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समाज

लॉकडाउन से हुई पुलिसवालों की अवैध वसूली बंद, अब राहगीरों पर बरस रहे डंडे

Prema Negi
1 April 2020 3:30 AM GMT
लॉकडाउन से हुई पुलिसवालों की अवैध वसूली बंद, अब राहगीरों पर बरस रहे डंडे
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ट्रक ड्राइवर हर साल पुलिस वालों को 48 हजार करोड़ रुपये तक रिश्वत दे देते हैं, जो नीचे से ऊपर तक बंटती है, हाइवे पर स्थित थानों में तैनाती की बोलियाँ लगती हैं...

जेपी सिंह की टिप्पणी

कोरोना वायरस की भयावहता को देखते हुए 22 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन के कारण शहर, कस्बे, गाँव-गिरांव में आम नागरिक अपने-अपने घरों में बंद हैं। इसमें आर्थिक और सामजिक गतिविधियाँ लगभग ठप्प पड़ गयी हैं, वहीं अपराध भी शून्य दिखाई पड़ रहा है।

लॉकडाउन से जहां आम आदमी परेशान है, वहीं सुविधा शुल्क पर जीने के आदी खाकी वर्दी वाले भी हलकान हैं, क्योंकि पुलिस की अवैध वसूली भी लगभग बंद हो गयी है। शराब की दुकानें, गांजा, भंग के ठेके, शहरों में चलने वाले अवैध सट्टे तथा पुलिस संरक्षण में चलने वाले जुएँ के अड्डे बंद हो गये हैं, जिसके कारण पुलिस की एक्जाई वसूली खत्म हो गयी है। एकस्ट्रा कमाई बंद होने का दुष्परिणाम सड़कों पर दिखने वाले राहगीरों को भुगतना पड़ रहा है और अकारण पुलिस के डंडे खाने पड़ रहे हैं।

लॉकडाउन के बाद 26 जनवरी को बिहार पुलिस का घिनौना चेहरा उस समय सामने आया जब उसने अपराधियों जैसा काम किया। पटना पुलिस के तीन जवानों ने मानवता को शर्मसार करते हुए एक कारोबारी द्वारा अवैध वसूली में सफल नहीं होने पर उसे गोली मार दी थी, जिसमें सब्जी कारोबारी गंभीर रूप से घायल हो गया था।

स मामले में सब्जी कारोबारी सोनू साव दियारा ने बताया कि वह 25 मार्च की रात 10 बजे एक जीप से आलू लेकर दानापुर के सब्जी मंडी जा रहा था। मंडी से पहले ही एक स्टैंड के पास उसकी गाड़ी को पुलिस के तीन जवानों ने रोक लिया और उससे अवैध रूप से रुपए मांगे। सोनू ने रुपए देने से साफ मना किया तो जवानों ने उसे धमकाया। इसी बीच पीछे से सामान लिए हुए एक-दो गाड़ी और वहां पहुंची तो पुलिस ने उन लोगों से भी रुपए मांगे।

देश की सड़कों पर रिश्वत का खेल खुलेआम चल रहा है। यह खेल इतना बड़ा है कि इसने कई उद्योगों से होने वाली कमाई को भी पीछे छोड़ रखा है।

क चौंकाने वाले खुलासे में यह बात सामने आई है कि ट्रक ड्राइवर हर साल पुलिस वालों को 48 हजार करोड़ रुपये तक रिश्वत दे देते हैं, जो नीचे से ऊपर तक बंटती है। हाइवे पर स्थित थानों में तैनाती की बोलियाँ लगती हैं।

ड़क सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली एक संस्था सेव लाइफ फाउंडेशन ने देश के 10 बड़े परिवहन व ट्रांजिट केंद्रों पर अध्ययन किया था। जिसके तहत 1217 ट्रक ड्राइवरों और 110 ट्रक मालिकों से बात की गयी थी, जिनके पास कई वाहन हैं। सर्वे में 82 फीसदी ट्रक ड्राइवरों ने माना कि अपनी पिछली यात्रा में उन्होंने सड़क पर किसी न किसी पुलिस के सिपाही या अधिकारी को रिश्वत दी।

सी अध्ययन में यह बात सामने आयी कि हर साल ट्रक वाले ट्रैफिक पुलिस या परिवहन से जुड़े अन्य अधिकारियों को 48 हजार करोड़ रुपये की मोटी रकम रिश्वत के बतौर दे देते हैं। यहां तक कि जागरण कराने वाली पूजा समिति जैसे छोटे-छोटे समूह भी इन्हें नहीं बख्शते।

ये स्थानीय समूह ट्रक वालों को धमकाकर पैसा वसूलते हैं और पैसा नहीं देने पर रास्ता नहीं देते हैं। अनुमानत: पुलिस अपराध, एक्जायी और अन्य माध्यमों से लगभग 50 से 75 हजार करोड़ का सालाना सुविधा शुल्क अलग से वसूलती है। पुलिस महकमा जिलेवार यह बात जानता है कि सबसे कमाई वाला थाना कौन सा है और कहां ईमानदारी से काम होता है। इसी अध्ययन में कई ऐसे पुलिस अधिकारियों के बारे में भी पता चला जो किसी थाने में अपराध के ज्यादा बढने पर तैनाती का रेट बढ़ा देते है।

