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Union Budget 2022: भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट

Janjwar Desk
1 Feb 2022 4:36 PM IST
Union Budget 2022: भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट
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Union Budget 2022: भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट

Union Budget 2022: साल 2019 में अपना पहला बजट भाषण पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि यह दस साल का दृष्टि पत्र है। यह अलग बात है कि अगले ही कुछ महीनों में उन्हें लगभग हर महीने आकर अपने बजट भाषण से लंबे भाषण देते हुए अपनी बजट योजनाओं का पुनर्संस्कार करना पड़ा। अब वे बता रही हैं कि इस साल का बजट अगले 25 साल की बुनियाद रखने वाला बजट है।

वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन की टिप्पणी

Union Budget 2022: साल 2019 में अपना पहला बजट भाषण पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि यह दस साल का दृष्टि पत्र है। यह अलग बात है कि अगले ही कुछ महीनों में उन्हें लगभग हर महीने आकर अपने बजट भाषण से लंबे भाषण देते हुए अपनी बजट योजनाओं का पुनर्संस्कार करना पड़ा। अब वे बता रही हैं कि इस साल का बजट अगले 25 साल की बुनियाद रखने वाला बजट है। देखना है कि इस बार वे बजट में कितने बदलाव लाएंगी।

लेकिन वित्त मंत्री के 25 साल की बुनियाद रखने वाले इस बजट से सरकार की 25 साल की परिकल्पना का कुछ सुराग मिलता रहा। यह साफ़ है कि सरकार के लिए यह भारत खाते-पीते उच्चवर्गीय लोगों का भारत है जिनको डिजिटल तकनीक रास आती है, क्रिप्टो करेंसी की वैधता की चिंता सताती है, ई पासपोर्ट जैसी अवधारणा लुभाती है और अपने ज़मीन-मकान की भी बिल्कुल डिजिटल रजिस्ट्री सबसे ज़रूरी लगती है।

क्योंकि डेढ़ घंटे से ऊपर चले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण को बहुत धीरज से सुनते हुए यही लगता रहा कि जैसे यह बजट नहीं, भारत की किसी डिजिटाइज़ेशन योजना की घोषणा हो। वित्त मंत्री ने लगभग हर योजना को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़ने का एलान किया- इसमें कोई बुरी बात नहीं- हमें लगातार डिजिटल प्रशासन की ओर बढ़ना चाहिए, लेकिन क्या यह काम संसद के पटल पर बजट पेश किए जाने के दौरान होना चाहिए? वित्त मंत्री ने बजट भाषण ही कोरोना काल के संकट की चर्चा से शुरू किया, लेकिन सेहत के बुनियादी ढांचे को सुधारने पर कोई घोषणा नहीं की। यह ज़रूर बताया कि कोविड काल ने बहुत सारे लोगों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। इसके लिए राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक सेहत मिशन की शुरुआत की जा रही है। लेकिन जिन लोगों ने कोविड काल में ऑक्सीजन से लेकर अस्पतालों की कमी झेली, जिन्होंने पाया कि निजी अस्पताल लूट के केंद्रों में बदल चुके हैं, वे इंतज़ार करते रहे कि सरकार कुछ सरकारी अस्पतालों, कुछ स्वास्थ्य सुविधाओं की भी घोषणा करेगी। गरीबों की क्रय शक्ति बढाने की बात हुई, लेकिन उसके लिए मनरेगा जैसी किसी योजना के विस्तार या किसी नई योजना की शुरुआत का ज़िक्र नहीं दिखा। इसी तरह कोरोना काल के दो साल में पढ़ाई-लिखाई बंद होने की बात हुई, लेकिन उसके लिए टीवी चैनलों की संख्या बढ़ाकर पूरक कक्षाएं देने की बात कही गई। संभव है कि ऐसी कक्षाएं कहीं-कहीं उपयोगी हों, लेकिन जिन इलाक़ों में बिजली या मोबाइल नहीं हैं, वहां स्कूली शिक्षा के विस्तार के लिए बजट में कोई घोषणा नहीं है।

दिलचस्प यह है कि वित्त मंत्री के बजट भाषण में अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी मन-मर्ज़ी से नए कोर्स चलाने का न्योता है। इस शिक्षा क्रांति की क़ीमत क्या है, यह हम सब जानते हैं। निजी और विदेशी विश्वविद्यालयों की आसमान छूने वाली फीस में पढ़ाई कौन कर पाता है? फिर यहां से पढ़कर निकलने वाला इस पैसे की वसूली के लिए किस तरह के काम करता है? इन सवालों के जवाब खोजने की ज़रूरत है।

