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President Election 2022: राष्ट्रपति-उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवारों की हार के क्या हैं भविष्य के राजनीतिक संकेत

Janjwar Desk
8 Aug 2022 9:17 AM IST
President Election 2022: राष्ट्रपति-उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवारों की हार के क्या हैं भविष्य के राजनीतिक संकेत
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President Election 2022: राष्ट्रपति-उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवारों की हार के क्या हैं भविष्य के राजनीतिक संकेत

President Election 2022: भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक अजेयता का श्रेय केवल लोकप्रिय समर्थन को नहीं दिया जा सकता है। इस शासन के स्थायित्व में एक लुंजपुंज और असंगठित विपक्ष का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राष्ट्रपति-उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवारों की हार से विपक्ष का बिखराव उजागर हो गया है।

दिनकर कुमार का विश्लेषण

Vice President Election: भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक अजेयता का श्रेय केवल लोकप्रिय समर्थन को नहीं दिया जा सकता है। इस शासन के स्थायित्व में एक लुंजपुंज और असंगठित विपक्ष का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राष्ट्रपति-उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवारों की हार से विपक्ष का बिखराव उजागर हो गया है। अगर विपक्ष इसी तरह असंगठित रहा तो 2024 के चुनाव में भाजपा को चुनौती दे पाना उसके लिए असंभव हो सकता है।

कम से कम 126 विधायकों और 17 सांसदों ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट देने के लिए अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर उनके पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। 2024 के आम चुनावों से बमुश्किल दो साल पहले क्रॉस-वोटिंग को देखकर राजनीतिक भविष्य का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है और विपक्षी एकता की दयनीय स्थिति को महसूस किया जा सकता है। क्रॉस वोटिंग से तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति के कार्य से है जो वोट के दौरान अपनी पार्टी के अलावा किसी अन्य पार्टी को वोट देता है या पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है।

गुजरात में दस विधायकों, असम में 22, उत्तर प्रदेश में 12 और गोवा में 4 विधायकों ने मुर्मू को क्रॉस वोट दिया, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने बीजेपी नेताओं के हवाले से बताया। यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष की तरफ से क्रॉस वोटिंग हुई हो। महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में शिवसेना और कांग्रेस दोनों को क्रॉस वोटिंग से शर्मसार होना पड़ा था। जबकि शिवसेना तीन वोटों से कम थी, कांग्रेस का दूसरा उम्मीदवार हार गया क्योंकि विधायकों ने बीजेपी को क्रॉस वोट दिया था।

उत्तर प्रदेश में 12 सपा सांसदों ने मुर्मू को क्रॉस वोट दिया। असम में क्रॉस वोटिंग का सबसे बड़ा उदाहरण सामने आया, जहां 26 गैर-भाजपा सांसदों ने मुर्मू के पक्ष में मतदान किया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, कुल मिलाकर 17 राज्यों में क्रॉस वोटिंग हुई।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इसे विपक्षी एकता में दरार के रूप में देखा है। इसके अलावा क्रॉस-वोटिंग की सीमा यह भी बताती है कि भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच अंतर पैदा करने के विपक्ष के प्रयास काम नहीं कर रहे हैं। बिहार का ही मामला लें जहां एनडीए के पास 127 विधायक हैं। मुर्मू को वहां 133 वोट मिले। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 71 विधायक हैं लेकिन यशवंत सिन्हा को सिर्फ 69 वोट मिले।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने नोट किया कि इस तरह की क्रॉस-वोटिंग न केवल एनडीए के प्रभुत्व और बेहतर प्रबंधकीय कौशल को रेखांकित करती है, बल्कि एक आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र के उद्भव का पहला संकेत भी देती है। "जबकि असम ने 22 में सबसे अधिक विधायकों की क्रॉस-वोटिंग की सूचना दी, मध्य प्रदेश, जिसमें कांग्रेस बेंच पर आदिवासी सदस्यों की एक महत्वपूर्ण संख्या है, ने मुर्मू के लिए 19 वोट दर्ज किए," टाइम्स ऑफ इंडिया ने नोट किया। इंडिया टीवी ने आगे बताया, "मुर्मू की आदिवासी पृष्ठभूमि को झारखंड के विपक्षी विधायकों का भी समर्थन मिला, जहां सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पहले ही उन्हें समर्थन देने की घोषणा कर दी थी।"

राष्ट्रपति-उप रास्तर्पटी चुनाव 2024 के आम चुनाव से दो साल पहले हुए हैं। तृणमूल कांग्रेस उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर ही रही क्योंकि पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी से वरिष्ठ कांग्रेस नेता, पूर्व मंत्री और पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित करते समय परामर्श नहीं लिया गया था।

सीएनएन-न्यूज 18 ने नोट किया, "यूपीए अपने वीपी उम्मीदवार के लिए टीएमसी को साथ में लाने में विफल रहा है। इसलिए, 2024 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ एक बड़ा विपक्षी मोर्चा बनाने की दिशा में हो रहे प्रयास को धक्का लगा है। दो सबसे बड़े विपक्षी दलों कांग्रेस और तृणमूल के बीच बड़ा टकराव दिखाई दे रहा है।"

राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की रणनीति शुरू से ही कमजोर नजर आई। पहले उम्मीदवार चयन को लेकर और उसके बाद कई विपक्षी दल इस धर्म संकट में फंस गए कि वो अब क्या करें। रही सही कसर चुनाव से कुछ दिन पहले शिवसेना के ऐलान से पूरी हो गई जब उद्धव ठाकरे की ओर से कहा गया कि उनका दल द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेगा। हालांकि शिंदे गुट पहले ही इसकी घोषणा कर चुका था। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी द्रौपदी मुर्मू का विरोध नहीं कर पाए।

इन सबके बीच सबसे बड़ा बयान बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से आया जिन्होंने इस पूरे मुहिम की अगुवाई की थी। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने अपने उम्मीदवार का ऐलान पहले किया होता उस पर सर्वसम्मति बन सकती थी। शुरुआत में जिस तरीके से वो राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अगुवाई करती नजर आईं वो बाद में धीरे-धीरे पीछे हटती गईं। कभी शरद पवार तो कभी कोई और विपक्ष की ओर से दम लगाता नजर आया लेकिन वो आखिरकार खानापूर्ति ही साबित हुई। विपक्षी एकजुटता की बात सभी विरोधी राजनीतिक दल करते हैं लेकिन वो दिनोंदिन मजबूत होने की बजाय कमजोर होता चला जा रहा है।

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