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Uttarakhand election 2022: भाजपा के लिए इस बार सीटों के नुकसान के साथ सत्ता में वापसी की है संभावनाएं

Janjwar Desk
20 Jan 2022 9:36 AM GMT
Uttarakhand election 2022: भाजपा के लिए इस बार सीटों के नुकसान के साथ सत्ता में वापसी की है संभावनाएं
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Uttarakhand election 2022: भाजपा के लिए इस बार सीटों के नुकसान के साथ सत्ता में वापसी की है संभावनाएं

Uttarakhand election 2022: उत्तराखण्ड का राजनैतिक परिदृश्य इस बार अलग सा है। इस बार का चुनाव पहले के चुनावों के मुकाबले इस मायने में अलग है कि हर चुनाव में सत्ता के प्रति दिखाई देने वाला व्यापक असंतोष इस बार नदारद है।

उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव पर एनडीटीवी के पत्रकार दिनेश मानसेरा की टिपण्णी

Uttarakhand election 2022: उत्तराखण्ड का राजनैतिक परिदृश्य इस बार अलग सा है। इस बार का चुनाव पहले के चुनावों के मुकाबले इस मायने में अलग है कि हर चुनाव में सत्ता के प्रति दिखाई देने वाला व्यापक असंतोष इस बार नदारद है। सरकार के काम-काज से यूँ तो वैसे भी सब संतुष्ट नहीं होते। लेकिन मोटा-मोटी इस सरकार के काम से अधिकांश लोग संतुष्ट हैं। चुनाव में कुछ मामलों में भारतीय जनता पार्टी को घेरा जा सकता था। लेकिन खुद विपक्ष के पास न तो मुद्दों लायक समझ है और न ही सामर्थ्य। भाजपा की लकीर छोटी हो सकती है लेकिन विपक्ष भी उसके मुकाबले कोई बड़ी लकीर खींचने में सक्षम नहीं है। विपक्ष केवल विरोध की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए ही विरोध कर रहा है।

पिछले चुनाव में भाजपा को 70 में से 57 सीटें हासिल हुई थीं। इतना बड़ा मेंडेट राज्य में पहली बार किसी दल को मिला था। विकास में डबल इंजन की भूमिका व मोदी जी के करिश्में का इसमें बड़ा हाथ था। लेकिन दुर्भाग्य से सरकार का आधे से अधिक कार्यकाल दो मामलों में सिमटता रह गया। आपदा के बाद राज्य को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने का अहम टास्क सरकार के कंधों पर था। सरकार इस दिशा में काम कर ही रही थी कि एक नई मुसीबत सरकार के सामने विश्व्यापी कोरोना महामारी के सामने आ खड़ी हुई। कोविड महामारी ने विकास संहित तमाम मुद्दों को नेपथ्य में धकेल दिया। महामारी में लोगों का जीवन बचाना ही सरकार का मुख्य कार्यभार रहा। महामारी के चलते देश की ही तरह प्रदेश में भी बहुत कुछ प्रभावित हुआ। लेकिन इतने के बाद भी लोगों का विश्वास सरकार पर बने रहा, यह सरकार की उपलब्धि रही। वर्तमान में अलग-अलग वजहों से सरकार से लोगों की छिटपुट नाराजगी हो सकती है। लेकिन यह नाराजगी कोई बहुत बड़ा उलट-फेर नहीं कर पायेगी। हाँ, इतना जरूर है कि बीते चुनाव जैसी सफलता भाजपा भले ही न दोहरा सके। लेकिन बहुमत से कुछ अधिक सीटें भाजपा को तब भी मिलने की उम्मीद है।


