 170-180 रुपये प्रति लीटर से 200 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई हैं। इससे किचन के साथ-साथ नाश्ते में इस्तेमाल होने वाली चीजों के दाम भी बढ़ गए हैं।
दी सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर आयल इंडस्ट्रीज एंड ट्रेड के अनुसार, अनुमानत: भारत में प्रति वर्ष लगभग 2.5 करोड़ लीटर खाद्य तेल की खपत होती है।
अपने घरेलू उत्पादन से भारत इसमें से केवल 90 लाख लीटर के आसपास की जरूरत पूरी कर पाता है। बाकी 1.40 या 1.50 करोड़ लीटर खाद्य तेल के लिए भारत अर्जेंटीना, कनाडा, मलयेशिया, ब्राजील और अन्य दक्षिणी अमेरिकी देशों पर निर्भर करता है।
भारत अपनी कुल खाद्य तेल की जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा विदेशों से आयात करता है, जिसके लिए भारत भारी कीमत चुका रहा है। वर्ष 1994-95 में भारत अपनी कुल जरूरत का केवल 10 फीसदी हिस्सा खाद्य तेल आयात करता था।
एक अनुमान के अनुसार, केवल खाद्य तेलों के आयात पर भारत प्रति वर्ष 75-80 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है जो भारत के कुल आयात का लगभग 2.5 फीसदी है।
दरअसल चीन की विशाल आबादी के खानपान में बदलाव आ रहा है। सामान्य तौर पर चीन के समाज में उबले भोजन की प्रमुखता थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय खानपान का चलन बढ़ने से वहां अब तले भोजन की खपत बढ़ रही है। ऐसे में अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार से तेल खरीद रहा है, जिसके कारण कीमतें बढ़ रही हैं। मालूम हो कि खानपान में बदलाव के कारण केवल चीन में ही नहीं, भारत में भी खाद्य तेलों की मांग नहीं बढ़ी है।
भारत अपनी कुल खपत का लगभग 30 फीसदी खाद्य तेल उत्पादित करता है। सरकार की योजना है कि अगर भारत के खाद्य तेल का उत्पादन वर्ष 2025-30 तक बढ़ाकर तीन गुना कर दिया जाए, तो देश को इस मामले में आत्मनिर्भर किया जा सकता है। इसके लिए सरकार खाद्य तेलों की खेती का रकबा बढ़ाने के साथ जीएम सीड्स का इस्तेमाल बढ़ाने पर भी विचार कर रही है।
स्टेट सिविल सप्लाईज डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार देश में रिटेल में खाद्य तेल के मासिक औसत दाम जनवरी 2010 से अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं। ये आंकडें उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय किन वेबसाइट पर मौजूद हैं। डाटा के अनुसार, मई के महीने में सरसों के तेल के औसत दाम 164.44 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए। जो कि पिछले साल में मई के महीने से 39 प्रतिशत अधिक है। मई 2020 में सरसों के तेल का औसत दाम 118.25 रुपये प्रति किलोग्राम था। भारत के सभी घरों में ज्यादातर खाना पकाने के लिए इस तेल का इस्तेमाल किया जाता है। मई 2010 में इसके दाम 63.05 रुपये प्रति किलोग्राम था।
पाम ऑयल का भी भारत के कई घरों में इस्तेमाल होता है। मई के महीने में इसके औसत दाम 131.69 रुपये प्रति किलोग्राम रहे जो कि पिछले साल के मुक़ाबले 49 प्रतिशत अधिक है। मई 2020 में पाम ऑयल के औसत दाम 88.27 रुपये प्रति किलोग्राम थे। वहीं अप्रैल 2010 में इसके दाम 49.13 रुपये प्रति किलोग्राम था। अन्य तेलों में इस महीने मूंगफली के तेल के औसत दाम 175.55 रुपये, वनस्पति के 128.7 रुपये, सोयाबीन तेल के 148.27 रुपये और सनफ़्लावर तेल के 169.54 रुपये प्रति किलोग्राम पहुंच गए हैं। पिछले साल के मुकाबले इन तेलों के औसत दाम में 19 से 52 प्रतिशत तक की बदोत्तरी दर्ज की गयी है।