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संस्कृति

'देश तोड़ने वाले नायक और निर्माताओं का मिटाया जा रहा नामोनिशान'

Janjwar Team
1 Nov 2017 6:57 PM GMT
देश तोड़ने वाले नायक और निर्माताओं का मिटाया जा रहा नामोनिशान
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उर्दू वालों ने मौलाना हाली को सही तरीके से नहीं पढ़ा और न ही माना है। यदि वो मुसद्दस हाली को ही पढ़कर आत्मसात कर लेते तो मुसलमानों की ये हालात न होती...

दिल्ली। 'भारत में उन लोगों के नाम-ओ-निशान मिटाने की कोशिश की जा रही है जिन्होंने देश निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और जो देश के वास्तुकार थे।' यह बात हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक अशोक वाजपेयी ने 'अल्ताफ़ हुसैन हाली : एक कवि और एक सुधारक' के विषय पर 31 अक्तूबर, 2017 को दिल्ली में आयोजित सेमिनार का उद्घाटन करते हुए कही।

रजा फाउंडेशन और हाली पानीपती ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली जैसे महान कवि, समाज सुधारक और देश के वास्तुकार को हम भूलते जा रहे हैं। देश में जान बूझकर उनके नामोनिशान मिटाने के प्रयास किए जा रहे हैं और जो लोग देश को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें नायक के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही हैं। हमारा प्रयास इसी भूलते जाने के खिलाफ हैं और यह प्रयास जारी रहेगा।

हाली एसे कवि थे जिन्होंने उर्दू शायरी का दायरा बड़ा किया, और महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों पर ध्यान दिया। उर्दू आलोचना के संबंध में उन्होंने कहा कि हाली ने मुकदमा और शेर-ओ-शायरी तनसनीफ करके उर्दू में आलोचना की नींव रखी और उर्दू शायरी को निर्देशित किया। उन्होंने हाली के हवाले से कहा कि बात तो साझी विरासत और गंगा जमुनी तहज़ीब के संबंध में की जाती है, लेकिन कोई भी ऐसा नहीं करता है।

इस अवसर पर बोलते हुए उर्दू के मशहूर लेखक और आलोचक प्रोफ़ेसर शमीम हनफ़ी ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भुलाये जाने की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे शब्दकोश में एक शब्द इतिहास है जिसे बदलने की बात की जा रही है और रूपांतरण भी जा रहा है, लेकिन यह बात रखनी चाहिए कि इतिहास केवल इतिहास होता है जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता और वो सैकड़ों स्थानों पर सुरक्षित रहता है।

हाली का समय कठिन था, जहां एक तरफ़ वो ग़ालिब के शिष्य थे दूसरी तरफ़ उन्होंने ग़ालिब का अंदाज़ नहीं अपनाया और अपनी शायरी में उनकी नक़ल नहीं की। मौलाना हाली जहँ एक तरफ़ बड़े कवि थे वहीं एक समाज सुधारक भी थे जिस कारण एक तबका उन्हें पसंद नहीं करता था।वह हमेशा स्पष्ट और समाज सुधार की आवश्यकताओं पर बल देने वाली कविताओं के कारण वो कई लोगों के निशाने पर थे।

कनाडा से आए प्रसिद्ध उर्दू कवि तक़ी आब्दी ने कहा कि हाली एक ऐसे महान कवि हैं जिन्होंने सभी तीन भाषाओं, उर्दू, फारसी और अरबी में कवितायें लिखी हैं और फिर उस समय मुस्लिमों की हालत, और स्थिति की पहचान की।

वह कवि होने के साथ महिला अधिकारों और महिला शिक्षा के पक्षधर भी थे। उन्होंने अपने घर में लड़कियों का स्कूल और अलीगढ़ में लड़कियों का छात्रावास स्थापित किया था।

प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु खरे ने इस अवसर पर कहा कि मुसलमानों ने अल्ताफ हुसैन से नहीं सीखा। केवल वो लोग उन्हें अपना लेते थे जो अपनी परिस्थितियों में सुधार कर सकते थे। हाली ने एक नया भारतीय काव्य शास्त्र प्रस्तावित और परिभाषित किया जोकि उनके समकालीनों में शायद ही किसी भी भारतीय भाषा में ऐसी पहल रखने वाला कोई दूसरा था

अंग्रेजी के प्रोफेसर हरीश त्रिवेदी ने मुसलमानों के लिए ऐसी महत्वपूर्ण हस्ती को भूलने की परंपरा की कड़ी आलोचना करते हुए दावा किया कि अगर हाली जीवित हैं तो हिंदी वालों का धन्यवाद, क्योंकि उर्दू वाले तो उन्हें भूल चुके हैं। अगर उन्होंने ब्यादगार ग़ालिब न लिखी होती तो लोग ग़ालिब को इस तरह समझ नहीं पाते।

कार्यक्रम में मौजूद योजना आयोग के पूर्व सदस्य हाली के खानवादे से संबंध रखने वाली सैयदा हमीद यह पूछे जाने पर उर्दू वाले मौलाना हाली क्यों भूलते जा रहे हैं, ने कहा कि उर्दू वालों ने मौलाना हाली को सही तरीके से नहीं पढ़ा और न ही माना है। यदि वो मुसद्दस हाली को ही पढ़कर आत्मसात कर लेते तो मुसलमानों की ये हालात न होती।

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