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जो सरकार अपने विधायक और माननीयों को भी ना बचा सके उससे जनता को बिल्कुल उम्मीद नहीं रखनी चाहिए
जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी में नवाबगंज से विधायक केसर सिंह की कल बुधवार को कोरोना से मौत हो गई। उनका निधन नोएडा के एक अस्पताल में हुआ। भाजपा विधायक की पिछले एक माह से तबीयत खराब चल रही थी। बरेली के नवाबगंज से विधायक केसर सिंह 10 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए थे। उनका शुरूआती इलाज बरेली के भोजीपुरा स्थित श्रीराममूर्ती स्मारक अस्पताल में चला। जहां 18 अप्रैल को उन्हेने केंद्रीय स्वास्थ मंत्री को इलाज के लिए पत्र भी लिखा था।
अपने आधिकारिक लेटर पैड से केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री डा. हर्षवर्धन को लिखे पत्र में विधायक केसर सिंह ने गंगवार ने अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सकों की जांच का हवाला देतो हुए लिखा था कि उन्हें गहन चिकित्सा व प्लाज्मा थेरेपी की सलाह दी गई है। उन्होने स्वास्थ मंत्री से अनुरोध करते हुए लिखा है कि उन्हें तत्काल दिल्ली के मैक्स अस्पताल में एक बेड दिलवाने सहित उचित इलाज के लिए सहायता करें। विधायक द्वारा लिखे पत्र पर उनकी ही पार्टी के मंत्री ने ध्यान नहीं दिया जिसके बाद उनकी मौत हो गई।
18 अप्रैल को केसर सिंह की हालत बिगड़ने पर उनके बेटे विशाल गंगवार ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी, कि उनके पापा को बेहतर इलाज नहीं मिल रहा है। विधायक केसर सिंह के बेटे विशाल ने प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन्हें बरेली से 19 अप्रैल को नोएडा के एक अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां उनका इलाज चल रहा था।
कल की बुधवार 28 अप्रैल की दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। विधायक के बड़े बेटे मुनेंद्र की भी 2 साल पहले बीमारी से मौत हो चुकी है। उनका छोटा बेटा विशाल गंगवार पिता के साथ था। उनके परिवार में पत्नी सहित दो बेटियां और एक बेटा है। भाजपा विधायक केसर सिंह बहुजन समाज पार्टी से एमएलसी रहे हैं। इसके अलावा उनके भाई की पत्नी उषा गंगवार जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं। पहली बार भाजपा जॉइन करने के बाद उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा और नवाबगंज से भारी मतों से विजयी भी हुए थे।
विधायक केसर सिंह की मौत से भले ही जनता में शोक और आक्रोश है लेकिन यहां एक बड़ा सवाल है कि जब विधायक ने केंद्रीय स्वास्थ मंत्री डा. हर्षवर्धन को पत्र लिखकर इलाज दिलाए जाने की मांग की थी तब उचित समय उन्हें इलाज मुहैया क्यों नहीं करवाया जा सका। यो पूरे तौर पर सिस्टम और राज्य सरकार की बड़ी खामियों में से एक है। जब माननीय ही काल के गाल में जा रहे हैं तो आम जनता किस भरोसे अस्पतालों में दम तोड़ रही है, समझा जा सकता है।