Uttarakhand High Court के फैसले से इनकी नौकरी पर लटकी खतरे की तलवार
(Uttarakhand High Court के फैसले से इनकी नौकरी पर लटकी खतरे की तलवार)
Uttarakhand High Court : राज्य सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों (Uttarakhand Rajya Andolankari) को सरकारी नौकरी में दिए गए विशेष आरक्षण से जुड़े एक मामले का हाईकोर्ट (Nainital High Court) से निस्तारण होने के बाद राज्य आंदोलनकारियों को मिली सात सौ से अधिक नौकरियों पर खतरे की तलवार लटकने लगी है। यह नौकरियां सरकार ने पारित किए अध्यादेश को बिना राज्यपाल की मंजूरी के ही दे डाली थी। हाईकोर्ट इन नौकरियों को पहले ही अवैध ठहरा चुका था। लेकिन सरकार ने एक बार फिर सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण के तहत मिली नौकरी को बरकरार रखने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था। इस प्रार्थना पत्र को भी कोर्ट ने अब खारिज कर दिया है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा (Justice Sanjay Kumar Mishra) व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे (Justice R.C.Khulbe) की खण्डपीठ ने सरकार के प्रार्थना पत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया है कि पूर्व में पारित आदेश को हुए 1403 दिन हो गए। सरकार अब आदेश में संसोधन प्रार्थना पत्र पेश कर रही है। अब इसका कोई आधार नहीं रह गया है। न ही सरकार की ओर से देर से यह प्रार्थना पत्र देने का कोई ठोस कारण दिया गया है। यह प्रार्थना पत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया। जबकि आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था।
मामले के अनुसार उत्तराखण्ड (Uttarakhand) की सरकारी नौकरियों (Govt. Jobs) में राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) दिए जाने के दो शासनादेश एनडी तिवारी (N.D.Tiwari) की सरकार 2004 में लाई थी। पहला शासनादेश लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले पदों के लिए तथा दूसरा लोक सेवा की परिधि के बाहर के पदों हेतु था। शासनादेश जारी होने के बाद राज्य आन्दोलनकारियो को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया गया था। लेकिन 2011 में उच्च न्यायलय ने इस शासनादेश पर रोक लगा दी। बाद में उच्च न्यायलय ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करके 2015 में इस पर फिर से सुनवाई की थी। हाईकोर्ट के दो जजो की खंडपीठ ने आरक्षण मामले में अलग अलग निर्णय दिए थे।
न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया (Justice Sudhanshu Dhuliya) ने अपने निर्णय में कहा कि सरकारी सेवाओं में दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण देना नियम विरुद्ध है। जबकि न्यायमुर्ति यूसी ध्यानी ने अपने निर्णय में आरक्षण को संवैधानिक माना था। इसके बाद फिर यह मामला सुनवाई हेतु दूसरी कोर्ट को भेजा गया। जहां दूसरी पीठ ने इस आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया कि सरकारी सेवा के लिए नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त है। इसलिए आरक्षण दिया जाना असंवैधानिक है।
राज्य सरकार न्यायालय के इस निर्णय पर करीब चार साल तक चुप्पी साधे रही। इसके बाद अचानक से सरकार ने लोक सेवा की परिधि से बाहर वाले शासनादेश में पारित आदेश को संशोधन करने के लिए न्यायालय में यह प्रार्थना पेश किया था। जिसको खण्डपीठ ने खारिज कर दिया। इस प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए राज्य आंदोलनकारी अधिवक्ता रमन साह ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एसएलपी विचाराधीन है।
बता दें कि 2015 में कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया और इस विधेयक को राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिये भेजा परन्तु राजभवन से यह विधेयक वापस नहीं आया था। जबकि सरकार की ओर से अभी तक आयोग की परिधि से बाहर कुल 730 लोगो को नौकरी दी गयी है। जो अब इस निर्णय के बाद खतरे में आ गई है।