Dehradun News: अफसरशाही की हनक के आगे महिला डॉक्टर ने दिया इस्तीफा, इस IAS पर लगे आरोप
Dehradun News: छोटे से राज्य उत्तराखण्ड की नौकरशाही के बड़ी सनक के चर्चे अक्सर होते ही रहते हैं। ऐसा ही एक मामला एक बार फिर सामने आया है जब विभागीय सचिव की हनक के चलते एक महिला डॉक्टर ने इस्तीफा दे दिया। मामला उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून मेडिकल कॉलेज में तैनात एक महिला चिकित्सक का है।
घटनाक्रम के अनुसार देहरादून के मेडिकल कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. निधि उनियाल जनरल मेडिसन पद पर तैनात हैं। गुरुवार को श्रीमती उनियाल को आज स्वास्थ्य सचिव पंकज कुमार पाण्डेय के आवास पर उनकी पत्नी को देखने के लिए भेजा गया था। इस दौरान उनियाल गलती से ब्लड प्रेशर नापने की मशीन अपनी कार में भूल गई। बताया जाता है कि इसी मामूली सी बात को लेकर सचिव की पत्नी ने चिकित्सक के साथ अभद्रता करनी शुरू कर दी। महिला डॉक्टर का कहना है कि सचिव की पत्नी ने इस दौरान उनके साथ न केवल बदसलूकी की बल्कि चिकित्सकों को पेशे को भी भला-बुरा कहा। इस पर डॉ. उनियाल वहां से तत्काल लौट आयी। बाद में इस घटना को तूल देते हुए उल्टे डॉक्टर निधि पर ही नौकरशाह की पत्नी से माफी मांगने का दबाव बनाया गया लेकिन निधि ने माफी मांगने से इनकार कर दिया।
इस घटना के कुछ देर बाद ही शाम के समय आश्चर्यजनक रूप से विभाग की ओर से डॉ. उनियाल का अचानक सोबनसिंह जीना राजकीय आयुर्विज्ञान व शोध संस्थान अल्मोड़ा के लिए तबादला किये जाने का आदेश जारी कर दिया गया। लेकिन डॉक्टर निधि ने इस तबादले का विरोध करते हुए इसे अपना उत्पीड़न बताते हुए नौकरी से ही त्यागपत्र दे दिया। डॉ. उनियाल ने पूरे घटनाक्रम से विभाग को अवगत कराते हुए यह इस्तीफा देते हुए इसकी जानकारी विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री को भी दे दी है।
गुलामी की परम्परा है यह:- मनोज
इस मामले में प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज शर्मा ने कहा कि गुलामों की तरह नेताओं व अधिकारियों के घर डॉक्टर्स को भेजना गलत परम्परा है। डॉक्टर्स साथ दे तो वह प्रथा को खत्म करवाने के लिए आवाज उठाएंगे।
भाकपा माले के गढ़वाल प्रभारी इन्द्रेश मैखुरी ने इस मामले में कहा कि अस्पताल में मरीजों का इलाज छोड़ कर, अपनी पत्नी के इलाज के लिए डॉक्टर को भेजना स्वास्थ्य सचिव की पहली गलती है। घटनाक्रम के ब्यौरे से साफ है कि स्वास्थ्य सचिव की पत्नी, ऐसे किसी गंभीर रोग से ग्रसित नहीं हैं कि वह अस्पताल भी न आ सकें। अफसर और उनके परिजन कोई राजा या सामंत नहीं हैं। ना ही डाक्टर समेत बाकी सरकारी कर्मचारी, अफसरों के जरखरीद गुलाम हैं। जिन्हें मात्र इसलिए प्रताड़ित किया जाये कि उनसे अफसरों के परिजनों की शान में गुस्ताख़ी हो गयी है।
मैखुरी ने कहा कि पहले ही सरकारी डाक्टरों की कमी से जूझ रहा उत्तराखंड, अफ़सरी सनक के लिए डॉक्टरों को खोना गवारा नहीं कर सकता। इस अफ़सरी सनक और हनक पर मुख्यमंत्री को लगाम लगानी चाहिए।
क्या कहता है प्रोटोकॉल
प्रोटोकॉल का अनुसार सरकारी चिकित्सक को केवल मुख्यमंत्री अथवा राज्यपाल के आवास पर ही उपचार के लिए बुलाया जा सकता है। किसी भी अन्य सरकारी पदासीन व्यक्ति के निवास पर सामान्य परिस्थिति में (खास तौर पर ब्लड प्रेशर जैसे मामूली प्रकरण) चिकित्सक को नहीं बुलाया जा सकता। इससे पूर्व के त्रिवेन्द्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत आदि भी मुख्यमंत्री पद पर रहने के दौरान बीमार होने की दशा में खुद ही चिकित्सालय जाते रहे हैं।