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विमर्श

गरीबी से अधिक खतरनाक गरीबी का कलंक, क्या अपने फायदे के लिए 81 करोड़ लोगों को सरकार ने बनाया है गरीब !

Janjwar Desk
15 May 2024 11:33 PM IST
गरीबी से अधिक खतरनाक गरीबी का कलंक, क्या अपने फायदे के लिए 81 करोड़ लोगों को सरकार ने बनाया है गरीब !
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Poverty stigma is a wicked social problem and causes more harm than poverty itself. एक नए अध्ययन के अनुसार गरीबी में गुजारा करने से अधिक कठिन है गरीबी के कलंक को खेलना, यानि अपने मष्तिष्क में बैठा लेना कि आप गरीब हैं। इस अध्ययन को यूनाइटेड किंगडम की एक सामाजिक संस्था, जोसफ राउनट्री फाउंडेशन ने लंकास्टर यूनिवर्सिटी के साथ सम्मिलित तौर पर किया है और इसे जोसफ राउनट्री फाउंडेशन ने प्रकाशित किया है। इसके अनुसार गरीबी का कलंक एक जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्या है। यह समस्या गरीबी से नहीं उपजती, बल्कि समाज और राजनीति के कारण पनपती है।

यह कलंक एक गोंद की तरह काम करता है जिससे गरीबी, असमानता और आर्थिक असुरक्षा एक साथ चिपक जाते हैं और इससे समाज में आर्थिक असमानता, स्वास्थ्य विसंगतियां और आगे बढ़ने के अवसरों में असमानता विकराल होती जाती है। फाउंडेशन के एक विशेषज्ञ, स्टीव अर्नोट के अनुसार गरीबी एक चक्रव्यूह है, जिससे बाहर निकलना आसान नहीं है – गरीब गरीबी में पैदा होते हैं, गरीबी के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य में पिछड़ते हैं, शिक्षा में पिछड़कर रोजगार में भी कम आय वाले रोजगार मिलते हैं, और अंत में आप पूरा जीवन इसी गरीबी में निकाल देते हैं। इन सबका प्रभाव गरीबों पर पड़ता है, पर उससे भी बुरा प्रभाव गरीबी के कलंक का है, जब हरेक कदम पर सत्ता, मीडिया और समाज यह अहसास दिलाता है कि आप गरीब हैं।

गरीबी के इस कलंक को हम अपने देश के उदाहरण से समझ सकते हैं। कोविड-19 के दौर के बाद बड़े तामझाम से सरकार ने 81 करोड़ से अधिक आबादी को गरीब घोषित कर मुफ्त अनाज देना शुरू किया। जाहिर है, मुफ्त अनाज ने उस दौर में बेहद गरीबों को जिन्दा रहने में मदद की होगी, पर एक बड़ा सवाल यह है कि मोदी सरकार ने जिन 81 करोड़ से अधिक लोगों को बेहद गरीब का तमगा पहना दिया, क्या सभी वाकई बेहद गरीब थे?

कोविड-19 के दौर के बाद से सरकारी स्तर पर, मीडिया के स्तर पर और समाज के स्तर पर देश की आबादी को सत्ता ने दो वर्गों में विभाजित कर दिया – 81 करोड़ से अधिक बेहद गरीब और लगभग 60 करोड़ आबादी जो बेहद गरीब नहीं है। यह आंकड़ा भी सत्ता ने रहस्यमय बना दिया है – बताया गया कि 18 करोड़ आबादी गरीबी से बाहर आ गयी है, पर मुफ्त अनाज 81 करोड़ लोगों को मिलता रहा, इस संख्या में कोई कमी नहीं आई।

इसके बाद बताया गया कि 25 करोड़ लोग अब गरीबी रेखा से आगे पहुँच गये हैं, पर देश के गरीबों की संख्या 81 करोड़ ही रही। इसके बाद नीति आयोग के सीईओ ने ऐलान किया कि देश में गरीबों की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम यानी लगभग 7 करोड़ ही है, लेकिन बेहद गरीबी के नाम पर 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलता रहा।

अब तो वर्ल्ड डाटा लैब के वर्ल्ड पावर्टी क्लॉक के अनुसार देश की महज 3.4 करोड़ आबादी, यानी 2 प्रतिशत आबादी ही गरीब है, फिर भी प्रधानमंत्री जी हरेक चुनावी रैली में जनता को बता रहे हैं कि 81 करोड़ से अधिक आबादी को मुफ्त अनाज मिलता रहेगा। जाहिर है, देश की 81 करोड़ आबादी पर सत्ता ने बेहद गरीबी का कलंक थोप दिया है और यह कलंक उनके गरीबी से बाहर आने पर भी लगातार बना रहेगा। हरेक महीने अनाज लेने के समय, हरेक योजना का लाभ उठाते समय और हरेक नीति निर्धारण में 81 करोड़ लोगो को याद दिलाया जाएगा कि वे बेहद गरीब हैं। यही स्थिति गरीबी नहीं बल्कि गरीबी का कलंक है, और यह कलंक सत्ता ने केवल अपने फायदे के लिए 81 करोड़ लोगों पर लगाया है।

जोसफ राउनट्री फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार गरीबी का कलंक गरीबी से नहीं, बल्कि इसके उत्पत्ति सामाजिक और राजनैतिक है। इस कलंक को आगे बढाने में सत्ता, समाज का अमीर तबका और मीडिया – सभी आगे रहते हैं। इन सबसे गरीबी के बारे में लोगों की सोच बदल जाती है – सत्ता की गलत नीतियों के कारण पनपी गरीबी का सारा दोष गरीबों पर ही थोप दिया जाता है – यह धारणा केवल गरीबों में ही नहीं बल्कि समाज में भी पनपने लगती है।

जब गरीबी के लिए केवल गरीबों को ही दोषी ठहराया जाता है, तब समाज में उनका प्रतिनिधित्व प्रभावित होता है और गरीबों की गरीबी के बारे में सोच बदलने लगती है। गरीबी के लिए गरीबों को जिम्मेदार बताने वाली सोच सत्ता तंत्र और उनके कल्याण की योजनाओं का हिस्सा बन जाती है, इससे गरीबी और भी अधिक बढ़ती है। गरीबी कम करने के नाम पर सत्ता और पूंजीपति गरीबों के हिस्से के संसाधनों पर अपना अधिकार जमा लेते हैं। गरीबी की यह सोच रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा हो जाती है, जिसके गंभीर मानसिक परिणाम होते हैं। अंत में गरीबी से अधिक नुकसान गरीबों का गरीबी के कलंक से होता है।

सन्दर्भ:

1. https://www.jrf.org.uk/stigma-power-and-poverty/poverty-stigma-a-glue-that-holds-poverty-in-place

2. World Poverty Clock - https://worldpoverty.io/

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