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हाईकोर्ट ने कफील खान की याचिका पर यूपी सरकार से मांगा जवाब, 6 अप्रैल को अगली सुनवाई
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ सरकार के वकील को निर्देश दिया है कि वह बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान द्वारा दायर एक याचिका के संबंध में संबंधित अधिकारियों से निर्देश मांगे। कफील ने याचिका में दिसंबर 2019 में नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ वरोध प्रदर्शन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में भड़काऊ भाषण देने के मामले में अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले और आरोपपत्र को खारिज करने का अनुरोध किया है। न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर ने 6 अप्रैल के लिए अगली सुनवाई तय की है।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 (उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों को बचाने) के तहत दायर याचिका में, खान ने अलीगढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी है कि कथित अपराधों के लिए चार्जशीट 153 -ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना, और सद्भाव को बनाने को लेकर पक्षपातचपूर्वक कार्य करना), 153-बी (राष्ट्रीय एकता के लिए पूर्वाग्रह, अभिकथन) 505 (2) (वर्गों के बीच दुश्मनी, घृणा को बढ़ावा देने वाले बयान) का संज्ञान लिया जाए।
दिसंबर 2019 में, खान ने एएमयू में एक रैली को संबोधित किया था जो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के विरोध में आयोजित किया गया था। इस संबंध में अलीगढ़ पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। बाद में, पुलिस ने मामले की जांच की और उसके खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया।
सीजेएम ने 28 जुलाई, 2020 को आरोप पत्र का संज्ञान लिया। वर्तमान याचिका में आरोप पत्र और संज्ञान आदेश दोनों को चुनौती दी गई है। याचिका में खान के वकील ने यह दलील दी है कि पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर और आरोप पत्र दाखिल करते समय उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है।
13 फरवरी, 2020 को खान पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान एएमयू में भड़काऊ भाषण दिया था। 1 सितंबर, 2020 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खान पर से रासुका (एनएसए) हटाकर उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था।
खान ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2017 ऑक्सीजन त्रासदी के बाद सुर्खियां बटोरीं, जिसमें ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी के कारण कई बच्चों की कथित तौर पर मौत हो गई थी। जहां शुरू में उन्हें आपातकालीन ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था के लिए बच्चों के तारणहार के रूप में सराहा गया था, वहीं बाद में इस मामले के नौ आरोपियों में से एक के रूप में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।