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विमर्श

BJP Success Story: भाजपा 24x7 वाली पूर्णकालिक पार्टी, विपक्ष के नेता मौसमी - नहीं दिखता कोई मुकाबला !

Janjwar Desk
19 April 2022 12:44 PM IST
BJP Success Story: भाजपा 24x7 वाली पूर्णकालिक पार्टी, विपक्ष के नेता मौसमी - नहीं दिखता कोई मुकाबला !
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BJP Success Story: इस साल 10 मार्च को पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के फौरन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से जो कहा, वह शायद दो साल बाद होने वाले आम चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी से कम नहीं है।

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

BJP Success Story: इस साल 10 मार्च को पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के फौरन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से जो कहा, वह शायद दो साल बाद होने वाले आम चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी से कम नहीं है। प्रधानमंत्री ने दो-टूक कहा कि राजनीतिक पंडित 2019 के आम चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत को यह कहकर हवा में उड़ा देते हैं कि वह तो 2017 में यूपी विधानसभा की जीत के साथ ही तय हो गई थी। मैं मानता हूं कि इस बार भी पंडित यही कहेंगे कि 2024 के आम चुनाव के नतीजे 2022 ने ही तय कर दिए हैं।

उसी 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत के बाद कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दबी जुबान से कहा था कि कांग्रेस नेतृत्व 24x7 चुनाव मोड में रहने वाली बीजेपी की राजनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऊर्जा का मुकाबला नहीं कर सकता। कहना न होगा कि उसी कांग्रेस नेता ने बाद में बीजेपी ज्वॉइन कर ली और अब वे यूपी में पार्टी के बड़े नेता हैं।

उनका कहना कतई गलत नहीं था। 10 मार्च को जब पांच राज्यों के चुनाव नतीजे चार राज्यों में बीजेपी का परचम लहरा रहे थे, प्रधानमंत्री गुजरात की यात्रा पर थे। नतीजों से बेफिक्र, राज्य में इसी साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त। उधर, यूपी की हार से समाजवादी पार्टी सन्नाटे में थी, तो कांग्रेस आलाकमान पंजाब की सत्ता न बचा पाने के गम में दुखी था। दोनों ही दलों में एक स्वर साफ सुनाई दे रहा था- काश, समय रहते जाग जाते और अपनी जमीन मजबूत कर ली होती।

बीजेपी की 24X7 की राजनीति और युनावी जीत के आगे कोविड का बहाना भी नहीं चला। उसी यूपी में, जहां ऑक्सीजन सिलेंडरों की मारामारी और स्वास्थ्य ढांचे की विफलता के बीच तमाम आलोचनाओं के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे के जिलों में घूमकर इंतजामों का जायजा ले रहे थे। बाद में यूपी चुनाव के दौरान अखिलेश यादव की सभाओं में उमड़ी भारी भीड़ को रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक माना गया और कहा जाने लगा कि नेताजी ने कोविड की पाबंदियों का पूरा फायदा घर बैठे चुनाव की रणनीतियां बनाने में उठाया। यही बात कांग्रेस के लिए पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कही गई। दलित वोटों के सहारे सत्ता में दोबारा वापसी की उम्मीदों को इस कदर झटका लगा कि खुद सीएम ही चुनाव हार गए।

क्यों नहीं बन पा रही विपक्ष की एकता ?

देश में बढ़ती सांप्रदायिकता के खिलाफ बीते दिनों कांग्रेस सहित 13 विपक्षी दलों ने एक साझा बयान जारी किया था, लेकिन बयान में तेलुगू देशम और कर्नाटक में जनता दल (सेक्यूलर) के नाम शामिल नहीं थे। इसी साल मार्च में पहले बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने विपक्षी एकता का आह्वान करते हुए बीजेपी के खिलाफ मजबूत गठबंधन की बात कही। बताया जाता है कि स्टालिन की इस राय से आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी सहमत हैं। बस, सबसे बड़ी अड़चन खुद कांग्रेस पार्टी है। कर्नाटक में उसका मुकाबला जद (एस) से है, वहीं तमिलनाडु में वह एआईडीएमके के साथ मिलकर डीएमके को टक्कर देने की रणनीति पर चलती है। दरअसल, ममता बनर्जी और केसीआर दोनों की नजरें केंद्र की सत्ता पर है। ममता अपनी भतीजे अभिषेक को कुर्सी थमाकर दिल्ली की गद्दी संभालना चाहती हैं। यही इरादा केसीआर का भी है, जो अपने बेटे केटी रामाराव को विरासत सौंपना चाहते हैं। दक्षिण में इन सभी दलों ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन अब दूरियां बढ़ गई हैं।