दल-बदल का नुकसान

विधानसभा चुनाव से पहले दिग्गज दलित नेता यशपाल आर्य सहित हरक सिंह रावत तक के पाला बदलने से माहौल कांग्रेस के पक्ष में नहीं बना है। जैसी लड़ाई भाजपा में देखने को मिल रही है, ऐसा कमोबेश हर लीडिंग दल में चलता रहता है। इक्का-दुक्का लोगों के शिफ्ट होने से कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ने जा रहा है। इससे कांग्रेस थोड़ा मजबूत स्थिति में तो आ सकती है। लेकिन मैदान में बिल्कुल ही धराशायी पड़ी कांग्रेस इस ताक़त के बल पर सत्ता में आ जायेगी, ऐसा सोचना अतिशयोक्ति होगी।

आम आदमी पार्टी या अन्य दलों का प्रभाव

उत्तराखण्ड प्रदेश शुरू से ही राष्ट्रवादी विचार के साथ रहने वाला राज्य है। राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त यहां किसी भी क्षेत्रीय दल का कोई प्रभावशाली आधार नहीं रहा। बहुजन समाज पार्टी और उत्तराखण्ड क्रांति दल जैसे क्षेत्रीय दल चुनाव दर चुनाव इतने कमजोर हो चुके हैं कि इनकी कोई प्रासंगिकता प्रदेशव्यापी नही बची है। समाजवादी पार्टी की तो प्रदेश में जड़ भी नहीं जम सकी है। अलबत्ता आम आदमी पार्टी जरूर दिल्ली मॉडल के कारण चर्चाओं के केंद्र में है। लेकिन उत्तराखण्ड की भौगौलिक सांस्कृतिक परिस्थितियां आम आदमी पार्टी के अनुकूल नहीं है। कैडर विहीन पार्टी आप प्रदेश की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाएगी, यह सोचने में अच्छा भले लगे, मुमकिन दूर-दूर तक नहीं है। कुछ इक्का-दुक्का सीटों पर इसका प्रदर्शन अच्छा हो सकता है, लेकिन समीकरण फिलहाल इसके पक्ष में नहीं है।

कोविड के कारण थमे प्रचार से भी भाजपा लाभ में

कोविड महामारी के कारण चुनाव आयोग द्वारा बड़ी रैलियों व जनसभाओं पर रोक लगाना भी एक तरह से भाजपा के पक्ष में ही जाता दिखाई दे रहा है। विपक्ष राज्य सरकार पर इनके माध्यम से हमले कर भाजपा को सवालों के घेरे में रखकर अपने पक्ष में कुछ माहौल बनाता, अब यह भी मुमकिन नही रहा। ऐसे में बिना प्रचार का चुनाव का सारा दारोमदार पार्टियों के कार्यकर्ताओं के कंधे पर ही आ टिका है। बताने वाली बात नहीं है कि कार्यकर्ताओं के मामले में सबसे रिच पार्टी ही भाजपा है। दूसरे दलों के पास जहां जमीनी स्तर पर निष्ठावान कार्यकर्ताओं का अभाव है। वहीं भाजपा बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं के मामले बाकी अन्य दलों से कोसो आगे है।

हालांकि अभी भाजपा-कांग्रेस जैसे दलों ने अपने टिकट वितरण नहीं किये हैं। टिकट वितरण के बाद चुनाव मैदान में आने वाले प्रत्याशियों के आकलन कर ही भविष्य की राजनैतिक तस्वीर कुछ हद तक साफ होगी। लेकिन टिकट वितरण से पहले की स्थिति में अगर इस चुनाव को इसके विभिन्न आयाम के नजरिये से देखा जाए तो ओवरऑल राज्य में नया राजनैतिक इतिहास लिखते भाजपा सत्ता में पुनः वापसी करती हुई दिख रही है। सत्ता विरोधी रुझान का असर इतना जरूर रहने की संभावना है कि भाजपा पिछले चुनाव का प्रदर्शन दोहरा नहीं पाएगी। इस चुनाव में बहुमत या बहुमत से कुछ ही अधिक (35 से 40 सीटों के बीच) सीटों पर ही भाजपा के सिमटने की उम्मीद है।

(पत्रकार दिनेश मानसेरा उत्तराखण्ड में लम्बे समय से NDTV के लिए काम कर रहे हैं)

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