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उत्तर प्रदेश

Taj Mahal controversy : ताजमहल विवाद का क्या है इतिहास, कौन इतिहासकार कहता है ताजमहल को तेजोमहल

Janjwar Desk
12 May 2022 5:03 PM IST
Taj Mahal Row : यूनिवर्सिटी जाओ, पीएचडी करो, शोध करो फिर कोर्ट आना- ताजमहल विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार, अर्जी खारिज
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Taj Mahal Row : यूनिवर्सिटी जाओ, पीएचडी करो, शोध करो फिर कोर्ट आना- ताजमहल विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार, अर्जी खारिज

Taj Mahal controversy : ताजमहल की सुर्ख-सफेद संगमरमरी खुबसूरती पूरी दुनिया को आकर्षित करती रही है। इसे सदियों से "मोहब्बत क़े निशानी" तौर पर भी जाना जाता है।

Taj Mahal controversy : सदियों से जिसे लोग ताज महल के नाम से जानते हैं वो विश्व का सातवां अजूबा, पवित्र प्रेम की निशानी और अद्भुत कलाकारी का पर्याय भी है। यह उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित है। 1632 में बेगम मुमताज की याद में मुगल शासक शाहजहां ने इसे बनवाया था। इसकी सुर्ख-सफेद संगमरमरी खुबसूरती पूरी दुनिया को आकर्षित करती रही है। इसे सदियों से "मोहब्बत क़े निशानी" तौर पर भी जाना जाता है।

वही ताज महल अब विवाद ( Taj Mahal controversy ) का विषय बन गया है। दरअसल, ताजमहल के तहखाने में बने 20 कमरों को खोलने की याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गुरुवार यानि 12 मई 200 को खारिज कर दिया। ताजमहल विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त रुख अपनाया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई है।

जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता से कहा कि PIL व्यवस्था का दुरुपयोग न करें। पहले यूनिवर्सिटी जाएं, PhD करें, तब कोर्ट आएं। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई रिसर्च करने से रोके, तब हमारे पास आना। उन्होंने कहा कि कल को आप आएंगे और कहेंगे कि आपको जजों के चैंबर में जाना है, तो क्या हम आपको चैंबर दिखाएंगे? इतिहास आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा।

ताजमहल विवाद क्या है इतिहास?

प्रमाण न होने के बावजूद कुछ लोगों का एक तबका ऐसा भी है जो ताजमहल ( Taj Mahal controversy ) को तेजो महल होने का दावा करते हैं। इस धारणा को देश की सांसद के साथ तमाम इतिहासकार भी खारिज ही करते रहे हैं। उसके बावजूद इससे जुड़े विवाद और चर्चाएं अपनी जगह कायम हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस सिलसिले में साल 2015 में भी 7 याचिकाकर्ताओं नें आगरा सिविल जज की अदालत में एक याचिका दाखिल कर हिंदू श्रद्धालुओं को ताजमहल में पूजा-उपासना आदि करने की मांग की थी। उस याचिका में भी ताजमहल के तेजो महालय होने का दावा किया गया था। उस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस पर स्पष्टीकरण देते हुए साल 2015 में ही संस्कृति मंत्रालय नें लोकसभा को यह जानकारी दी थी कि वहां पर मंदिर से जुड़े कोई भी सबूत मौजूद नहीं है।

इसके बावजूद कहा जा रहा है कि ताजमहल ( Taj Mahal controversy ) की जगह हजारों साल पहले वहां पर एक शिव मंदिर था। ऐसा भी दावा हुआ है कि ताजमहल का असल नाम तो 'तेजो महालय' है। हाल ही में अयोध्या के भाजपा मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह ने भी इस बात का दावा किया था। उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कह दिया कि ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों की जांच होनी चाहिए।

इनका दावा है कि ताजमहल की जगह पहले एक मंदिर था

भाजपा नेता के दावों को सपोर्ट करते हुए कई साल पहले एक किताब भी लिखी गई थी। उसी किताब ने सबसे पहले ये दावा किया था कि आगरा में ताजमहल ( Taj Mahal controversy ) की जगह एक मंदिर हुआ करता था। लेखक थे पीएन ओक और उनकी किताब का नाम था 'Taj Mahal: The True Story'. उस समय उस किताब को मराठी भाषा में लिखा गया था। कहा जाता है कि सबसे पहले ताजमहल को लेकर मंदिर वाला दावा पीएन ओक ने ही अपनी किताब से किया था।