भारत सरकार के केंद्रीय भूतल परिवहन राज्य मंत्री वीके सिंह ने पिछले दिनों भारत में ट्रक ड्राइवरों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी। 'स्टेटस ऑफ़ ट्रक ड्राइवर इन इंडिया' रिपोर्ट के मुताबिक़ ट्रैफिक और हाईवे पुलिस सबसे ज़्यादा ट्रक ड्राइवरों से वसूली करते हैं। करीब 40 फ़ीसदी मामलों में बिना किसी वजह के भी ये लोग रिश्वत वसूल लेते हैं। सीट बेल्ट नहीं पहनकर गाड़ी चलाने के मामले 13 फ़ीसदी से कम आंके गए हैं। पर्यावरण क्लीयरेंस प्रमाणपत्र के नाम पर वसूली का नया धंधा शुरू हो चुका है।

स रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मौजूदा समय में देशभर में चलने वाले ट्रकों में क़रीब 83 फ़ीसदी ट्रक ड्राइवरों को सड़क पर चलने के दौरान किसी ना किसी को रिश्वत देनी पड़ी है।

सेव लाइफ फाउंडेशन के सर्वे में 82 फीसदी ट्रक ड्राइवरों ने माना कि अपनी पिछली यात्रा में उन्होंने सड़क पर किसी न किसी पुलिस अधिकारी को रिश्वत दी। इसमें चौंकाने वाले तथ्य यह भी सामने आई कि इन्हें 1257 रुपये औसतन रिश्वत देनी पड़ती है। प्रत्येक यात्रा के लिए। दिल्ली के 84 फीसदी ड्राइवरों ने हाईवे पुलिस या ट्रैफिक पुलिस को रिश्वत देने की बात स्वीकारी। 78 प्रतिशत ड्राइवरों ने माना कि लाइसेंस नवीनीकरण के लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ी। लाइसेंस नवीनीकरण के लिए सबसे ज्यादा रिश्वत दिल्ली में ही दी जाती है। यहां एक ड्राइवर को औसतन 2025 रुपये देने पड़ते हैं।

भारत में ट्रक ड्राइवर और भ्रष्टाचार के आपसी रिश्ते पर इससे पहले एक गंभीर अध्ययन क़रीब 15 साल पहले हुआ था। 2005 में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ उस वक्त सड़कों पर दौड़ने वाले ट्रक ड्राइवर साल में 22 हज़ार करोड़ रुपए की रिश्वत देते थे।

मोटे तौर पर उस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि एक कमर्शियल ट्रक के ड्राइवरों को साल भर में क़रीब 80 हज़ार रुपए की रिश्वत देनी पड़ती है। इस दृष्टि से देखें तो बीते 15 सालों में भारतीय सड़कों पर ट्रक ड्राइवरों की ओर से दिए जाने वाला रिश्वत दोगुने से ज़्यादा हो चुका है।

गौरतलब है कि ट्रक ट्रांसपोर्टेशन के कारोबार में ट्रक के पंजीयन, फिटनेस सर्टिफिकेट, परमिट जैसे काग़ज़ बनवाने में भी रिश्वत देना होता है, लेकिन यह रिश्वत ट्रक के मालिकों को चुकानी होती है। जब ट्रक सड़कों पर दौड़ने की स्थिति में आ जाते हैं तो ड्राइवर और हेल्परों का सामना मोटे तौर पर परिवहन अधिकारी, ट्रैफिक/हाइवे पुलिस, चेक पोस्ट, आयकर अधिकारी और स्थानीय रंगदारों से होता है।

स्टेटस ऑफ़ ट्रक ड्राइवर इन इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रत्येक 10 में से 9 ट्रक ड्राइवर को सड़कों पर परिवहन अधिकारी और ट्रैफिक/हाइवे पुलिस का सामना करना पड़ता है और उन्हें रिश्वत देनी होती है। इन अधिकारियों के पास कई प्रावधानों में ट्रक ड्रावरों के चालान काटने का सुविधा होती है, इससे बचने के लिए ट्रक ड्राइवर पैसा देना ही बेहतर समझते हैं।

रअसल कई बार तो बिना किसी भी वजह भी ट्रक ड्राइवरों का चालान कट जाता है, इससे बचने के लिए रिश्वत ही सही लगता है। एक बार गाड़ी किसी प्रमाणपत्र के अभाव में पकड़ी गई तो हज़ारों रुपए का ख़र्चा बैठता है, कई बार लाख के पार पहुंच जाता है। ऐसे में कुछ सौ-हज़ार देकर ये ट्रक ड्राइवर अपना काम करवा लेते हैं।

ई बार ऐसी खबरें भी आती हैं कि ट्रासपोर्टरों ने कई तरह के टैक्स और सड़कों पर होने वाली अवैध वसूली के खिलाफ हाइवे जाम कर दिया है।ट्रांसपोर्टर, आरटीओ और पुलिस पर अवैध वसूली के आरोप लगाते हैं। आरोप है कि जितने भी राज्यों के बार्डर हैं, उन सभी पर अवैध वसूली होती है। पैसे न देने पर बहाना बनाकर चालान काटा जाता है।

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