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जनज्वार विशेष

देश की 10 एजेंसियों को हर किसी के कम्प्यूटर में झांकने का अधिकार

Janjwar Team
21 Dec 2018 7:37 PM IST
लैपटॉप-मोबाइल यूज करने वाले हो सकते हैं इस बीमारी के शिकार, कानपुर मेडिकल कॉलेज की रिसर्च से हुआ खुलासा
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क्या तीन राज्यों में पराजय और लोकसभा चुनाव में आसन्न हार से बौखलाकर मोदी सरकार एक-एक घर में जासूसी करने की तैयारी कर रही है...

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। गृह मंत्रालय ने 10 केंद्रीय एजेंसियों, खुफिया ब्यूरो (आईबी), मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को बिना किसी अदालती आदेश के शक की बिना पर ही भारत में मौजूद किसी भी कंप्यूटर के किसी भी डेटा को जांचने का अधिकार दिया है। विरोध करने पर 7 साल की जेल होगी।

इंदिरा गांधी ने 1975 में जब आपातकाल लगाकर लोकनायक जय प्रकाश नारायण सहित विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था तब जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि, लगभग यही स्थिति मोदी सरकार की हो गयी है। क्या तीन राज्यों में पराजय और लोकसभा चुनाव में आसन्न हार से बौखलाकर मोदी सरकार एक-एक घर में जासूसी करने की तैयारी कर रही है? अघोषित आपातकाल तो पहले से ही है अब क्या पुलिसिया राज में देश का हर नागरिक जियेगा।

आखिर क्यों सरकार ने देश की 10 एजेंसियों को हर किसी के कम्प्यूटर में झांकने, उसका डाटा निकालने और अन्य जानकारियां हासिल करने का अधिकार दे दिया है? ऐन लोकसभा चुनाव से पहले इस आदेश से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस आदेश के बाद उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का क्या होगा, जिसमें निजता को नागरिकों का बुनियादी अधिकार करार दिया गया था?

बीते 20 दिसंबर को गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि खुफिया ब्यूरो (आईबी), मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पास देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर की निगरानी करने का अधिकार होगा।

इस आदेश में सभी खुफिया एजेंसियों, राज्यों की पुलिस आदि को अधिकार दे दिए गए हैं कि वे किसी भी कम्प्यूटर की निगरानी कर सकती हैं, किसी भी फोन को टैप कर सकती हैं। यूं भी बीते कई वर्षों से एजेंसियां मनमाने तरीके से इलेक्ट्रानिक जासूसी करती रही हैं। इस सूची से स्पष्ट हो जाता है कि भारत अब एक पुलिस स्टेट यानी ऐसा देश बन गया है जहां तानाशाही का राज और जो पुलिस और अन्य एजेंसियों द्वारा आम नागरिकों की जासूसी कराती है।

आईटी एक्ट, 2000 के 69 (1) के तहत आदेश

गृह मंत्रालय ने आईटी एक्ट, 2000 के 69 (1) के तहत यह आदेश दिया है। इसमें कहा गया है कि भारत की एकता और अखंडता के अलावा देश की रक्षा और शासन व्यवस्था बनाए रखने के लिहाज से जरूरी लगे तो केंद्र सरकार किसी एजेंसी को जांच के लिए आपके कंप्यूटर को एक्सेस करने की इजाजत दे सकती है।

गृह मंत्रालय के जिस आदेश के अनुसार सरकारी एजेंसियों की मांग पर कंप्यूटर में मौजूद डाटा जांच में देने की बात कही गई है, उसमें कंप्यूटर की परिभाषा साफ नहीं की गई है। हालांकि जानकारों के मुताबिक इस कंप्यूटर टर्म का मतलब पर्सनल कंप्यूटर, डेस्कटॉप, लैपटॉप, टैबलेट, स्मार्टफोन और यहां तक कि डाटा स्टोरेज डिवाइस सभी से होगा।

ऐसे में इन सारे ही डिवाइसेज़ में उपलब्ध डेटा को ये एजेंसियां कभी भी जांच के लिए मांग सकती हैं। इसमें डीक्रिप्ट और इन्क्रिप्ट डेटा भी शामिल होगा। इसकी भी जांच की जा सकती है। साथ ही जिस डिवाइस की जांच की जा रही है, उससे कोई भी डाटा जांच चलने तक भेजे जाने से भी रोका जा सकता है।

