राजस्थान में सियासी घमासान के बीच अत्यंत पिछड़ा वर्ग को न्यायिक सेवा में 5 प्रतिशत आरक्षण
जयपुर। राजस्थान में सियासी घमासान के बीच राज्य के अत्यंत पिछड़ा वर्ग को न्यायिक सेवा में 5 प्रतिशत आरक्षण देने का रास्ता साफ हो गया है। राजस्थान न्यायिक सेवा अधिनियम 2010 में संशोधन को कैबिनेट ने मंजूर कर लिया है। इसके साथ ही अब अत्यंत पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को न्यायिक सेवा में 1 क़ी जगह 5 फीसदी आरक्षण मिलेगा।
सचिन पायलट के बगावती रुख के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। चूंकि सचिन पायलट गुर्जर समाज के बड़े नेता माने जाते हैं और उनकी नाराजगी से गुर्जर समाज के ऊपर मुख्यमंत्री गहलोत को लेकर नकारात्मक क्षवि बन रही थी।
वैसे राजस्थान में गुर्जर आंदोलन काफी चर्चित रहा है। अति पिछड़ा वर्ग के लोग काफी समय से न्यायिक सेवा नियमों में संशोधन की मांग कर रहे थे, ताकि उन्हें राज्य न्यायिक सेवा में 5 प्रतिशत आरक्षण मिल सके। सियासी संकट से घिरी गहलोत सरकार ने अति पिछड़े समुदाय की इस मांग को अमलीजामा पहना दिया है। सरकार ने न्यायिक सेवा नियम, 2010 में संशोधन कर मास्टर स्ट्रोक चला है। अब गुर्जर, रायका-रैबारी, गाडिया-लुहार, बंजारा, गडरिया आदि अति पिछड़ा समाज के अभ्यर्थियों को राजस्थान न्यायिक सेवा में 5 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
राजस्थान में अब न्यायिक सेवा में कुल 55 प्रतिशत आरक्षण हो गया है। राज्य की सभी सरकारी सेवाओं में गुर्जर सहित पांच जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में पांच प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। अति पिछड़ा वर्ग की पांच जातियों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय को राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
प्रदेश में गुर्जर समाज के बड़े नेता माने जाने वाले सचिन पायलट द्वारा सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करने के बाद गुर्जरों में सरकार को लेकर नाराजगी बढ़ रही थी। ऐसे में माना जा रहा है कि गुर्जर समुदाय की नाराजगी को कम करने के लिए गहलोत ने यह निर्णय लिया है।
साल 2007 से 2009 तक हुए हिंसक गुर्जर आरक्षण आंदोलन में 68 लोगों की मौत हुई थी, सरकारी संपतियों का भी काफी नुकसान हुआ था। इसके बाद वसुंधरा सरकार ने गुर्जर समाज को अति पिछड़ा वर्ग में आरक्षण दिया था, जिस पर 2011 में हाईकोर्ट से रोक लग गई थी।
इसके बाद फिर आंदोलन शुरू हुआ। 2019 में अशोक गहलोत सरकार ने विधानसभा में विधेयक पारित करा कर गुर्जर सहित पांच जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में आरक्षण दिया। विधानसभा में एक संकल्प पारित करा कर केंद्र सरकार को भेजकर इसके संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवाने का आग्रह किया।