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जनज्वार विशेष

मोदीराज में सफाई का मतलब शौचालय, फिर भी 23 प्रतिशत लोग करते खुले में शौच

Prema Negi
20 Sep 2019 2:53 PM GMT
मोदीराज में सफाई का मतलब शौचालय, फिर भी 23 प्रतिशत लोग करते खुले में शौच
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सरकार दावा करती है कि बिहार का 92 प्रतिशत हिस्सा खुले में शौच मुक्त है, मगर रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 44 प्रतिशत जनता खुले में जाती है शौच करने...

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

र्ष 2014 के पहले 'सफाई' या 'स्वच्छता' एक बहुत व्यापक अर्थ वाला शब्द होता था, पर इसके बाद सफाई का मतलब सरकारी तौर पर केवल शौचालय ही रह गया है। यह बात दूसरी है कि टीवी चैनलों के लिए इसका मतलब किसी नेता जी के हाथ में झाडू है।

न सबके बीच देश हरेक स्तर पर और गंदा होता जा रहा है, कचरे के ढेर तो खड़े हो ही रहे हैं, सामाजिक तौर पर इतना गंदा देश तो इतिहास के किसी भी चरण में नहीं रहा है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इन्हीं शौचालयों के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तरफ से 24 सितम्बर को न्यूयॉर्क में ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड दिया जाने वाला है। दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन इस पुरस्कार का विरोध कर रहे हैं, पर गेट्स फाउंडेशन का फैसला अटल है।

रकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों के भीतर देश में 9 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं, देश के कुल 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 खुले में शौचमुक्त घोषित किये जा चुके हैं। देश के कुल 5.5 लाख गाँव खुले में शौचमुक्त हो चुके हैं।

ब देश के 98.6 प्रतिशत घरों में शौचालय बन चुके हैं, ऐसा सरकार कहती है। इसके बाद अनेक अध्ययनों से यह सामने आया कि भारी संख्या में शौचालयों में खामियाँ हैं, शौचालय में इस्तेमाल के लिए पानी नहीं है या फिर शौचालय बनाने के बाद भी लोग खुले में शौच कर रहे हैं। देश में जितने शौचालय बने हैं, उनमें से महज 42 प्रतिशत में दो पिट बने हैं। इसका मतलब है कि शेष शौचालयों में जब कुछ समय बाद पिट भर चुका होगा, तब इसे इस्तेमाल करना कठिन होगा।

रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कोम्पसिओनेट इकोनॉमिक्स नामक संस्था द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार शौचालय होने के बाद भी देश की 23 प्रतिशत जनता खुले में शौच जाती है। सरकारी दावों के अनुसार मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य हैं जो पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त हैं। बिहार का 92 प्रतिशत हिस्सा खुले में शौच मुक्त है। पर इस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार इन चारों राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 44 प्रतिशत जनता खुले में शौच जाती है।

हरी विकास मंत्रालय द्वारा 2014 में प्रकाशित गाइडलाइंस फॉर स्वच्छ भारत मिशन के अनुसार 2011 की जनगणना के अनुसार शहरी आबादी 37.7 करोड़ थी जो 2031 तक बढ़कर 60 करोड़ तक पहुँच जायेगी। इस आबादी में से 80 लाख लोग खुले में शौच कर रहे थे। पानी के गन्दगी से स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ जाती हैं और शहरों से अनुपचारित मलजल ही देश में जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। पर शौचालयों के लिए जो दिशा निर्देश हैं, वह पानी को और प्रदूषित करने के लिए पर्याप्त हैं।

दिशा-निर्देश के अनुसार यदि शौचालय का निर्माण उपलब्ध सीवरेज प्रणाली के 30 मीटर के दायरे में है, तब शौचालय को सीधा इस सीवरेज प्रणाली से जोड़ना है और यदि 30 मीटर तक कोई ऐसी प्रणाली नहीं उपलब्ध है तब शौचालय के साथ सेप्टिक टैंक भी बनाना है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति हम कितने लापरवाह हैं, यह दिशा—निर्देश इसका एक अच्छा उदाहरण है।

ब सरकार को यह मालूम है कि अनुपचारित मलजल, जो सीवरेज प्रणाली के माध्यम से नदियों में मिलता है, और यही इन नदियों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण भी है तब भी नए शौचालय इसी तंत्र से जोड़े जा रहे हैं। इससे तो सीवरेज तंत्र का प्रदूषण और बढेगा और हमारी नदियों का भी।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में ही हाथों द्वारा सीवर की सफाई और मल उठाने पर सख्त टिप्पणी की है। ऐसा दुनिया के किसी देश में नहीं होता, यह अमानवीय है और इसे लोगों को गैस चैम्बर में भेजे जाने जैसा बताया गया। इसी वर्ष जनवरी से जून के बीच ही सीवर साफ़ करने के दौरान 50 से अधिक लोग दम घुटने से मर चुके हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार देश के 14 राज्यों में 40,000 से अधिक मैला उठाने वाले लोग हैं।

गेट्स फाउंडेशन से इतनी तो उम्मीद थी कि पुरस्कार की घोषणा के पहले कम से कम सरकारी दावों को ही अपने स्तर पर परख लेता, पर ऐसा कुछ नहीं किया गया। अब तो यही कहा जा सकता है कि स्वच्छता और शौचालय एक नए पर्यायवाची शब्द हैं। सबके घर में शौचालय बन गए, देश स्वच्छ हो गया।

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