डाटा की परिभाषा भी नहीं की गई है साफ

इस आदेश में यह भी नहीं साफ है कि कथित डाटा से क्या मतलब है और कौन सा ऐसा डेटा है जो ख़तरे का सबब हो सकता है। हालांकि यह साफ है कि किसी भी यूजर को उसके यूजर डेटा से बिना जरूरी आदेश के नहीं रोका जा सकेगा। यह सेक्शन यह भी कहता है कि ऐसा तभी किया जाएगा अगर राष्ट्रीय संप्रभुता, भारतीय रक्षा, सुरक्षा, विदेशों से दोस्ताना संबंधों या पब्लिक ऑर्डर बिगाड़ने की संभावना हो।

इंटरसेप्ट, मॉनिटर और डीक्रिप्ट

भारत सरकार ने 10 सेंट्रल एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर्स को मॉनिटर और इंटरसेप्ट करने की क्षमता दी है। अब इन एजेंसियों के पास न सिर्फ ईमेल बल्कि आपके कंप्यूटर में रखा हर तरह के डेटा पर नजर हो सकता है। तीन मुख्य बाते हैं – इंटरसेप्ट, मॉनिटर और डीक्रिप्ट। हालांकि ये चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि ऐसा पहले भी देखने को मिला था जब कांग्रेस की सरकार थी। तब सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम नाम की व्यव्स्था थी जो अब भी एक रहस्य की तरह ही है।

इंटरसेप्ट यानी आपके कंप्यूटर तक पहुंचने वाले डेटा को कोई जांच एंजेंसी इंटरसेप्ट करके ये पता लगा सकती है कि क्या बातचीत हो रही है। चाहे बातचीत वीडियो कॉल की शक्ल में हो या ईमेल की तरह मॉनिटरिंग यानी एजेंसी चाहे तो आपके कंप्यूटर तक पहुंच कर इसकी निगरानी कर सकती है। लगातार नजर बनाए रखेगी कि आप अपने कंप्यूटर पर क्या कर रहे हैं।

डीक्रिप्शन यानी अगर कोई कम्यूनिकेशन सिक्योर है या फिर किसी ने अपने डेटा को किसी तरह से सिक्योर करके रखा है तो एजेंसी इसे एन्क्रिप्ट करके इसमें सा सारी जानकारियां इकठ्ठी कर सकती है। कोई जब इंटरनेट खरीदता हैं वो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर उसकी जानकारियां उसकी यूसेज हिस्ट्री सराकारी एजेंसी को दे सकती है। ये इस आदेश में कहा गया है।इसके पीछे सरकार ने नेशनल सिक्योरिटी का हवाला दिया है।

2008 मुंबई अटैक के बाद यूपीए सरकार ने इसकी नींव रखी अमेरिकी एजेंसी एनएसए की निगरानी प्रोजेक्ट प्रिज्म की तरह ही भारत में भी ऐसी ही निगरानी के लिए प्रोजेक्ट बनने की तैयारी शुरू हुई।. नाम रखा गया सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम। इस प्रोजेक्ट को लॉफुल इंटरसेप्शन के लिए प्लान किया गया,जिसके तहत फोन और इंटरनेट को इंटरसेप्ट

किया जा सकता था। इसके लिए सरकारी एजेंसी की मदद ली गई।

सी डॉट और स्टेट टेली कम्यूनिकेशन आर&डी सेंटर ने 2011-12 में दिल्ली में सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम के पायलट प्रोजेक्ट पर काम करने का आदेश दिया था। सीडॉट के रिजल्ट फ्रेमवर्क डॉक्यूमेंट के मुताबिक सीएमएस की लैब टेस्टिंग 2009-10 में ही कर ली गई थी। दिसंबर 2012 में तब के कम्यूनिकेशन और आईटी राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा ने लोकसभा में कहा था, ‘इस सिस्टम का डेवेलपमेंट वर्क मोटे तौर पर पूरा हो चुका है।पायलट प्रोजेक्ट 30 सितंबर 2011 को दिल्ली में पूरा कर लिया गया।

यूपीए सरकार ने 2008 मुंबई अटैक के बाद इंटरनेट स्पेस को सिक्योर करने के लिए इस योजना की तैयारी की थी। ये पूरा प्रोजेक्ट प्रिज्म के तर्ज पर था, जिसे स्नोडेन के खुलासे के बाद अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर बंद करने का ऐलान किया था। प्रिज्म प्रोजेक्ट में भी अमेरिका सहित कुछ दूसरे देशों के सिटिजन की निगरानी की जाती थी।

ऐसा प्रतीत होता है की मोदी सरकार अब यह मान के चल रही है कि उसके खिलाफ पूरे देश में साजिशें चल रही हैं। दरअसल यह सरकार बिना किसी सलाह-मशविरे या विमर्श के फैसले लेती है, जो अक्सर उसके ही खिलाफ चले जाते हैं। नोटबंदी से जासूसी तक के फैसले इसी तरह के हैं।

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