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Reservation in Promotion: प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, जानिए क्या है फैसला?

Janjwar Desk
28 Jan 2022 10:51 AM GMT
Reservation in Promotion: प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, जानिए क्या है फैसला?
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Reservation in Promotion: सरकारी नौकरियों (Government Jobs) में SC-ST को पदोन्नति (Promotions) में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि पिछले फैसलों में तय किए गए आरक्षण के पैमाने (Reservation Scale) हल्के नहीं होंगे.

Reservation in promotion: सरकारी नौकरियों (Government Jobs) में SC-ST को पदोन्नति (Promotions) में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि पिछले फैसलों में तय किए गए आरक्षण के पैमाने (Reservation Scale) हल्के नहीं होंगे. केंद्र और राज्य सरकार (Central & State Government) अपनी-अपनी सेवाओं में SC-ST के लिए आरक्षण के अनुपात में समुचित प्रतिनिधित्व को लेकर तय समय अवधि पर रिव्यू जरूर करें. प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता (inadequacy of representation) के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा (quantitative data) का संग्रह भी अनिवार्य है. इस मामले में अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी.

जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने ये बड़ा फैसला सुनाया. Supreme Court का कहना है कि हमने माना है कि हम प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते. राज्य SC- ST प्रतिनिधित्व के संबंध में मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए पूरी तरह बाध्य हैं. कोर्ट ने आगे कहा है कि एक निश्चित अवधि के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह काफी अनिवार्य है.

Supreme Court ने कहा कि ये समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा ही निर्धारित की जानी चाहिए . सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत इसके लिए कोई मापदंड तय नहीं कर सकती है और अपने पूर्व के फैसलों के मानकों में बदलाव नहीं कर सकती है. राज्य SC-ST के प्रतिनिधित्व के संबंध में मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है. कैडर आधारित रिक्तियों के आधार पर आरक्षण पर डेटा एकत्र किया जाना चाहिए. राज्यों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समीक्षा करनी चाहिए. केंद्र सरकार समीक्षा की अवधि निर्धारित करेगी. नागराज मामले में फैसले का संभावित प्रभाव होगा.

बता दें कि Supreme Court के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच में तमाम पक्षकारों की ओर से दलील पेश की गई. इस दौरान राज्य सरकारों की ओर से पक्ष रखा गया था जबकि केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने दलील पेश की. सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलील के बाद फैसला 26 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

क्या है नागराज मामला

2006 में आए नागराज से संबंधित वाद में अदालत ने कहा था कि पिछड़ेपन का डेटा इक्कट्ठा किया जाएगा. कोर्ट ने ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होगा. सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आदेश जारी किया था कि 'राज्य SC-ST के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने को बाध्य नहीं है. हालांकि, अगर कोई राज्य अपने विवेक से ऐसा कोई प्रावधान करना चाहता है तो उसे क्वांटिफिएबल डेटा जुटाना होगा ताकि पता चल सके कि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में उसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है.'

सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले

  • 1992 का इंदिरा साहनी मां मामला – क्रीमी लेयर को ओबीसी आरक्षण से दूर किया और आरक्षण में 50% की सीमा तय कर दी थी.
  • 2006 का एम नागराज मामला – प्रमोशन में रिजर्वेशन की सीमा को न्यायोचित ठहराने के लिए मात्रात्मक आंकड़ा जुटाने की शर्त अनिवार्य कर दी गई थी.
  • 2018 का जरनैल सिंह मामला – नागराज केस पर पुनर्विचार का आग्रह खारिज कर दिया गया था. क्रीमी लेयर के एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन का लाभ नहीं देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया था.
  • 2019 का पवित्र II जजमेंट – Supreme Court ने पदोन्नति में आरक्षण के लिए निर्धारित शर्तों को नरम कर दिया था.
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