दरअसल ऐसा लगता है जैसे सरकार ने मान लिया है कि वह अब भारत को कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से मुक्त करके ऐसी आर्थिक महाशक्ति की तरह पेश करना चाहती है जिसकी रास बड़े उद्योगपतियों के हाथ में रहे। इसलिए पूरे बजट में पीपीपी- यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप- पर बहुत ज़ोर है। जाहिर है, ऐसी परियोजनाएं सरकारों को कम, निजी क्षेत्र को ज़्याादा मुनाफ़ा देती हैं- यह बात सबको मालूम है। वह सड़क, रेल, बिजली, बंदरगाह, हवाई अड्डे सब निजी हाथों में देने की तैयारी में है। चाहें तो इसे सरकार की उस योजना से जोड़ लें जिनमें फाजिल सरकारी ज़मीन भी निजी क्षेत्र को लीज पर देने का प्रस्ताव है। यह एक तरह से भारत के संसाधनों को निजी क्षेत्र के हवाले करने का अभियान है।

यह बजट इसी अभियान का हिस्सा है। वैसे यह दुनिया में बहुत सारे लोग मानते हैं कि ज़मीन हो या आसमान- उनके ठीक से इस्तेमाल के लिए ज़रूरी है कि उन्हें निजी हाथों में सौंप दिया जाए। लेकिन इस निजीकरण से बनने वाली 'एकाधिकारिता' कितने सारे लोगों को पूरे तंत्र से बाहर कर देती है, इसका हिसाब कोई नहीं लगाता।

यह बजट भी यह हिसाब नहीं लगा रहा। बेशक, इसमें डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा में कुछ क़दम बढाए गए हैं। लेकिन उनमें भी हड़बड़ी दिखती है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब सरकार ने इशारा किया था कि भारत में जो क्रिप्टो कारोबार चल रहा है, वह क़ानून के दायरे से बाहर है। इसी इशारे भर से बिटकॉइन जैसी करेंसियां गोता खा गईं। अब बजट में इन करेंसियों को एक तरह की वैधता दे दी गई है। डिजिटल ऐसेट के कारोबार को टैक्स के दायरे में ला दिया गया है। फिलहाल इन पर तीस फ़ीसदी टैक्स लगेगा। लेकिन यह टैक्स दर भी हैरान करने वाली है। जब आप हर तरफ़ टैक्स घटा रहे हैं तो डिजिटल ऐसेट पर इतना ज़्यादा टैक्स क्यों लगा रहे हैं? यह युवा भारत को दिया गया झटका है। क्योंकि आंकड़ों के अनुसार जिन डेढ़ करोड़ भारतीयों ने क्रिप्टो करेंसी .या ऐसे ऐसेट्स में निवेश किया है, उनमें से 75 फ़ीसदी 35 साल से कम के हैं।

तो बजट गरीबों, युवाओं और महिलाओं की बात तो करता है, लेकिन उनको देता कम है, उनसे लेता ज़्यादा दीखता है। महिलाओं के लिए नारी शक्ति के नाम पर जो तीन योजनाएं घोषित की गई हैं, उनमें एक वात्सल्य मिशन है और एक आंगनबाड़ी। ये नवजात शिशुओं के लिए ज़रूरी योजनाएं हैं, लेकिन इनकी सीमाएं हैं।

लेकिन बजट में असली झटका नौकरीपेशा मध्य वर्ग की उम्मीदों को लगा है। वह पिछले कई सालों से आयकर छूट की उम्मीद लगाए बैठा है। इन तमाम वर्षों में महंगाई बढ़ती चली गई। इन्हीं वर्षों में पहले नोटबंदी की वजह से और फिर लॉकडाउन की वजह से लोगों की नौकरियां छूटीं या उनके वेतनों में कटौती हुई या उन्हें पहले से कम पैसों पर नौकरी करनी पड़ी। इस बहुत बड़े वर्ग के लिए सरकार के बजट में कुछ भी नहीं है। रिटर्न अपग्रेड करने की जो सुविधा है, उसका बहुत कम लोगों से वास्ता है। जाहिर है, ये बहुत कम लोग भी उच्च वर्ग से आते हैं।

दरअसल यह बजट भारत को एक कंप्यूटर में बंद करके कुछ बिचौलियों और कुछ उद्योगपतियों के हवाले करने का प्रबंध करता है। भारत जिन खेतों में, जिन कच्चे घरों में, जिन धूल भरे गांवों और क़स्बों में रहता है, उनके बीच यह बजट पहुंचता नज़र नहीं आता।

(प्रियदर्शन की यह टिप्पणी पहले उनकी एफबी वॉल पर प्रकाशित)

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