ओक की मानें तो 1155 में हुआ था तेजोमहल का निर्माण

पीएन ओक की किताब में कहा गया है कि ताजमहल ( Taj Mahal controversy ) वास्तव में तेजोमहालय है जिसका निर्माण 1155 में किया गया था। उनके मुताबिक तब वहां पर एक शिव मंदिर हुआ करता था। मुगलों के भारत आने से पहले ही आगरा में एक भव्य स्मारक मौजूद था। पीएन ओक ने बादशाहनामा के दो पन्नों का अंग्रेजी अनुवाद किया था जो शाहजहां की जिंदगी की पूरी क्रोनोलॉजी बताती है। शाहजहां के दरबारी लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने ही बादशाहनामा लिखी थी लेकिन क्योंकि वो पूरी किताब फारसी भाषा में थी, ऐसे में लंबे समय तक कई लोगों के लिए उस किताब में लिखी बातें राज रहीं। फिर पीएन ओक ने बादशाहनामा के दो पन्ने 402 और 403 का अंग्रेजी अनुवाद करवाया। उस अनुवाद के अनुसार 402 पन्ने पर लिखा था — महान शहर आगरा (तब अकबराबाद) के दक्षिण में एक खूबसूरत और भव्य हवेली है। वो राजा मान सिंह की है। वर्तमान में उस हवेली का स्वामित्व मान सिंह के पोते जय सिंह के पास है। रानी के दफन के लिए इसी जगह को चुना गया। राजा जय सिंह ने अपनी इस पैतृक विरासत को काफी महत्व दिया लेकिन फिर शासक शाहजहां को वो ये हवेली मुफ्त में देने को तैयार हो गए। जय सिंह को उस भव्य हवेली के बदले में 'शरीफाबाद' दिया गया था।

पीएन ओक ने इस अनुवाद के आधार पर ये बताने का प्रयास किया है कि शाहजहां ने असल में राजा मान सिंह के पोते जय सिंह से उनकी भव्य हवेली मांगी थी। ओक के मुताबिक पहले ऐसा दावा किया गया था कि शाहजहां ने राजा जय सिंह से एक जमीन मांगी थी लेकिन बादशाहनामा का जो अनुवाद उन्होंने करवाया है, उसके मुताबिक एक जमीन नहीं बल्कि भव्य हवेली की मांग रखी गई थीं

पीएन ओक को क्यों लगता है ताजमहल मंदिर?

1970 के दशक में पीएन ओक ने ताजमहल पर एक और किताब लिखी थी। उस किताब का नाम था The Taj Mahal Is A Temple Palace। अब अगर उन्होंने अपनी किताब 'Taj Mahal: The True Story' में तेजोमहालय और बाद में जय सिंह पर फोकस किया था, वहीं अपनी दूसरी किताब में उन्होंने कुछ ऐसे तर्क रखे थे जिसके आधार पर वे ताजमहल को एक मंदिर मान रहे थे। उनके सवाल एकदम स्पष्ट थे।

Taj Mahal controversy : पीएन ओक के सवाल

1. ताजमहल संगमरमर की जाली में 108 कलश क्यों बने थे?

2. मकबरे में जूते-चप्पल उतारने की मान्यता नहीं लेकिन संगमरमर की सीढ़ियों पर क्यों?

3. 'ताज' और 'महल' संस्कृत शब्द, मकबरे को फिर संस्कृत नाम कैसे दिया गया?

ओक के दावों को न तो सरकार ने न हीं कोर्ट ने कभी माना

पीएन ओक ने अपनी किताब और कुछ तथ्यों के आधार पर दो बातों पर जोर दिया था। पहला तो यह कि ताजमहल असल में तेजोमहालय था और दूसरा ये कि वहां पर एक शिव मंदिर था लेकिन उनके दावों को अदालत से कभी मान्यता नहीं मिली। 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएन ओक की उस मांग को खारिज कर दिया था जहां पर वे ताजमहल को एक हिंदू मंदिर घोषित करना चाहते थे।

विवाद अब किताबों तक सीमित नहीं

ताजमहल ( Taj Mahal controversy ) को लेकर वर्षों से जारी विवाद अब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रह गया है। इन्हीं किताबों के आधार पर कोर्ट में केस लड़े जा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला 2015 में भी सामने आया था जब 6 वकीलों ने आगरा कोर्ट में एक याचिका डाल अपील की थी कि उन्हें ताजमहल में दर्शन करने दिया जाए, पूजा की अनुमति मिले और वहां हो रही मुस्लिमों की नमाज पर रोक लगे। इन वकीलों का तर्क था कि ताजमहल असल में तेजोमहालय है और शाहजहां ने इसे राजा जय सिंह से हड़प लिया था।

ताजमहल मकबरा है, मंदिर नहीं

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में केंद्र ने ही कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर इन तमाम दावों को मनगढ़ंत और स्वयं निर्मित बता दिया था। उनकी नजरों में ऐसा कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास था। तब सरकार ने भी कोर्ट में ये माना था कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने भी आगरा कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था। साफ है कि ताजमहल एक मकबरा है, मंदिर नहीं।

Taj Mahal controversy : बता दें कि पिछले दिनों के इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसके बंद कमरों को खुलवाने के लिए याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि कोर्ट भारतीय पुरातत्व विभाग को बंद दरवाजे खोलने के आदेश दे। इसके पीछे की जो मनसा बताई जा रही है वों यें पता लगाने को लेकर है कि क्या वाकई ताज के बंद पड़े कमरों में मूर्तियां मौजूद है।

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