जासूसी कांड की आंच में झुलसती पार्टी के PM क्या स्पाईवेयर से पर्सनली ले रहे थे फायदा, अगर नहीं तो जांच कराएं
जासूसी जैसे कांड के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आरोप झेल रहे पीएम को जांच करवानी चाहिए.
जनज्वार ब्यूरो। पेगासस जासूसी मामले में फ्रांसीसी अखबार ला मोंड ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी जब जुलाई 2017 में इजरायल गये थे, तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बेंजामिन नेतान्याहू से उनकी लंबी मुलाकात हुई थी। इसके बाद पेगासस स्पाईवेयर का भारत में इस्तेमाल शुरू हुआ, जो आतंकवाद और अपराध से लड़ने के लिए 70 लाख डॉलर में खरीदा गया था। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह कहा है कि दुनिया के 45 से ज़्यादा देशों में इसका इस्तेमाल होता है, फिर भारत पर ही निशाना क्यों?
जैसा खुलासा हो रहा है, सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल सिर्फ अपने ही लोगों पर नहीं, बल्कि चीन, नेपाल, पाकिस्तान, ब्रिटेन के उच्चायोगों और अमेरिका की CDC के दो कर्मचारियों की जासूसी तक में किया है। द हिन्दू अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने कई राजनयिकों और विदेश के एनजीओ के कर्मचारियों की भी जासूसी की है।
पेगासस एक व्यावसायिक कम्पनी है जो पेगासस स्पाइवेयर बना कर उसे सरकारों को बेचती है। इसकी कुछ शर्तें होती हैं और कुछ प्रतिबंध भी। जासूसी करने की यह तकनीक इतनी महंगी है कि इसे सरकारें ही खरीद सकती हैं। यह स्पाइवेयर आतंकी घटनाओं को रोकने के लिये आतंकी समूहों की निगरानी के लिये बनाया गया है।
सरकार ने यदि यह स्पाइवेयर खरीदा है तो उसे इसका इस्तेमाल आतंकी संगठनों की गतिविधियों की निगरानी के लिये करना चाहिए था। पर इस खुलासे में निगरानी में रखे गए नाम, जो विपक्षी नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों, और अन्य लोगों के हैं उसे सरकार को स्पष्ट करना चाहिए।
अगर सरकार ने यह स्पाइवेयर नहीं खरीदा है और न ही उसने निगरानी की है तो, फिर इन लोगों की निगरानी किसने की है और किन उद्देश्य से की है, यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर किसी विदेशी एजेंसी ने यह निगरानी की है तो, यह मामला और भी संवेदनशील और चिंतित करने वाला है। सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि,
● उसने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा या नहीं खरीदा।
● यदि खरीदा है तो क्या इस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सुप्रीम कोर्ट के जजों और कर्मचारियों की निगरानी की गयी है ?
● यदि निगरानी की गयी है तो क्या सरकार के पास उनके निगरानी के पर्याप्त काऱण थे ?
● यदि सरकार ने उनकी निगरानी नहीं की है तो फिर उनकी निगरानी किसने की है ?
● यदि यह खुलासे किसी षडयंत्र के अंतर्गत सरकार को अस्थिर करने के लिये, जैसा कि सरकार कह रही है, किये जा रहे हैं, तो सरकार जो इसका मजबूती से प्रतिवाद करना चाहिए।
पेगासस का लाइसेंस अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत मिलता है और इसका इस्तेमाल आतंकवाद से लड़ने के लिये आतंकी संगठन की खुफिया जानकारियों पर नज़र रख कर उनका संजाल तोड़ने के लिये किया जाता है। पर मोदी सरकार ने इन नियमों के विरुद्ध जाकर, पत्रकारो, विपक्ष के नेताओ और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपने निहित राजनीतिक उद्देश्यों के लिये किया है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की भी निगरानी की बात सामने आ रही है।
नियम और शर्तों के उल्लंघन पर पेगासस की कंपनी एनएएसओ भारत सरकार से स्पाईवेयर का लाइसेंस रद्द भी कर सकती है। क्योंकि, राजनयिकों और उच्चायोगों की जासूसी अंतरराष्ट्रीय परम्पराओ का उल्लंघन है औऱ एक अपराध भी है । अब वैश्विक बिरादरी, इस खुलासे पर सरकारों के खिलाफ क्या कार्यवाही करती है, यह तो समय आने पर ही पता चलेगा। फ्रांस की सरकार ने इस खुलासे पर अपने यहां जांच बिठा दिया है।
सरकार फोन टेप करती हैं, उन्हें सुनती हैं, सर्विलांस पर भी रखती है, फिजिकली भी जासूसी कराती हैं, यह सब सरकार के काम के अंग है। इसीलिए इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, अभिसूचना विभाग जैसे खुफिया संगठन बनाये गए हैं और इनको अच्छा खासा धन भी सीक्रेट मनी के नाम पर मिलता है।
पर यह जासूसी, या अभिसूचना संकलन, किसी देशविरोधी या आपराधिक गतिविधियों की सूचना पर होती है और यह सरकार के ही बनाये नियमो के अंतर्गत होती है। राज्य हित के लिये की गयी निगरानी और सत्ता हित के लिये किये गए निगरानी में अंतर है। इस अंतर के ही परिपेक्ष्य में सरकार को अपनी बात देश के सामने स्पष्टता से रखनी होगी।
पेगासस जासूसी यदि सरकार ने अपनी जानकारी में देशविरोधी गतिविधियों और आपराधिक कृत्यों के खुलासे के उद्देश्य से किया है तो, उसे यह बात संसद में स्वीकार करनी चाहिए। यदि यह जासूसी, सत्ता बनाये रखने, ब्लैकमेलिंग और डराने के उद्देश्य से की गयी है तो यह एक अपराध है। सरकार को संयुक्त संसदीय समिति गठित कर के इस प्रकरण की जांच करा लेनी चाहिए। जांच से भागने पर कदाचार का सन्देह और अधिक मजबूत होगा।
सबसे हैरानी की बात है सुप्रीम कोर्ट के जजों की निगरानी। इसका क्या उद्देश्य है यह राफेल और जज लोया से जुड़े मुकदमो के दौरान अदालत के फैसले से जाना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के जज और सीजेआई पर महिला उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की क्लर्क और उससे जुड़े कुछ लोगों की जासूसी पर सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर एक न्यायिक जांच अथवा सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में, सीबीआई जांच करानी चाहिए।
डिस्क्लेमर - यह आलेख पूर्व वरिष्ठ IPS विजय शंकर सिंह की एफबी वाल से साभार प्रकाशित किया गया है.