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राजनीति

अमित शाह ने बोला था झूठ? सरकार ने कहा कि धर्म के आधार पर नागरिकता का उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं

Ragib Asim
5 March 2020 10:55 AM GMT
अमित शाह ने बोला था झूठ? सरकार ने कहा कि धर्म के आधार पर नागरिकता का उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं
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अमित शाह ने पिछले दिनों ये दावा किया था कि 2014 से अब तक भारत ने 566 मुस्लिमों को नागरिकता दी है, लेकिन संसद में लिखित सवाल के जवाब में बुधवार को गृह मंत्रालय ने कहा कि सरकार के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड ही नहीं है...

जनज्वार। नागरिकता संशोधन क़ानून पर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने बताया है कि जिन लोगों को देश में नागरिकता दी गई है उनके धर्म का कोई आंकड़ा तैयार नहीं किया गया है. केंद्र सरकार ने संसद में बुधवार को ये बताया कि सरकार के पास इन लोगों का धार्मिक आधार पर कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. सरकार ने बताया कि जिनको नागरिकता दी गई है उनका डेटा धर्म के आधार पर तैयार नहीं किया जाता है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के अलाव श्रीलंका और म्यांमार के भी हज़ारों लोगों को 2014 से अब तक नागरिकता दी गई. सरकार के मुताबिक़ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के क़रीब 19 हज़ार लोगों को 2014 में नागरिकता दी गई थी.

गृह मंत्रालय के मुताबिक़ मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक कुल 18,999 लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई है जिनमें सबसे ज़्यादा बांग्लादेशी शामिल है. सरकार के मुताबिक़ इस दौरान 15000 बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है. असल में बांग्लादेश के इतने लोगों को नागरिकता देने के पीछे भूमि सीमा समझौता अहम वजह है.

2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए समझौते के बाद ज़मीन की अदला-बदली की गई थी और वहां रहने वाले लोगों को दोनों में से किसी भी देश की नागरिकता चुनने के लिए स्वतंत्र छोड़ा गया था. यदि इस समझौते के तहत नागरिकता हासिल करने वाले बांग्लादेशियों को छोड़ दिया जाए तो 2014 से अब तक सबसे ज़्यादा नागरिकता पाकिस्तानियों को दी गई है. बांग्लादेश के कुल 15,036 लोगों को मिली नागरिकता में 14,864 सिर्फ़ एलबीए (लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट) के तहत नागरिकता दी गई है.

नको छोड़ दिया जाए तो बीते पांच साल में सिर्फ़ 172 बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता मिली है. इन लोगों ने व्यक्तिगत आधार पर नागरकिता के लिए आवेदन दिया था, जिसकी पड़ताल के बाद सरकार ने मंजूरी दे दी. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ इसी दौरान 2,935 पाकिस्तानी, 914 अफ़ग़ान, 113 श्रीलंकाई और एक म्यांमार के व्यक्ति को भारतीय नागरिकता दी गई. नित्यानंद राय ने सीपीएम सांसद के सोमप्रसाद के लिखित प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी.

केरल के सांसद सोमप्रसाद ने इन देशों के लोगों को दी गई नागरिकता के धर्म-आधारित विवरणों को जानना चाहा था. दिलचस्प ये है कि 11 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था, “इस क़ानून में नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान हैं. जिसे हटाया नहीं जा रहा है. पिछले पांच वर्षों में 566 से अधिक मुसलमानों को भारतीय नागरिकता दी गई है.”

बाद के मीडिया साक्षात्कारों में, शाह ने इस संख्या को 600 के करीब बताया था. लेकिन शाह के बयान के तीन महीने बाद संसद में सरकार ने दावा किया कि जिन्हें नागरिकता दी गई है उनके धर्म के आधार पर कोई आंकड़ा सरकार ने जमा ही नहीं किया है. अब कई जानकार ये सवाल उठा रहे हैं कि अब तक दी गई नागरिकता अगर धर्म का ज़िक्र नहीं था, तो अब क्यों धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान शुरू किया जा रहा है?

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