कांग्रेस का कमजोर होना यूपीए की राह का सबसे बड़ा रोड़ा

कांग्रेस ने यूपीए को दोबारा मजबूत करने के एनसीपी प्रमुख शरद पवार और ममता बनर्जी के बयान का स्वागत तो किया है, लेकिन 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद के साथ कांग्रेस के गठबंधन का हश्र कोई भूला नहीं है। यही हाल यूपी के हालिया विधानसभा चुनाव का भी रहा, जिसमें कांग्रेस को सिर्फ दो ही सीटें मिल पाईं। कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरी ने पार्टी को दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट बैंक से दूर कर दिया है। इसके बावजूद कांग्रेस चाहती है कि पहले ही तरह यूपीए के पुनरुद्धार में वही अगुवाई करे। बंगाल में कांग्रेस का वोट शेयर 5 फीसदी से भी कम है। ममता को डर है कि कांग्रेस से गठजोड़ करने पर कहीं तृणमूल का अपना वोट बैंक न खिसक जाए।

मुश्किल लगता है बीजेपी को रोक पाना

बीजेपी फिर से एक्शन मोड में है। गुजरात और हिमाचल में इसी साल के आखिर में और कर्नाटक में अगले साल के प्रारंभ में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को देखते हुए हिंदुत्व का एजेंडा ध्रुवीकरण के रूप में पूरे देश में फैलाया जा रहा है। बीजेपी के सूत्र इस बात से इनकार नहीं करते कि इन चुनावों में भी प्रधानमंत्री मोदी ही पार्टी का प्रमुख चेहरा होंगे और उनके साथ अमित शाह और पार्टी के बाकी कद्दावर नेताओं के अलावा सोशल मीडिया सेल और संघ के अनुशंगिक संगठनों का भी पूरा साथ रहेगा। बीजेपी की नई राजनीति का, जिसमें अनुशासन, जिम्मेदारी और पन्ना प्रमुख स्तर तक के कार्यकर्ता की जवाबदेही के अलावा चुनावी जीत के लिए किसी भी निचले स्तर तक जाने की रणनीति भी शामिल है, विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं है। उसके पास देश को देने के लिए कोई वैकल्पिक राजनीति ही नहीं है।

क्या चल पाएगा पीके का जादू ?

हाल में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सोनिया गांधी के आवास पर कांग्रेस को 2024 के आम चुनाव में जीत दिलाने के नक्शे का प्रस्तुतिकरण दिया है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर के फॉर्मूले पर गौर करने के लिए चार सदस्यीय कमेटी बनाई है। लेकिन 137 साल पुरानी कांग्रेस के भीतर लगी घुन पार्टी से केवल गांधी परिवार को अलग करने से खत्म नहीं होगी। पार्टी संगठन में भी उन निकम्मे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना होगा, जो दीमक की तरह कांग्रेस को खोखला कर रहे हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर क्या पार्टी में प्रॉक्सी अध्यक्ष की तरह काम करेंगे? या फिर कांग्रेस को दो हिस्सों में बांटकर खुद अध्यक्ष बनकर जीत की राह खुद बनाएंगे ? हाल के उपचुनाव में कांग्रेस ने दो विधानसभा सीटें जीती हैं, लेकिन इस जीत का सेहरा दो दलीय समीकरण और पार्टी उम्मीदवार के माथे सजना चाहिए, न कि आलाकमान के सिर पर

बीजेपी के लाभार्थी नेटवर्क को तोड़ना भी आसान नहीं

इस बात को मानने में गुरेज नहीं करना चाहिए कि बीजेपी की सरकारों का एक बड़ा लाभार्थी वर्ग है। यह वर्ग पार्टी के सूचना तंत्र से इस कदर मजबूती से जुड़ा है कि ऐन चुनावों के वक्त 7-10 फीसदी वोट स्विंग करवा सकता है। इस नेटवर्क को न कांग्रेस तोड़ पाई है और न ही विपक्षी पार्टियां। बीजेपी और मुख्यधारा की मीडिया के सूचना तंत्र की इस लाभार्थी वर्ग तक तो पहुंच है, लेकिन उस बुद्धिजीवी वैकल्पिक मीडिया की नहीं, जो विपक्ष में अवाम के साथ खड़ा है। अकेले आम आदमी पार्टी देश में अपना लाभार्थी तंत्र बनाकर बीजेपी की चुनौती का मुकाबला कर रही है। लेकिन आप को बीजेपी का मजबूत विकल्प बनने में शायद 20 साल और लगें। इस बीच, देश का वोटर गुस्से में कहीं कांग्रेस और विपक्ष के कई नेताओं को राजनीति से बाहर का रास्ता न दिखा दे।

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